"महाभारतम्-01-आदिपर्व-219" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः १३:
धृतराष्ट्रसमीपे कर्णदुर्योधनयोर्भाषणम्।। 2 ।।
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<tr><td><p> <B>वैशंपायन उवाच।</B> <td> 1-219-1x </p></tr>
 
'''वैशंपायन उवाच।''' <td> 1-219-1x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> वृत्ते स्वयंवरे चैव राजानः सर्व एव ते।<BR>यथागतं विप्रजग्मुर्विदित्वा पाण्डवान्वृतान्।। <td> 1-219-1a<BR>1-219-1b </p></tr>
 
वृत्ते स्वयंवरे चैव राजानः सर्व एव ते।<BR>यथागतं विप्रजग्मुर्विदित्वा पाण्डवान्वृतान्।। <td> 1-219-1a<BR>1-219-1b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अथ दुर्योधनो राजा विमना भ्रातृभिः सह।<BR>अश्वत्थाम्ना मातुलेन कर्णेन च कृपेण च।। <td> 1-219-2a<BR>1-219-2b </p></tr>
 
अथ दुर्योधनो राजा विमना भ्रातृभिः सह।<BR>अश्वत्थाम्ना मातुलेन कर्णेन च कृपेण च।। <td> 1-219-2a<BR>1-219-2b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> विनिवृत्तो वृतं दृष्ट्वा द्रौपद्या श्वेतवाहनम्।<BR>तं तु दुःशासनोऽव्रीडो मन्दंमन्दमिवाब्रवीत्।। <td> 1-219-3a<BR>1-219-3b </p></tr>
 
विनिवृत्तो वृतं दृष्ट्वा द्रौपद्या श्वेतवाहनम्।<BR>तं तु दुःशासनोऽव्रीडो मन्दंमन्दमिवाब्रवीत्।। <td> 1-219-3a<BR>1-219-3b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> यद्यसौ ब्राह्मणो न स्याद्विन्देत द्रौपदीं न सः।<BR>न हि तं तत्त्वतो राजन्वेद कश्चिद्धनंजयम्।। <td> 1-219-4a<BR>1-219-4b </p></tr>
 
यद्यसौ ब्राह्मणो न स्याद्विन्देत द्रौपदीं न सः।<BR>न हि तं तत्त्वतो राजन्वेद कश्चिद्धनंजयम्।। <td> 1-219-4a<BR>1-219-4b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> दैवं च परमं मन्ये पौरुषं चाप्यनर्थकम्।<BR>धिगस्तु पौरुषं मन्त्रं यद्धरन्तीह पाण्डवाः।। <td> 1-219-5a<BR>1-219-5b </p></tr>
 
दैवं च परमं मन्ये पौरुषं चाप्यनर्थकम्।<BR>धिगस्तु पौरुषं मन्त्रं यद्धरन्तीह पाण्डवाः।। <td> 1-219-5a<BR>1-219-5b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> `बध्वा चक्षूंषि नः पार्था राज्ञां च द्रुपदात्मजाम्।<BR>उद्वाह्य राज्ञां तैर्न्यस्तो वामः पादः पृथासुतैः।। <td> 1-219-6a<BR>1-219-6b </p></tr>
 
`बध्वा चक्षूंषि नः पार्था राज्ञां च द्रुपदात्मजाम्।<BR>उद्वाह्य राज्ञां तैर्न्यस्तो वामः पादः पृथासुतैः।। <td> 1-219-6a<BR>1-219-6b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> विमुक्ताः कथमेतेन जतुवेश्मविर्भुजः।<BR>अस्माकं पौरुषं सत्वं बुद्धिश्चापि गता ततः।। <td> 1-219-7a<BR>1-219-7b </p></tr>
 
विमुक्ताः कथमेतेन जतुवेश्मविर्भुजः।<BR>अस्माकं पौरुषं सत्वं बुद्धिश्चापि गता ततः।। <td> 1-219-7a<BR>1-219-7b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> वयं हता मातुलाद्य विश्वस्य च पुरोचनम्।<BR>अदग्ध्वा पाण्डवानेतान्स्वयं दग्धो हुताशने।। <td> 1-219-8a<BR>1-219-8b </p></tr>
 
वयं हता मातुलाद्य विश्वस्य च पुरोचनम्।<BR>अदग्ध्वा पाण्डवानेतान्स्वयं दग्धो हुताशने।। <td> 1-219-8a<BR>1-219-8b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> मत्तो मातुल मन्येऽहं पाण्डवा बुद्धिमत्तराः।<BR>तेषां नास्ति भयं मृत्योर्मुक्तानां जतुवेश्मनः।। <td> 1-219-9a<BR>1-219-9b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>वैशंपावयन उवाच।</B> <td> 1-219-10x </p></tr>
मत्तो मातुल मन्येऽहं पाण्डवा बुद्धिमत्तराः।<BR>तेषां नास्ति भयं मृत्योर्मुक्तानां जतुवेश्मनः।। <td> 1-219-9a<BR>1-219-9b
 
</tr>
<tr><td>
 
'''वैशंपावयन उवाच।''' <td> 1-219-10x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> एवं संभाषमाणास्ते निन्दन्तश्च पुरोचनम्।<BR>पञ्चपुत्रां किरातीं च विदुरं च महामतिम्।।' <td> 1-219-10a<BR>1-219-10b </p></tr>
 
