"ऋग्वेदः सूक्तं १०.१८४" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पङ्क्तिः १:
विष्णुर्योनिं कल्पयतु तवष्टा रूपाणि पिंशतु |
आसिञ्चतु परजापतिर्धाता गर्भं दधातु ते
गर्भं धेहि सिनीवालि गर्भं धेहि सरस्वति |
गर्भं तेश्विनौ देवावा धत्तां पुष्करस्रजा
हिरण्ययी अरणी यं निर्मन्थतो अश्विना |
तं तेगर्भं हवामहे दशमे मासि सूतवे
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