"महाभारतम्-01-आदिपर्व-060" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः १०:
{{महाभारतम्}}
भारतकथानुबन्धः।। 1 ।।<table>
<tr><td><p> <B>

'''सौतिरुवाच।</B>''' <td> 1-60-1x </p>

</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> श्रुत्वा तु सर्पसत्राय दीक्षितं जनमेजयम्।<BR>अभ्यगच्छदृषिर्विद्वान्कृष्णद्वैपायनस्तदा।। <td> 1-60-1a<BR>1-60-1b </p></tr>
 
श्रुत्वा तु सर्पसत्राय दीक्षितं जनमेजयम्।<BR>अभ्यगच्छदृषिर्विद्वान्कृष्णद्वैपायनस्तदा।। <td> 1-60-1a<BR>1-60-1b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> जनयामास यं काली शक्तेः पुत्रात्पराशरात्।<BR>कन्यैव यमुनाद्वीपे पाण्डवानां पितामहम्।। <td> 1-60-2a<BR>1-60-2b </p></tr>
 
जनयामास यं काली शक्तेः पुत्रात्पराशरात्।<BR>कन्यैव यमुनाद्वीपे पाण्डवानां पितामहम्।। <td> 1-60-2a<BR>1-60-2b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> जातमात्रश्च यः सद्य इष्ट्या देहमवीवृधत्।<BR>वेदांश्चाधिजगे साङ्गन्सेतिहासान्महायशाः।। <td> 1-60-3a<BR>1-60-3b </p></tr>
 
जातमात्रश्च यः सद्य इष्ट्या देहमवीवृधत्।<BR>वेदांश्चाधिजगे साङ्गन्सेतिहासान्महायशाः।। <td> 1-60-3a<BR>1-60-3b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> यं नाति तपसा कश्चिन्न वेदाध्ययनेन च।<BR>न व्रतैर्नोपवासैश्च न प्रसूत्या न मन्युना।। <td> 1-60-4a<BR>1-60-4b </p></tr>
 
यं नाति तपसा कश्चिन्न वेदाध्ययनेन च।<BR>न व्रतैर्नोपवासैश्च न प्रसूत्या न मन्युना।। <td> 1-60-4a<BR>1-60-4b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> विव्यासैकं चतुर्धा यो वेदं वेदविदां वरः।<BR>परावरज्ञो ब्रह्मर्षिः कविः सत्यव्रतः शुचिः।। <td> 1-60-5a<BR>1-60-5b </p></tr>
 
विव्यासैकं चतुर्धा यो वेदं वेदविदां वरः।<BR>परावरज्ञो ब्रह्मर्षिः कविः सत्यव्रतः शुचिः।। <td> 1-60-5a<BR>1-60-5b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> यः पाण्डुं धृतराष्ट्रं च विदुरं चाप्यजीजनत्।<BR>शन्तनोः संततिं तन्वन्पुण्यकीर्तिर्महायशाः।। <td> 1-60-6a<BR>1-60-6b </p></tr>
 
यः पाण्डुं धृतराष्ट्रं च विदुरं चाप्यजीजनत्।<BR>शन्तनोः संततिं तन्वन्पुण्यकीर्तिर्महायशाः।। <td> 1-60-6a<BR>1-60-6b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> जनमेजयस्य राजर्षेः स महात्मा सदस्तथा।<BR>विवेश सहितः शिष्यैर्वेदवेदाङ्गपारगैः।। <td> 1-60-7a<BR>1-60-7b </p></tr>
 
जनमेजयस्य राजर्षेः स महात्मा सदस्तथा।<BR>विवेश सहितः शिष्यैर्वेदवेदाङ्गपारगैः।। <td> 1-60-7a<BR>1-60-7b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तत्र राजानमासीनं ददर्श जनमेजयम्।<BR>वृतं सदस्यैर्बहुभिर्देवैरिव पुरन्दरम्।। <td> 1-60-8a<BR>1-60-8b </p></tr>
 
तत्र राजानमासीनं ददर्श जनमेजयम्।<BR>वृतं सदस्यैर्बहुभिर्देवैरिव पुरन्दरम्।। <td> 1-60-8a<BR>1-60-8b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तथा मूर्धाभिषिक्तैश्च नानाजनपदेश्वरैः।<BR>ऋत्विग्भिर्ब्रह्मकल्पैश्च कुशलैर्यज्ञसंस्तरे।। <td> 1-60-9a<BR>1-60-9b </p></tr>
 
