महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-142
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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कृष्णेन कर्णंप्रति पाण्डवजयनिर्धारणकथनपूर्वकं भीष्णादिषु युद्धसन्नाहसंदेशकथनचोदना ।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। | 5-142-1x |
कर्णस्य वचनं श्रुत्वा केशवः परवीरहा। | 5-142-1a 5-142-1b |
श्रीभगवानुवाच। | 5-142-2x |
अपि त्वां न लभेत्कर्ण राज्यलम्भोपपादनम् । | 5-142-2a 5-142-2b |
ध्रुवो जयः पाण्डवानामितीदं | 5-142-3a 5-142-3b 5-142-3c 5-142-3d |
दिव्या माया विहिता भौमनेन | 5-142-4a 5-142-4b 5-142-4c 5-142-4d |
न सञ्जते शैलवनस्पतिभ्य | 5-142-5a 5-142-5b 5-142-5c 5-142-5d |
यदा द्रक्ष्यसि सङ्ग्रामे श्वेताश्वं कृष्णसारथिम् । | 5-142-6a 5-142-6b |
गाण्डीवस्य च निर्घोषं विस्फूर्जितमिवाशनेः। | 5-142-7a 5-142-7b |
यदा द्रक्ष्यसि सङ्ग्रामे कुन्तीपुत्रं युधिष्ठिरम् । | 5-142-8a 5-142-8b |
आदित्यमिव दुर्धर्षं तपन्तं शत्रुवाहिनीम् । | 5-142-9a 5-142-9b |
यदा द्रक्ष्यसि सङ्ग्रामे भीमसेनं महाबलम् । | 5-142-10a 5-142-10b |
प्रभिन्नमिव मातङ्गं प्रतिद्विरदघातिनम् । | 5-142-11a 5-142-11b |
यदा द्रक्ष्यसि सङ्ग्रामे द्रोणं शान्तनवं कृपम् । | 5-142-12a 5-142-12b |
युद्धायापततस्तूर्णं वारितान्सव्यसाचिना। | 5-142-13a 5-142-13b |
यदा द्रक्ष्यसि सङ्ग्रामे माद्रीपुत्रौ महाबलौ । | 5-142-14a 5-142-14b |
विगाढे शस्त्रसंपाते परवीररथारुजौ । | 5-142-15a 5-142-15b |
ब्रूयाः कर्ण इतो गत्वा द्रोणं शान्तनवं कृपम् । | 5-142-16a 5-142-16b |
सर्वौषधिवनस्फीतः फलवानल्पमक्षिकः । | 5-142-17a 5-142-17b |
सप्तमाच्चापि दिवसादमावास्या भविष्यति। | 5-142-18a 5-142-18b |
तथा राज्ञो वदेः सर्वान्ये युद्धायाभ्युपागताः। | 5-142-19a 5-142-19b |
राजानो राजपुत्राश्च दुर्योधनवशानुगाः । | 5-142-20a 5-142-20b |
5-142-4 भौमनेन विश्वकर्मणा ।। 5-142-18 संग्रामः संग्रामसाधनकलापः । बुज्यतां एकीभूयावतिष्ठताम् ।।
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