महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-066
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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दुर्योधनेन धृतराष्ट्रवत्तनानभिनन्दने राज्ञां निर्गमनम् ।। 1 ।। धृतराष्ट्रेण स्वपरसेनयोः सारासारकथनचोदितेन सञ्जयेन व्यासगान्धारीसन्निधौ कथनकथनम् ।। 2 । श्रीव्यासेन सञ्जयंप्रति धृतराष्ट्रप्रश्नस्योत्तरदानाभ्यनुज्ञानम् ।। 3 ।
वैशंपायान उवाच। | 5-66-1x |
दुर्योधने धार्तराष्ट्रे तद्वचो नाभिनन्दति। | 5-66-1a 5-66-1b |
उत्थितेषु महाराज पृथिव्यां सर्वराजसु। | 5-66-2a 5-66-2b |
आशंसमानो विजयं तेषां पुत्रवशानुगः । | 5-66-3a 5-66-3b |
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-66-4x |
गावल्गणे ब्रूहि नः सारफल्गु | 5-66-4a 5-66-4b 5-55-4c 5-66-4d |
त्वमेतयोः सारवित्सर्वदर्शी | 5-66-5a 5-66-5b 5-66-5c 5-66-5d |
सञ्जय उवाच। | 5-66-6x |
न त्वां ब्रूयां रहिते जातु किंचि- | 5-66-6a 5-66-6b 5-66-6c 5-66-6d |
तो तेऽसूयां विनयेतां नरेन्द्र | 5-66-7a 5-66-7b 5-66-7c 5-66-7d |
वैशंपायन उवाच। | 5-66-8x |
इत्युक्तेन च गान्धारी व्यासश्चात्राजगामह। | 5-66-8a 5-66-8b |
ततस्तन्मतमाज्ञाय सञ्जयस्यात्मजस्य च। | 5-66-9a 5-66-9b |
व्यास उवाच। | 5-66-10x |
संपृच्छते धृतराष्ट्रय सञ्जय | 5-66-10a 5-66-10b 5-66-10c 5-66-10d |
।। इति श्रीमन्महाभारतो उद्योगपर्वणि |
5-66-3 परेषां तटस्थानाम् ।। 5-66-5 युध्यमाना न सन्ति उदासीना इत्यर्थः ।। 5-66-6 पितरं व्यासम् ।।
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