"महाभारतम्-01-आदिपर्व-212" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः १५:
सैव नालायनी तव दुहिता जातेति द्रुपदं प्रति व्यासस्योक्तिः।। 4 ।।
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<tr><td><p> <B>

'''व्यास उवाच।</B>''' <td> 1-212-1x </p>

</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> मा भूद्राजंस्तव तापो मनस्थः<BR>पञ्चानां भार्या दुहिता ममेति।<BR>मातुरेषा प्रार्थिता स्यात्तदानीं<BR>पञ्चानां भार्या दुहिता ममेति।। <td> 1-212-1a<BR>1-212-1b<BR>1-212-1c<BR>1-212-1d </p></tr>
 
मा भूद्राजंस्तव तापो मनस्थः<BR>पञ्चानां भार्या दुहिता ममेति।<BR>मातुरेषा प्रार्थिता स्यात्तदानीं<BR>पञ्चानां भार्या दुहिता ममेति।। <td> 1-212-1a<BR>1-212-1b<BR>1-212-1c<BR>1-212-1d
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> याजोपयाजौ धर्मरतौ तपोभ्यां<BR>तौ चक्रतुः पञ्चपतित्वमस्याः।<BR>तत्पञ्चभिः पाण्डुसुतैरवाप्ता<BR>भार्या कृष्णा मोदतां वै कुलं ते।। <td> 1-212-2a<BR>1-212-2b<BR>1-212-2c<BR>1-212-2d </p></tr>
 
याजोपयाजौ धर्मरतौ तपोभ्यां<BR>तौ चक्रतुः पञ्चपतित्वमस्याः।<BR>तत्पञ्चभिः पाण्डुसुतैरवाप्ता<BR>भार्या कृष्णा मोदतां वै कुलं ते।। <td> 1-212-2a<BR>1-212-2b<BR>1-212-2c<BR>1-212-2d
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> लोके नान्यो विद्यते त्वद्विशिष्टः<BR>सर्वारीणामप्रधृष्योऽसि राजन्।<BR>भूयस्त्विदं शृणु मे त्वं विशोको<BR>यथाऽऽगतं पञ्चपत्नीत्वमस्याः।। <td> 1-212-3a<BR>1-212-3c<BR>1-212-3d<BR>1-212-3b </p></tr>
 
लोके नान्यो विद्यते त्वद्विशिष्टः<BR>सर्वारीणामप्रधृष्योऽसि राजन्।<BR>भूयस्त्विदं शृणु मे त्वं विशोको<BR>यथाऽऽगतं पञ्चपत्नीत्वमस्याः।। <td> 1-212-3a<BR>1-212-3c<BR>1-212-3d<BR>1-212-3b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> एषा नालायनी पूर्वं मौद्गल्यं स्थविरं पतिम्।<BR>आराधयामास तदा कुष्ठिनं तमनिन्दिता।। <td> 1-212-4a<BR>1-212-4b </p></tr>
 
एषा नालायनी पूर्वं मौद्गल्यं स्थविरं पतिम्।<BR>आराधयामास तदा कुष्ठिनं तमनिन्दिता।। <td> 1-212-4a<BR>1-212-4b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> त्वगस्थिभूतं कटुकं लोलमीर्ष्युं सुकोपनम्।<BR>सुगन्धेतरगन्धाढ्यं वलीपलितमूर्धजम्।। <td> 1-212-5a<BR>1-212-5b </p></tr>
 
त्वगस्थिभूतं कटुकं लोलमीर्ष्युं सुकोपनम्।<BR>सुगन्धेतरगन्धाढ्यं वलीपलितमूर्धजम्।। <td> 1-212-5a<BR>1-212-5b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> स्थविरं विकृताकारं शीर्यमाणनखत्वचम्।<BR>उच्छिष्टमुपभुञ्जाना पर्युपास्ते महामुनिम्।। <td> 1-212-6a<BR>1-212-6b </p></tr>
 
स्थविरं विकृताकारं शीर्यमाणनखत्वचम्।<BR>उच्छिष्टमुपभुञ्जाना पर्युपास्ते महामुनिम्।। <td> 1-212-6a<BR>1-212-6b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ततः कदाचिदङ्गुष्ठो भुञ्जानस्य व्यशीर्यत।<BR>अन्नादुद्धृत्य तच्चान्नमुपभुङ्क्तेऽविशङ्किता।। <td> 1-212-7a<BR>1-212-7b </p></tr>
 
ततः कदाचिदङ्गुष्ठो भुञ्जानस्य व्यशीर्यत।<BR>अन्नादुद्धृत्य तच्चान्नमुपभुङ्क्तेऽविशङ्किता।। <td> 1-212-7a<BR>1-212-7b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तेन तस्याः प्रसन्नेन कामव्याहारिणा तदा।<BR>वरं वृणीष्वेत्यसकृदुक्ता वव्रे वरं तदा।। <td> 1-212-8a<BR>1-212-8b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>मौद्गल्य उवाच।</B> <td> 1-212-9x </p></tr>
तेन तस्याः प्रसन्नेन कामव्याहारिणा तदा।<BR>वरं वृणीष्वेत्यसकृदुक्ता वव्रे वरं तदा।। <td> 1-212-8a<BR>1-212-8b
 
