"लघुसिद्धान्तकौमुदी/मत्वर्थीयप्रकरणम्" इत्यस्य संस्करणे भेदः

मत्वर्थीयाः
 
(लघु) लघुसिद्धान्तकौमुदी using AWB
पङ्क्तिः १:
{{लघुसिद्धान्तकौमुदी}}
 
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अथ मत्वर्थीयाः<BR>
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<B>'''तदस्यास्त्यस्मिन्निति मतुप्॥ लसक_११८८ = पा_५,२.९४॥</B>'''<BR>
गावो ऽस्यास्मिन्वा सन्ति गोमान्॥<BR>
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<B>'''तसौ मत्वर्थे॥ लसक_११८९ = पा_१,४.१९॥</B>'''<BR>
तान्तसान्तौ भसंज्ञौ स्तो मत्वर्थे प्रत्यये परे। गरुत्मान्। वसोः संप्रसारणं। विदुष्मान्। (<i>''गुणवचनेभ्यो मतुपो लुगिष्ट</i>''ः)। शुक्लो गुणो ऽस्यास्तीति शुक्लः पटः। कृष्णः॥<BR>
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<B>'''प्राणिस्थादातो लजन्यतरस्याम्॥ लसक_११९० = पा_५,२.९६॥</B>'''<BR>
चूडालः। चूडावान्। प्राणिस्थात्किम् ? शिखावान्दीपः। प्राण्यङ्गादेव। मेधावान्॥<BR>
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<B>'''लोमादिपामादिपिच्छादिभ्यः शनेलचः॥ लसक_११९१ = पा_५,२.१००॥</B>'''<BR>
लोमादिभ्यः शः। लोमशः। लोमवान्। रोमशः। रोमवान्। पामादिभ्यो नः। पामनः। (ग. सू.) <u>अङ्गात्कल्याणे</u>। अङ्गना। (ग. सू.) <u>लक्ष्म्या अच्च</u>। लक्ष्मणः। पिच्छादिभ्य इलच्। पिच्छिलः। पिच्छवान्॥<BR>
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<B>'''दन्त उन्नत उरच्॥ लसक_११९२ = पा_५,२.१०६॥</B>'''<BR>
उन्नता दन्ताः सन्त्यस्य दन्तुरः॥<BR>
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<B>'''केशाद्वो ऽन्यतरस्याम्॥ लसक_११९३ = पा_५,२.१०९॥</B>'''<BR>
केशवः। केशी। केशिकः। केशवान्। (<i>''अन्येभ्यो ऽपि दृश्यते</i>'')। मणिवः। (<i>''अर्णसो लोपश्च</i>'')। अर्णवः॥<BR>
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<B>'''अत इनिठनौ॥ लसक_११९४ = पा_५,२.११५॥</B>'''<BR>
दण्डी। दण्डिकः॥<BR>
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<B>'''व्रीह्यादिभ्यश्च॥ लसक_११९५ = पा_५,२.११६॥</B>'''<BR>
व्रीही। व्रीहिकः॥<BR>
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<B>'''अस्मायामेधास्रजो विनिः॥ लसक_११९६ = पा_५,२.१२१॥</B>'''<BR>
यशस्वी। यशस्वान्। मायावी। मेधावी। स्रग्वी॥<BR>
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<B>'''वचो ग्मिनिः॥ लसक_११९७ = पा_५,२.१२४॥</B>'''<BR>
वाग्ग्मी॥<BR>
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<B>'''अर्शआदिभ्यो ऽच्॥ लसक_११९८ = पा_५,२.१२७॥</B>'''<BR>
अर्शो ऽस्य विद्यते अर्शसः। आकृतिगणो ऽयम्॥<BR>
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<B>'''अहंशुभमोर्युस्॥ लसक_११९९ = पा_५,२.१४०॥</B>'''<BR>
अहंयुः अहङ्कारवान्। शुभंयुस्तु शुभान्वितः॥<BR>
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इति मत्वर्थीयाः॥ १३॥<BR>
 
[[वर्गः:लघुसिद्धान्तकौमुदी]]