"पृष्ठम्:किरातार्जुनीयम् (मल्लिनाथव्याख्योपेतम्).pdf/३६" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पुटाग्रः(अव्यचितम्) : | पुटाग्रः(अव्यचितम्) : | ||
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{{rh|right ='''२७'''|center='''द्वितीयः सर्गः।'''}} |
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पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | ||
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ननु साम्नैव कार्यसिद्धौ किं क्षात्रेण । यथाह मनुः- 'साम्ना दानेन भेदेन समस्तैरथवा |
ननु साम्नैव कार्यसिद्धौ किं क्षात्रेण । यथाह मनुः- 'साम्ना दानेन भेदेन समस्तैरथवा |