"ऋग्वेदः सूक्तं १०.८५" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पङ्क्तिः ८६०:
[http://puranastudy.byethost14.com/pur_index27/vyaana.htm व्यानोपरि टिप्पणी]
१०.८५.१८ पूर्वापरं चरतो माययैतौ इति
ब्रह्मवाक् रूप सूर्या- चेतना का अवतीर्ण होना ही अध्वर है जिसको पैदा करने के लिए पहले प्राणों को एक लम्बे योगध्यान के मार्ग पर चलना पड़ता है ।..[http://puranastudy.freevar.com/Antariksha_Paryaya/pva18.htm अन्तरिक्षपर्यायों का प्रतीकवाद, अध्याय ५]
१०.८५.४०
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