"सामवेदः/कौथुमीया/संहिता/ग्रामगेयः/प्रपाठकः ०१/पर्कः(अग्नआयाहि)" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः ४६:
अग्न आ याहि वीतये, आ नो मित्रावरुणा, आ याहि सुषुमा हि त, इन्द्राग्नी आ गतं सुतम् इत्य् आ याह्य् आ याहीत्य् आज्यानि भवन्ति। आ याह्य् आ याहीति युक्तानां पुरस्तात् प्रयन्ति। यथा युक्तानां पुरस्ताद् आ याह्य् आ याहीति प्रेयात् तादृक् तत्। - जैब्रा [[जैमिनीयं ब्राह्मणम्/काण्डम् ३/०११-०२०|३.१२]]
 
[https://sa.wikisource.org/s/29em अग्नेः प्रियम्] साम
 
[https://sites.google.com/site/vedastudy/sadhvi-salakatankata/sama संभावित व्याख्या]