रघुवीरगद्यम्
रामस्तोत्राणि
वेदान्तदेशिकः

जयत्याश्रित संत्रास ध्वान्त विध्वंसनोदयः ।
प्रभावान् सीतया देव्या परमव्योम भास्करः ॥

जय जय महावीर !
महाधीर धौरेय !
देवासुर-समर-समय-समुदित-निखिल-निर्जर-निर्धारित-निरवधिक-माहात्म्य !
दशवदन-दमित-दैवत-परिषदभ्यर्थित-दाशरथिभाव !
दिनकर-कुल-कमल-दिवाकर !
दिविषदधिपति-रण-सहचरण-चतुर-दशरथ-चरम-ऋण-विमोचन !
कोसलसुता-कुमारभाव-कञ्चुकित-कारणाकार !
कौमारकेलि-गोपायित-कौशिकाध्वर !
रणाध्वर धुर्य भव्य दिव्यास्त्र बृन्द वन्दित !
प्रणत जन विमत विमथन दुर्ललितदोर्ललित !
तनुतर विशिख विताडन विघटित विशरारु शरारु ताटका ताटकेय !
जडकिरण शकलधरजटिल नट पतिमकुट नटनपटु
विबुधसरिदतिबहुल मधुगलन ललितपद
नलिनरजौपमृदित निजवृजिन जहदुपलतनुरुचिर
परममुनि वरयुवति नुत !
कुशिकसुतकथित विदित नव विविध कथ !
मैथिल नगर सुलोचना लोचन चकोर चन्द्र !
खण्डपरशु कोदण्ड प्रकाण्ड खण्डन शौण्ड भुजदण्ड !
चण्डकर किरणमण्डल बोधित पुण्डरीक वन रुचि लुण्टाक लोचन !
मोचित जनक हृदय शङ्कातङ्क !
परिहृत निखिल नरपति वरण जनकदुहित कुचतट विहरण
समुचित करतल !
शतकोटि शतगुण कठिन परशु धर मुनिवर कर धृत
दुरवनमतमनिज धनुराकर्षण प्रकाशित पारमेष्ठ्य !
क्रतुहर शिखरि कन्तुक विहृतिमुख जगदरुन्तुद
जितहरिदन्तदन्तुरोदन्त दशवदन दमन कुशल दशशतभुज
नृपतिकुलरुधिरझर भरित पृथुतर तटाक तर्पित
पितृक भृगुपति सुगतिविहति कर नत परुडिषु परिघ !
अनृत भय मुषित हृदय पितृ वचन पालन प्रतिङ्य़ावङ्य़ात
यौवराज्य !
निषाद राज सौहृद सूचित सौशील्य सागर !
भरद्वाज शासनपरिगृहीत विचित्र चित्रकूट गिरि कटक
तट रम्यावसथ !
अनन्य शासनीय !
प्रणत भरत मकुटतट सुघटित पादुकाग्र्याभिषेक निर्वर्तित
सर्वलोक योगक्षेम !
पिशित रुचि विहित दुरित वलमथन तनय बलिभुगनुगति सरभसशयन तृण
शकल परिपतन भय चरित सकल सुरमुनिवरबहुमत महास्त्र सामर्थ्य !
द्रुहिण हर वलमथन दुरालक्ष्य शर लक्ष्य !
दण्डका तपोवन जङ्गम पारिजात !
विराध हरिण शार्दूल !
विलुलित बहुफल मख कलम रजनिचर मृग मृगयारम्भ
संभृतचीरभृदनुरोध !
त्रिशिरः शिरस्त्रितय तिमिर निरास वासरकर !
दूषण जलनिधि शोशाण तोषित ऋषिगण घोषित विजय घोषण !
खरतर खर तरु खण्डन चण्ड पवन !
द्विसप्त रक्षःसहस्र नलवन विलोलन महाकलभ !
असहाय शूर !
अनपाय साहस !
महित महामृध दर्शन मुदित मैथिली दृढतर परिरम्भण
विभवविरोपित विकट वीरव्रण !
मारीच माया मृग चर्म परिकर्मित निर्भर दर्भास्तरण !
विक्रम यशो लाभ विक्रीत जीवित गृघ्रराजदेह दिधक्षा
लक्षितभक्तजन दाक्षिण्य !
कल्पित विबुधभाव कबन्धाभिनन्दित !
अवन्ध्य महिम मुनिजन भजन मुषित हृदय कलुष शबरी
मोक्षसाक्षिभूत !
प्रभJण्जनतनय भावुक भाषित रJण्जित हृदय !
तरणिसुत शरणागतिपरतन्त्रीकृत स्वातन्त्र्य !
दृढ घटित कैलास कोटि विकट दुन्दुभि कङ्काल कूट दूर विक्षेप
दक्षदक्षिणेतर पादाङ्गुष्ठ दर चलन विश्वस्त सुहृदाशय !
अतिपृथुल बहु विटपि गिरि धरणि विवर युगपदुदय विवृत चित्रपुङ्ग वैचित्र्य !
विपुल भुज शैल मूल निबिड निपीडित रावण रणरणक जनक चतुरुदधि
विहरण चतुर कपिकुल पति हृदय विशाल शिलातलदारण दारुण शिलीमुख !
अपार पारावार परिखा परिवृत परपुर परिसृत दव दहन
जवनपवनभव कपिवर परिष्वङ्ग भावित सर्वस्व दान !
अहित सहोदर रक्षः परिग्रह विसंवादिविविध सचिव विप्रलम्भ समय