तथा मूर्धाभिषिक्तैश्च नानाजनपदेश्वरैः।<BR>ऋत्विग्भिर्ब्रह्मकल्पैश्च कुशलैर्यज्ञसंस्तरे।। <td> 1-60-9a<BR>1-60-9b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> जनमेजयस्तु राजर्षिर्दृष्ट्वा तमृषिमागतम्।<BR>सगणोऽभ्युद्ययौ तूर्णं प्रीत्या भरतसत्तमः।। <td> 1-60-10a<BR>1-60-10b </p></tr>
 
जनमेजयस्तु राजर्षिर्दृष्ट्वा तमृषिमागतम्।<BR>सगणोऽभ्युद्ययौ तूर्णं प्रीत्या भरतसत्तमः।। <td> 1-60-10a<BR>1-60-10b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> काञ्चनं विष्टरं तस्मै सदस्यानुमतः प्रभुः।<BR>आसनं कल्पयामास यथा शक्रो बृहस्पतेः।। <td> 1-60-11a<BR>1-60-11b </p></tr>
 
काञ्चनं विष्टरं तस्मै सदस्यानुमतः प्रभुः।<BR>आसनं कल्पयामास यथा शक्रो बृहस्पतेः।। <td> 1-60-11a<BR>1-60-11b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तत्रोपविष्टं वरदं देवर्षिगणपूजितम्।<BR>पूजयामास राजेन्द्रः शास्त्रदृष्टेन कर्मणा।। <td> 1-60-12a<BR>1-60-12b </p></tr>
 
तत्रोपविष्टं वरदं देवर्षिगणपूजितम्।<BR>पूजयामास राजेन्द्रः शास्त्रदृष्टेन कर्मणा।। <td> 1-60-12a<BR>1-60-12b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> पाद्यमाचमनीयं च अर्घ्यं गां च विधानतः।<BR>पितामहाय कृष्णाय तदर्हाय न्यवेदयत्।। <td> 1-60-13a<BR>1-60-13b </p></tr>
 
पाद्यमाचमनीयं च अर्घ्यं गां च विधानतः।<BR>पितामहाय कृष्णाय तदर्हाय न्यवेदयत्।। <td> 1-60-13a<BR>1-60-13b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> प्रतिगृह्य तु तां पूजां पाम्डवाज्जनमेजयात्।<BR>गां चैव समनुज्ञाय व्यासः प्रीतोऽभवत्तदा।। <td> 1-60-14a<BR>1-60-14b </p></tr>
 
प्रतिगृह्य तु तां पूजां पाम्डवाज्जनमेजयात्।<BR>गां चैव समनुज्ञाय व्यासः प्रीतोऽभवत्तदा।। <td> 1-60-14a<BR>1-60-14b
 
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<tr><td><p> तथा च पूजयित्वा तं प्रणयात्प्रतितामहम्।<BR>उपोपविश्य प्रीतात्मा पर्यपृच्छदनामयम्।। <td> 1-60-15a<BR>1-60-15b </p></tr>
 
तथा च पूजयित्वा तं प्रणयात्प्रतितामहम्।<BR>उपोपविश्य प्रीतात्मा पर्यपृच्छदनामयम्।। <td> 1-60-15a<BR>1-60-15b
 
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<tr><td>
<tr><td><p> भगवानापि तं दृष्ट्वा कुशलं प्रतिवेद्य च।<BR>सदस्यैः पूजितः सर्वैः सदस्यान्प्रत्यपूजयत्।। <td> 1-60-16a<BR>1-60-16b </p></tr>
 
भगवानापि तं दृष्ट्वा कुशलं प्रतिवेद्य च।<BR>सदस्यैः पूजितः सर्वैः सदस्यान्प्रत्यपूजयत्।। <td> 1-60-16a<BR>1-60-16b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ततस्तु सहितः सर्वैः सदस्यैर्जनमेजयः।<BR>इदं पश्चाद्द्विजश्रेष्ठं पर्यपृच्छत्कृताञ्जलिः।। <td> 1-60-17a<BR>1-60-17b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>जनमेजय उवाच।</B> <td> 1-60-18x </p></tr>
ततस्तु सहितः सर्वैः सदस्यैर्जनमेजयः।<BR>इदं पश्चाद्द्विजश्रेष्ठं पर्यपृच्छत्कृताञ्जलिः।। <td> 1-60-17a<BR>1-60-17b
 
