"जैमिनीयं ब्राह्मणम्/काण्डम् ३/२०१-२१०" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पङ्क्तिः ४७:
यद् अद्य सूर उदित इति<ref>साम [https://sa.wikisource.org/s/3kn १३५१]</ref> मैत्रावरुणं भवति। यद् इति रथन्तरस्य रूपम्। राथन्तरम् एतद् अहः।
अनागा मित्रो अर्यमा।
सुवाति सविता भगः॥
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