"ऋग्वेदः सूक्तं १.१५" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः १:
इन्द्र सोमं पिब रतुना तवा विशन्त्विन्दवः |
मत्सरासस्तदोकसः ||
 
<pre style="background: #ffffff; border: 0px; line-height: 150%; padding-left: 2em; margin: 0em;">
मरुतः पिबत रतुना पोत्राद यज्ञं पुनीतन |
यूयं हि षठा सुदानवः ||
 
इन्द्र सोमं पिब रतुना तवा विशन्त्विन्दवः |
अभि यज्ञं गर्णीहि नो गनावो नेष्टः पिब रतुना |
मत्सरासस्तदोकसः ||
तवंहि रत्नधा असि ||
 
मरुतः पिबत रतुना पोत्राद यज्ञं पुनीतन |
अग्ने देवानिहा वह सादया योनिषु तरिषु |
यूयं हि षठा सुदानवः ||
परि भूष पिब रतुना ||
 
अभि यज्ञं गर्णीहि नो गनावो नेष्टः पिब रतुना |
बराह्मणादिन्द्र राधसः पिबा सोमं रतून्रनु |
तवंहि रत्नधा असि ||
तवेद धि सख्यमस्त्र्तम ||
 
अग्ने देवानिहा वह सादया योनिषु तरिषु |
युवं दक्षं धर्तव्रत मित्रावरुण दूळभम |
परि भूष पिब रतुना ||
रतुना यज्ञमाशाथे ||
 
बराह्मणादिन्द्र राधसः पिबा सोमं रतून्रनु |
दरविणोदा दरविणसो गरावहस्तासो अध्वरे |
तवेद धि सख्यमस्त्र्तम ||
यज्ञेषु देवमीळते ||
 
युवं दक्षं धर्तव्रत मित्रावरुण दूळभम |
दरविणोदा ददातु नो वसूनि यानि शर्ण्विरे |
रतुना यज्ञमाशाथे ||
देवेषु ता वनामहे ||
 
दरविणोदा दरविणसो गरावहस्तासो अध्वरे |
दरविणोदाः पिपीषति जुहोत पर च तिष्ठत |
यज्ञेषु देवमीळते ||
नेष्ट्राद रतुभिरिष्यत ||
 
दरविणोदा ददातु नो वसूनि यानि शर्ण्विरे |
यत तवा तुरीयं रतुभिर्द्रविणोदो यजामहे |
देवेषु ता वनामहे ||
अध समा नो ददिर्भव ||
 
दरविणोदाः पिपीषति जुहोत पर च तिष्ठत |
अश्विना पिबतं मधु दीद्यग्नी शुचिव्रत |
नेष्ट्राद रतुभिरिष्यत ||
रतुना यज्ञवाहसा ||
 
यत तवा तुरीयं रतुभिर्द्रविणोदो यजामहे |
गार्हपत्येन सन्त्य रतुना यज्ञनीरसि |
अध समा नो ददिर्भव ||
देवान देवयते यज ||
 
अश्विना पिबतं मधु दीद्यग्नी शुचिव्रत |
रतुना यज्ञवाहसा ||
 
गार्हपत्येन सन्त्य रतुना यज्ञनीरसि |
देवान देवयते यज ||
</pre>
 
*[[ऋग्वेद:]]
"https://sa.wikisource.org/wiki/ऋग्वेदः_सूक्तं_१.१५" इत्यस्माद् प्रतिप्राप्तम्