महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-165
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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भीष्मेण दुर्योधनाय स्वसामर्थ्यकथनपूर्वकमभयप्रदानम् ।। 1 ।।
तथा दुर्योधनप्रश्नेन स्वसेनायां रथातिरथसंख्यानम् ।। 2 ।।
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-165-1x |
प्रतिज्ञाते फाल्गुनेन वधे भीष्मस्य संयुगे। | 5-165-1a 5-165-1b |
हतमेव हि पश्यामि गाङ्गेयं पितरं रणे। | 5-165-2a 5-165-2b |
स चापरिमितप्रज्ञस्तच्छ्रुत्वा पार्थभाषितम् । | 5-165-3a 5-165-3b |
सैनापत्यं च संप्राप्य कौरवाणां धुरंधरः । | 5-165-4a 5-165-4b |
वैशंपायन उवाच। | 5-165-5x |
ततस्तत्सञ्जयस्तस्मै सर्वमेव न्यवेदयत्। | 5-165-5a 5-165-5b |
सञ्जय उवाच। | 5-165-6x |
सैनापत्यमनुप्राप्य भीष्मः शान्तनवो नृप। | 5-165-6a 5-165-6b |
नमस्कृत्य कुमाराय सेनान्ये शक्तिपाणये । | 5-165-7a 5-165-7b |
सेनाकर्मण्यिज्ञोऽस्मि व्यूहेषु विविधेषु च। | 5-165-8a 5-165-8b |
यात्रायाने च युद्धे च तथा प्रशमनेषु च । | 5-165-9a 5-165-9b |
व्यूहानां च समारम्भान्दैवगान्धर्वमानुषान्। | 5-165-10a 5-165-10b |
सोऽहं योत्स्यामि तत्त्वेन पालयंस्तव वाहिनीम् । | 5-165-11a 5-165-11b |
दुर्योधन उवाच। | 5-165-12x |
विद्यते मे न गाङ्गेय भयं देवासुरेष्वपि । | 5-165-12a 5-165-12b |
किं पुनस्त्वयि दुर्धर्पे सैनापत्ये व्यवस्थिते। | 5-165-13a 5-165-13b |
भवद्र्यां पुरुषाग्र्याभ्यां स्थिताभ्यां विजयो मम। | 5-165-14a 5-165-14b |
रथसङ्ख्यां तु कार्त्स्न्येन परेषामात्मनस्तथा । | 5-165-15a 5-165-15b |
पितामहो हि कुशलः परेषामात्मनस्तथा । | 5-165-16a 5-165-16b |
भीष्म उवाच। | 5-165-17x |
गान्धारे श्रृणु राजेन्द्र रथसंख्यां स्वके बले। | 5-165-17a 5-165-17b |
बहूनीह सहस्राणि प्रयुतान्यर्बुदानि च। | 5-165-18a 5-165-18b |
भवानग्रे रथोदारः सह सर्वैः सहोदरैः । | 5-165-19a 5-165-19b |
सर्वे कृतप्रहरणाश्छेदभेदविशारदाः । | 5-165-20a 5-165-20b |
संयन्तारः प्रहर्तारः कृतास्त्रा भारसाधनाः । | 5-165-21a 5-165-21b |
एते हनिष्यन्ति रणे पाञ्चालान्युद्धदुर्मदान् । | 5-165-22a 5-165-22b |
तथाऽहं भरतश्रेष्ठ सर्वसेनापतिस्तव। | 5-165-23a 5-165-23b |
न त्वात्मनो गुणान्वक्तुमर्हामि विदितोऽस्मि ते। | 5-165-24a 5-165-24b |
अर्थसिद्धिं तव रणे करिष्यति न संशयः। | 5-165-25a 5-165-25b |
हनिष्यति चमूं तेषां महेन्द्रो दानवानिव । | 5-165-26a 5-165-26b |
स्पर्धते वासुदेवेन नित्यं यो वै रणेरणे। | 5-165-27a 5-165-27b 5-165-27c |
सागरोर्मिसमैर्बाणैः प्लावयन्निव शातवान् । | 5-165-28a 5-165-28b |
सौमदत्तिर्महेष्वासो रथयूथपयूथपः। | 5-165-29a 5-165-29b |
सिन्धुराजो महाराज मतो मे द्विगुणो रथाः। | 5-165-30a 5-165-30b |
द्रौपदीहरणे राजन्परिक्लिष्टश्च पाण्डवैः । | 5-165-31a 5-165-31b |
एतेन हि तदा राजंस्तप आस्थाय दारुणम् । | 5-165-32a 5-165-32b |
स एष रथशार्दूलस्तद्वैरं संस्मरन्रणे। | 5-165-33a 5-165-33b |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
5-165-8 भृतान् वेतनभक्षकान्। अभृतान्मैत्र्या समागतान् ।। 5-165-9 यात्रार्थं याने प्रयाणे प्रशमनेष्ठ परास्त्राष्णं प्रतीकारेषु विषयेषु वेद वेञ्चि ।।
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