</tr>
<tr><td>
 
'''मौद्गल्य उवाच।''' <td> 1-212-9x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> नाहं वृद्धो न कटुको नेर्व्यावान्नैव कोपनः।<BR>न च दुर्गन्धवदनो न कृशो न च लोलुपः।। <td> 1-212-9a<BR>1-212-9b </p></tr>
 
नाहं वृद्धो न कटुको नेर्व्यावान्नैव कोपनः।<BR>न च दुर्गन्धवदनो न कृशो न च लोलुपः।। <td> 1-212-9a<BR>1-212-9b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> कथं त्वां रमयामीह कथं त्वां वासयाम्यहम्।<BR>वद कल्याणि भद्रं ते यथा त्वं मनसेच्छसि।। <td> 1-212-10a<BR>1-212-10b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>व्यास उवाच।</B> <td> 1-212-11x </p></tr>
कथं त्वां रमयामीह कथं त्वां वासयाम्यहम्।<BR>वद कल्याणि भद्रं ते यथा त्वं मनसेच्छसि।। <td> 1-212-10a<BR>1-212-10b
 
</tr>
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'''व्यास उवाच।''' <td> 1-212-11x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> सा तमक्लिष्टकर्माणं वरदं सर्वकामदम्।<BR>भर्तारमनवद्याङ्गी प्रसन्नं प्रत्युवाच ह।। <td> 1-212-11a<BR>1-212-11b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>नालायन्युवाच।</B> <td> 1-212-12x </p></tr>
सा तमक्लिष्टकर्माणं वरदं सर्वकामदम्।<BR>भर्तारमनवद्याङ्गी प्रसन्नं प्रत्युवाच ह।। <td> 1-212-11a<BR>1-212-11b
 
</tr>
<tr><td>
 
'''नालायन्युवाच।''' <td> 1-212-12x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> पञ्चधा प्रविभक्तात्मा भगवांल्लोकविश्रुतः।<BR>रमय त्वमचिन्त्यात्मन्पुनश्चैकत्वमागतः।। <td> 1-212-12a<BR>1-212-12b </p></tr>
 
पञ्चधा प्रविभक्तात्मा भगवांल्लोकविश्रुतः।<BR>रमय त्वमचिन्त्यात्मन्पुनश्चैकत्वमागतः।। <td> 1-212-12a<BR>1-212-12b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तां तथेत्यब्रवीद्धीमान्महर्षिर्वै महातपाः।<BR>स पञ्चधा तु भूत्वा तां रमयामास सर्वतः।। <td> 1-212-13a<BR>1-212-13b </p></tr>
 
तां तथेत्यब्रवीद्धीमान्महर्षिर्वै महातपाः।<BR>स पञ्चधा तु भूत्वा तां रमयामास सर्वतः।। <td> 1-212-13a<BR>1-212-13b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> नालायनीं सुकेशान्तां मौद्गल्यश्चारुहासिनीम्।<BR>आश्रमेष्वधिकं चापि पूज्यमानो महर्षिभिः।। <td> 1-212-14a<BR>1-212-14b </p></tr>
 
नालायनीं सुकेशान्तां मौद्गल्यश्चारुहासिनीम्।<BR>आश्रमेष्वधिकं चापि पूज्यमानो महर्षिभिः।। <td> 1-212-14a<BR>1-212-14b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> स चचार यथाकामं कामरूपवपुः पुनः।<BR>यदा ययौ दिवं चापि तत्र देवर्षिभिः सह।। <td> 1-212-15a<BR>1-212-15b </p></tr>
 
स चचार यथाकामं कामरूपवपुः पुनः।<BR>यदा ययौ दिवं चापि तत्र देवर्षिभिः सह।। <td> 1-212-15a<BR>1-212-15b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> चचार सोऽमृताहारः सुरलोके चचार ह।<BR>पूज्यमानस्तथा शच्या शक्रस्य भवनेष्वपि।। <td> 1-212-16a<BR>1-212-16b </p></tr>
 
चचार सोऽमृताहारः सुरलोके चचार ह।<BR>पूज्यमानस्तथा शच्या शक्रस्य भवनेष्वपि।। <td> 1-212-16a<BR>1-212-16b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> महेन्द्रसेनया सार्धं पर्यधावद्रिरंसया।<BR>सूर्यस्य च रथं दिव्यमारुह्य भगवान्प्रभुः।। <td> 1-212-17a<BR>1-212-17b </p></tr>
 
महेन्द्रसेनया सार्धं पर्यधावद्रिरंसया।<BR>सूर्यस्य च रथं दिव्यमारुह्य भगवान्प्रभुः।। <td> 1-212-17a<BR>1-212-17b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> पर्युपेत्य पुनर्मेरु मेरौ वासमरोचयत्।<BR>आकाशगङ्गामाप्लुत्य तया सह तपोधनः।। <td> 1-212-18a<BR>1-212-18b </p></tr>
 