संरम्भ समुज्जृम्भित सर्वेश्वर भाव !
सकृत्प्रपन्न जन संरक्षण दीक्षित !
वीर !
सत्यव्रत !
प्रतिशयन भूमिका भूषित पयोधि पुलिन !
प्रलय शिखि परुष विशिख शिखा शोषिताकूपार वारि पूर !
प्रबल रिपु कलह कुतुक चटुल कपिकुल करतलतुलित हृत गिरिनिकर साधित
सेतुपध सीमा सीमन्तित समुद्र !
द्रुत गति तरु मृग वरूथिनी निरुद्ध लङ्कावरोध वेपथु लास्य लीलोपदेश
देशिक धनुर्ज्याघोष !
गगनचर कनकगिरि गरिमधर निगममय निजगरुड गरुदनिल लव गलित
विषवदन शर कदन !
अकृत चर वनचर रण करण वैलक्ष्य कूणिताक्ष बहुविध रक्षो
बलाध्यक्ष वक्षः कवाट पाटन पटिम साटोप कोपावलेप !
कटुरटद् अटनि टङ्कृति चटुल कठोर कार्मुक !
विशङ्कट विशिख विताडन विघटित मकुट विह्वल विश्रवस्तनयविश्रम
समय विश्राणन विख्यात विक्रम !
कुम्भकर्ण कुल गिरि विदलन दम्भोलि भूत निःशङ्क कङ्कपत्र !
अभिचरण हुतवह परिचरण विघटन सरभस परिपतद् अपरिमितकपिबल
जलधिलहरि कलकलरव कुपित मघवजिदभिहननकृदनुज साक्षिक
राक्षस द्वन्द्वयुद्ध !
अप्रतिद्वन्द्व पौरुष !
त्र यम्बक समधिक घोरास्त्राडम्बर !
सारथि हृत रथ सत्रप शात्रव सत्यापित प्रताप !
शितशरकृतलवनदशमुख मुख दशक निपतन पुनरुदय दरगलित जनित
दर तरल हरिहय नयन नलिनवन रुचिखचित निपतित सुरतरु कुसुम वितति
सुरभित रथ पथ !
अखिल जगदधिक भुज बल वर बल दशलपन लपन दशक लवनजनित कदन
परवश रजनिचर युवति विलपन वचन समविषय निगम शिखर निकर
मुखर मुख मुनिवर परिपणित!
अभिगत शतमख हुतवह पितृपति निरृति वरुण पवन धनदगिरिशप्रमुख
सुरपति नुति मुदित !
अमित मति विधि विदित कथित निज विभव जलधि पृषत लव !
विगत भय विबुध विबोधित वीर शयन शायित वानर पृतनौघ !
स्व समय विघटित सुघटित सहृदय सहधर्मचारिणीक !
विभीषण वशंवदीकृत लङ्कैश्वर्य !
निष्पन्न कृत्य !
ख पुष्पित रिपु पक्ष !
पुष्पक रभस गति गोष्पदीकृत गगनार्णव !
प्रतिङ्य़ार्णव तरण कृत क्षण भरत मनोरथ संहित सिंहासनाधिरूढ !
स्वामिन् !
राघव सिंह !
हाटक गिरि कटक लडह पाद पीठ निकट तट परिलुठित निखिलनृपति किरीट
कोटि विविध मणि गण किरण निकर नीराजितचरण राजीव !
दिव्य भौमायोध्याधिदैवत !
पितृ वध कुपित परशुधर मुनि विहित नृप हनन कदन पूर्वकालप्रभव
शत गुण प्रतिष्ठापित धार्मिक राज वंश !
शुच चरित रत भरत खर्वित गर्व गन्धर्व यूथ गीत विजय गाथाशत !
शासित मधुसुत शत्रुघ्न सेवित !
कुश लव परिगृहीत कुल गाथा विशेष !
विधि वश परिणमदमर भणिति कविवर रचित निज चरितनिबन्धन निशमन
निर्वृत !
सर्व जन सम्मानित !
पुनरुपस्थापित विमान वर विश्राणन प्रीणित वैश्रवण विश्रावित यशः
प्रपJण्च !
पJण्चतापन्न मुनिकुमार सJण्जीवनामृत !
त्रेतायुग प्रवर्तित कार्तयुग वृत्तान्त !
अविकल बहुसुवर्ण हयमख सहस्र निर्वहण निर्व र्तित
निजवर्णाश्रम धर्म !
सर्व कर्म समाराध्य !
सनातन धर्म !
साकेत जनपद जनि धनिक जङ्गम तदितर जन्तु जात दिव्य गति दान दर्शित नित्य
निस्सीम वैभव !
भव तपन तापित भक्तजन भद्राराम !
श्री रामभद्र !
नमस्ते पुनस्ते नमः ॥

चतुर्मुखेश्वरमुखैः पुत्र पौत्रादि शालिने ।
नमः सीता समेताय रामाय गृहमेधिने ॥

कविकथक सिंहकथितं
कठोत सुकुमार गुम्भ गम्भीरम् ।
भव भय भेषजमेतत्
पठत महावीर वैभवं सुधियः ॥

सर्वं श्री कृष्णार्पणमस्तु

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