महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-058
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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धृतराष्ट्रेण युद्धस्य भीष्माद्यनभिमतत्वाभिधाने दुर्योधनेन भीष्माद्यनपेक्षणेन कर्णदुश्शासनसहायेन स्वेनैव पाण्डवहननप्रतिज्ञा ।। 1 ।। पुनर्धृतराष्ट्रेण दुर्योधनगर्हणम् ।। 2 ।।
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-58-1x |
क्षत्रतेजा ब्रह्मचारी कौमारादपि पाण्डवः। | 5-58-1a 5-58-1b |
दुर्योधन निवर्तस्व युद्धाद्भरतसत्तम । | 5-58-2a 5-58-2b |
अलमर्धं पृथिव्यास्ते सहामात्यस्य जीवितुम् । | 5-58-3a 5-58-3b |
एतद्धि कुरवः सर्वे मन्यन्ते धर्मसंहितम् । | 5-58-4a 5-58-4b |
अङ्गेमां समवेक्षस्व पुत्र स्वामेव वाहिनीम् । | 5-58-5a 5-58-5b |
न त्वहं युद्धमिच्छामि नैतदिच्छति बाह्लिकः। | 5-58-6a 5-58-6b |
न सोमदत्तो न शलो न कृपो युद्धमिच्छति । | 5-58-7a 5-58-7b |
येषु संप्रतितिष्ठेयुः कुरवः पीडिताः परैः । | 5-58-8a 5-58-8b |
न त्वं करोषि कामेन कर्णः कारयिता तव। | 5-58-9a 5-58-9b |
दुर्योधन उवाच। | 5-58-10x |
नाहं भवति न द्रोणे नाश्वत्थाम्नि न सञ्जये। | 5-58-10a 5-58-10b |
सत्यव्रते पुरुमित्रे भूरिश्रवसि वा पुनः । | 5-58-11a 5-58-11b |
अहं च तात कर्णश्च रणयज्ञं वितत्य वै। | 5-58-12a 5-58-12b |
रथो वेदी स्रुवः खङ्गो गदा स्रुक् कवचोऽजिनम् । | 5-58-13a 5-58-13b |
आत्मयज्ञेन नृपते इष्ट्वा वैवस्वतं रणे। | 5-58-14a 5-58-14b |
अहं च तात कर्णश्च भ्राता दुःशासनश्च मे। | 5-58-15a 5-58-15b |
अहं हि पाण्डवान्हत्वा प्रशास्ता पृथिवीमिमाम् । | 5-58-16a 5-58-16b |
त्यक्तं मे जीवितं राज्यं धनं सर्वं च पार्थिव । | 5-58-17a 5-58-17b |
यावद्धि सूच्यास्तीक्ष्णाया विध्येदग्रेण मारिष । | 5-58-18a 5-58-18b |
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-58-19x |
सर्वान्वस्तात शोचामि त्यक्तो दुर्योधनो मया। | 5-58-19a 5-58-19b |
रुरूणामिव यूथेषु व्याघ्राः प्रहरतां वराः। | 5-58-20a 5-58-20b |
प्रतीपमिव मे भाति युयुधानेन भारती। | 5-58-21a 5-58-21b |
संपूर्मं पूरयन्भूयो धनं पार्थस्य माधवः। | 5-58-22a 5-58-22b |
सेनामुखे प्रयुद्धानां भीमसेनो भविष्यति। | 5-58-23a 5-58-23b |
यदा द्रक्ष्यसि भीमेन कुञ्जरान्विनिपातितान्। | 5-58-24a 5-58-24b |
तानभिप्रेक्ष्य सङ्ग्रामे विशीर्णानिव पर्वतान्। | 5-58-25a 5-58-25b |
निर्दग्धं भीमसेनेन सैन्यं रथहयद्विपम् । | 5-58-26a 5-58-26b |
महद्वो भयमागामि न चेच्छाम्यथ पाण्डवैः। | 5-58-27a 5-58-27b |
महावनमिव च्छिन्नं यदा द्रक्ष्यसि पातितम् । | 5-58-28a 5-58-28b |
वैशंपायन उवाच। | 5-58-29x |
एतावदुक्त्वा राजा तु सर्वांस्तान्पृथिवीपतीन्। | 5-58-29a 5-58-29b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-58-13 चाचुर्होत्रं चतुर्णां होतॄणां ऋत्विजां समाहारः ।। 5-58-21 भारती सेना प्रतीपं व्यस्ता सीमन्तिनीव भाति ।।
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