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'''जनमेजय उवाच।''' <td> 1-60-18x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> कुरूणां पाण्डवानां च भवान्प्रत्यक्षदर्शिवान्।<BR>तेषां चरितमिच्छामि कथ्यमानं त्वया द्विज।। <td> 1-60-18a<BR>1-60-18b </p></tr>
 
कुरूणां पाण्डवानां च भवान्प्रत्यक्षदर्शिवान्।<BR>तेषां चरितमिच्छामि कथ्यमानं त्वया द्विज।। <td> 1-60-18a<BR>1-60-18b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> कथं समभवद्भेदस्तेषामक्लिष्टकर्मणाम्।<BR>तच्च युद्धं कथं वृत्तं भूतान्तकरणं महत्।। <td> 1-60-19a<BR>1-60-19b </p></tr>
 
कथं समभवद्भेदस्तेषामक्लिष्टकर्मणाम्।<BR>तच्च युद्धं कथं वृत्तं भूतान्तकरणं महत्।। <td> 1-60-19a<BR>1-60-19b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> पितामहानां सर्वेषां दैवेनाविष्टचेतसाम्।<BR>कार्त्स्न्येनैतन्ममाचक्ष्व यथा वृत्तं द्विजोत्तम।<BR>`इच्छामि तत्त्वतः श्रोतुं भगवन्कुशलो ह्यसि'।। <td> 1-60-20a<BR>1-60-20b<BR>1-60-20c </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>सौतिरुवाच।</B> <td> 1-60-21x </p></tr>
पितामहानां सर्वेषां दैवेनाविष्टचेतसाम्।<BR>कार्त्स्न्येनैतन्ममाचक्ष्व यथा वृत्तं द्विजोत्तम।<BR>`इच्छामि तत्त्वतः श्रोतुं भगवन्कुशलो ह्यसि'।। <td> 1-60-20a<BR>1-60-20b<BR>1-60-20c
 
</tr>
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'''सौतिरुवाच।''' <td> 1-60-21x
 
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<tr><td><p> तस्य तद्वचनं श्रुत्वा कृष्णद्वैपायनस्तदा।<BR>शशास शिष्यमासीनं वैशंपायनमन्तिके।। <td> 1-60-21a<BR>1-60-21b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>व्यास उवाच।</B> <td> 1-60-22x </p></tr>
तस्य तद्वचनं श्रुत्वा कृष्णद्वैपायनस्तदा।<BR>शशास शिष्यमासीनं वैशंपायनमन्तिके।। <td> 1-60-21a<BR>1-60-21b
 
</tr>
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'''व्यास उवाच।''' <td> 1-60-22x
 
</tr>
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<tr><td><p> कुरूणां पाण्डवानां च यथा भेदोऽभवत्पुरा।<BR>तदस्मै सर्वमाचक्ष्व यन्मत्तः श्रुतवानसि।। <td> 1-60-22a<BR>1-60-22b </p></tr>
 
कुरूणां पाण्डवानां च यथा भेदोऽभवत्पुरा।<BR>तदस्मै सर्वमाचक्ष्व यन्मत्तः श्रुतवानसि।। <td> 1-60-22a<BR>1-60-22b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> गुरोर्वचनमाज्ञाय स तु विप्रर्षभस्तदा।<BR>आचचक्षे ततः सर्वमितिहासं पुरातनम्।। <td> 1-60-23a<BR>1-60-23b </p></tr>
 
गुरोर्वचनमाज्ञाय स तु विप्रर्षभस्तदा।<BR>आचचक्षे ततः सर्वमितिहासं पुरातनम्।। <td> 1-60-23a<BR>1-60-23b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> राज्ञे तस्मै सदस्येभ्यः पार्थिवेभ्यश्च सर्वशः।<BR>भेदं सर्वविनाशं च कुरुपाण्डवयोस्तदा।। <td> 1-60-24a<BR>1-60-24b </p></tr>
 
<tr><td><p> ।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि <BR>अंशावतरणपर्वणि षष्टितमोऽध्यायः।। 60 ।। <td> </p></tr></table>
राज्ञे तस्मै सदस्येभ्यः पार्थिवेभ्यश्च सर्वशः।<BR>भेदं सर्वविनाशं च कुरुपाण्डवयोस्तदा।। <td> 1-60-24a<BR>1-60-24b
 
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<tr><td>
 
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि <BR>अंशावतरणपर्वणि षष्टितमोऽध्यायः।। 60 ।। <td>
 
</tr></table>
= =
1-60-2 काली सत्यवती।।
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}}
 
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