"छान्दोग्योपनिषद्/अध्यायः १" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पङ्क्तिः २२३:
::::अपां का गतिरित्यसौ लोक इति होवाचामुष्य लोकस्य का गतिरिति न स्वर्गं
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