"पृष्ठम्:भामहालङ्कारः.pdf/१३" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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'''द्वितीयः परिच्छेदः । अखण्डमण्डलः केन्दुः क कान्ताननमद्युति ।.. यत्किञ्चित् कान्तिसामान्याच्छशिनैवोपमीयते॥४४॥ किञ्चित्काव्यानि नेयानि लक्षणेन महात्मनाम् । दृष्टं वा सर्वसारूप्यं राजमित्रे यथोदितम् ॥ ४५ ॥''' |
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'''सूर्याशुसम्मीलितलोचनेषु । | दीनेषु पद्मानिलनिर्मदेषु । साध्व्यः स्वगेहेष्विव भर्तहानाः | केका विनेशुः शिखिनां मुखेषु ।। ४६ ॥ निष्पेतुरास्यादिव तस्य दीप्ताः ।''' |
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'''शरा, धनुर्मण्डलमध्यभाजः ।, जाज्वल्यमाना इव वारिधारा''' |
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'''दिनाद्धभाजः परिवेषणोऽर्कात् ॥.४७ ॥ । ।''' |
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'''. शीखवर्धनस्य । कथं पातोऽम्बुधाराणां ज्वलन्तीनां विवस्वतः ।। असम्भवाद्यं, युक्त्या तेनासम्भव उच्यते ॥ १८ ॥ ' तत्रासम्भविनार्थेन कः कुयादुपमा कृती ।... ,''' |
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'''को नाम वहिनौपम्यं कुर्वीत शशलक्ष्मणः ।। ४९ ॥ यस्यातिशयवानर्थः कथं सोऽसम्भवो मतः । इष्टं चातिशयार्थत्वमुपमोत्प्रेक्षयोर्यथा ॥ ५० ॥ १ विनेदुः–क''' |
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पुटतलम् (अव्यचितम्) : | पुटतलम् (अव्यचितम्) : | ||
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अस्य अपरं नाम काव्यालङ्कारः इति। |