"ऋग्वेदः सूक्तं १०.५८" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पङ्क्तिः ३:
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तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ॥२॥
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ॥३॥
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ॥४॥
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ॥५॥
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ॥६॥
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ॥७॥
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ॥८॥
यत्ते पर्वतान्बृहतो मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ॥९॥
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ॥१०॥
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ॥११॥
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ॥१२॥
▲यत ते चतस्रः परदिशो मनो जगाम दूरकम ।
▲यत ते समुद्रमर्णवं मनो जगाम दूरकम ।
▲यत ते मरीचीः परवतो मनो जगाम दूरकम ।
▲यत ते अपो यदोषधीर्मनो जगाम दूरकम ।
▲यत ते सूर्यं यदुषसं मनो जगाम दूरकम ।
▲यत ते विश्वमिदं जगन मनो जगाम दूरकम ।
▲यत ते पराः परावतो मनो जगाम दूरकम ।
▲यत ते भूतं च भव्यं च मनो जगाम दूरकम ।
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