पर्युपेत्य पुनर्मेरु मेरौ वासमरोचयत्।<BR>आकाशगङ्गामाप्लुत्य तया सह तपोधनः।। <td> 1-212-18a<BR>1-212-18b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> रश्मिजालेषु चन्द्रस्य उवाच च यथाऽनिलः।<BR>गिरिरूपधरो योगी स महर्षिस्तदा पुनः।। <td> 1-212-19a<BR>1-212-19b </p></tr>
 
रश्मिजालेषु चन्द्रस्य उवाच च यथाऽनिलः।<BR>गिरिरूपधरो योगी स महर्षिस्तदा पुनः।। <td> 1-212-19a<BR>1-212-19b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तत्प्रभावेन सा तस्य मध्ये जज्ञे महानदी।<BR>यदा पुष्पाकुलः सालः संजज्ञे भगवानृषिः।। <td> 1-212-20a<BR>1-212-20b </p></tr>
 
तत्प्रभावेन सा तस्य मध्ये जज्ञे महानदी।<BR>यदा पुष्पाकुलः सालः संजज्ञे भगवानृषिः।। <td> 1-212-20a<BR>1-212-20b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> लतात्वमनुसंपेदे तमेवाभ्यनुवेष्टती।<BR>पुपोष च वपुर्यस्य तस्य तस्यानुगं पुनः।। <td> 1-212-21a<BR>1-212-21b </p></tr>
 
लतात्वमनुसंपेदे तमेवाभ्यनुवेष्टती।<BR>पुपोष च वपुर्यस्य तस्य तस्यानुगं पुनः।। <td> 1-212-21a<BR>1-212-21b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> सा पुपोष समं भर्त्रा स्कन्धेनापि चचार ह।<BR>ततस्तस्य च तस्याश्च तुल्या प्रीतिरवर्धत।। <td> 1-212-22a<BR>1-212-22b </p></tr>
 
सा पुपोष समं भर्त्रा स्कन्धेनापि चचार ह।<BR>ततस्तस्य च तस्याश्च तुल्या प्रीतिरवर्धत।। <td> 1-212-22a<BR>1-212-22b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तथा सा भगवांस्तस्याः प्रसादादृषिसत्तमः।<BR>विरराम च सा चैव दैवयोगेन भामिनी।। <td> 1-212-23a<BR>1-212-23b </p></tr>
 
तथा सा भगवांस्तस्याः प्रसादादृषिसत्तमः।<BR>विरराम च सा चैव दैवयोगेन भामिनी।। <td> 1-212-23a<BR>1-212-23b
 
</tr>
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<tr><td><p> स च तां तपसा देवीं रमयामास योगतः।<BR>एकपत्नी तथा भूत्वा सदैवाग्रे यशस्विनी।। <td> 1-212-24a<BR>1-212-24b </p></tr>
 
स च तां तपसा देवीं रमयामास योगतः।<BR>एकपत्नी तथा भूत्वा सदैवाग्रे यशस्विनी।। <td> 1-212-24a<BR>1-212-24b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अरुन्धतीव सीतेव बभूवातिपतिव्रता।<BR>दमयन्त्याश्च मातुः स विशेषमधिकं ययौ।। <td> 1-212-25a<BR>1-212-25b </p></tr>
 
अरुन्धतीव सीतेव बभूवातिपतिव्रता।<BR>दमयन्त्याश्च मातुः स विशेषमधिकं ययौ।। <td> 1-212-25a<BR>1-212-25b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> एतत्तथ्यं महाराज मा ते भूद्बुद्धिरन्यथा।<BR>सा वै नालायनी जज्ञे दैवयोगेन केनचित्।। <td> 1-212-26a<BR>1-212-26b </p></tr>
 
एतत्तथ्यं महाराज मा ते भूद्बुद्धिरन्यथा।<BR>सा वै नालायनी जज्ञे दैवयोगेन केनचित्।। <td> 1-212-26a<BR>1-212-26b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> राजंस्तवात्मजा कृष्णा वेद्यां तेजस्विनी शुभा।<BR>तस्मिंस्तस्या मनः सक्तं न चचाल कदाचन।। <td> 1-212-27a<BR>1-212-27b </p></tr>
 
<tr><td><p> तथा प्रणिहितो ह्यात्मा तस्यास्तस्मिन्द्विजोत्तमे।। <td> 1-212-28a </p></tr>
राजंस्तवात्मजा कृष्णा वेद्यां तेजस्विनी शुभा।<BR>तस्मिंस्तस्या मनः सक्तं न चचाल कदाचन।। <td> 1-212-27a<BR>1-212-27b
<tr><td><p> ।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि <br>वैवाहिकपर्वणि द्वादशाधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 212 ।। <td> </p></tr></table>
 
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तथा प्रणिहितो ह्यात्मा तस्यास्तस्मिन्द्विजोत्तमे।। <td> 1-212-28a
 
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।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि <br>वैवाहिकपर्वणि द्वादशाधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 212 ।। <td>
 
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1-212-1 मातुः मात्रा। स्यात् अभूत्।।
1-212-10 कथं केन प्रकारेण।।
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