<tr><td><p> विविशुर्हास्तिनपुरं दीना विगतचेतसः।। <td> 1-219-11a </p></tr>
एवं संभाषमाणास्ते निन्दन्तश्च पुरोचनम्।<BR>पञ्चपुत्रां किरातीं च विदुरं च महामतिम्।।' <td> 1-219-10a<BR>1-219-10b
 
</tr>
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विविशुर्हास्तिनपुरं दीना विगतचेतसः।। <td> 1-219-11a
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> त्रस्ता विगतसंकल्पा दृष्ट्वा पार्थान्महौजसः।<BR>मुक्तान्हव्यभुजश्चैव संयुक्तान्द्रुपदेन च।। <td> 1-219-12a<BR>1-219-12b </p></tr>
 
त्रस्ता विगतसंकल्पा दृष्ट्वा पार्थान्महौजसः।<BR>मुक्तान्हव्यभुजश्चैव संयुक्तान्द्रुपदेन च।। <td> 1-219-12a<BR>1-219-12b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> धृष्टद्युम्नं तु संचिन्त्य तथैव च शिखण्डिनम्।<BR>द्रुपदस्यात्मजांश्चान्यान्सर्वयुद्धविशारदान्।। <td> 1-219-13a<BR>1-219-13b </p></tr>
 
धृष्टद्युम्नं तु संचिन्त्य तथैव च शिखण्डिनम्।<BR>द्रुपदस्यात्मजांश्चान्यान्सर्वयुद्धविशारदान्।। <td> 1-219-13a<BR>1-219-13b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> विदुरस्त्वथ ताञ्श्रुत्वा द्रौपद्या पाण्डवान्वृतान्।<BR>व्रीडितान्धार्तराष्ट्रांश्च भग्नदर्पानुपागतान्।। <td> 1-219-14a<BR>1-219-14b </p></tr>
 
विदुरस्त्वथ ताञ्श्रुत्वा द्रौपद्या पाण्डवान्वृतान्।<BR>व्रीडितान्धार्तराष्ट्रांश्च भग्नदर्पानुपागतान्।। <td> 1-219-14a<BR>1-219-14b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ततः प्रीतमनाः क्षत्ता धृतराष्ट्रं विशांपते।<BR>उवाच दिष्ट्या कुरवो वर्ध्त इति विस्मितः।। <td> 1-219-15a<BR>1-219-15b </p></tr>
 
ततः प्रीतमनाः क्षत्ता धृतराष्ट्रं विशांपते।<BR>उवाच दिष्ट्या कुरवो वर्ध्त इति विस्मितः।। <td> 1-219-15a<BR>1-219-15b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> वैचित्रवीर्यस्तु नृपो निशम्य विदुरस्य तत्।<BR>अब्रवीत्परमप्रीतो दिष्ट्या दिष्ट्येति भारत।। <td> 1-219-16a<BR>1-219-16b </p></tr>
 
वैचित्रवीर्यस्तु नृपो निशम्य विदुरस्य तत्।<BR>अब्रवीत्परमप्रीतो दिष्ट्या दिष्ट्येति भारत।। <td> 1-219-16a<BR>1-219-16b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> मन्यते स वृतं पुत्रं ज्येष्ठं द्रुपदकन्यया।<BR>दुर्योधनमविज्ञानात्प्रज्ञाचक्षुर्नरेश्वरः।। <td> 1-219-17a<BR>1-219-17b </p></tr>
 
मन्यते स वृतं पुत्रं ज्येष्ठं द्रुपदकन्यया।<BR>दुर्योधनमविज्ञानात्प्रज्ञाचक्षुर्नरेश्वरः।। <td> 1-219-17a<BR>1-219-17b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अथ त्वाज्ञापयामास द्रौपद्या भूषणं बहु।<BR>आनीयतां वै कृष्णेति पुत्रं दुर्योधनं तदा।। <td> 1-219-18a<BR>1-219-18b </p></tr>
 
अथ त्वाज्ञापयामास द्रौपद्या भूषणं बहु।<BR>आनीयतां वै कृष्णेति पुत्रं दुर्योधनं तदा।। <td> 1-219-18a<BR>1-219-18b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> `अथ स्म पश्चाद्विदुर आचख्यावम्बिकात्मजम्।<BR>कौरव्या इति सामान्यान्न मन्येथास्तवात्मजान्।। <td> 1-219-19a<BR>1-219-19b </p></tr>
 
`अथ स्म पश्चाद्विदुर आचख्यावम्बिकात्मजम्।<BR>कौरव्या इति सामान्यान्न मन्येथास्तवात्मजान्।। <td> 1-219-19a<BR>1-219-19b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> वर्धन्त इति मद्वाक्याद्वर्धिताः पाण्डुनन्दनाः।<BR>कृष्णया संवृताः पार्था विमुक्ता राजसङ्गरात्।। <td> 1-219-20a<BR>1-219-20b </p></tr>
 
<tr><td><p> दिष्ट्या कुशलिनो राजन्पूजिता द्रुपदेन च।। <td> 1-219-21a </p></tr>
वर्धन्त इति मद्वाक्याद्वर्धिताः पाण्डुनन्दनाः।<BR>कृष्णया संवृताः पार्था विमुक्ता राजसङ्गरात्।। <td> 1-219-20a<BR>1-219-20b
<tr><td><p> <B>वैशंपायन उवाच।</B> <td> 1-219-22x </p></tr>
 
</tr>
<tr><td>
 
दिष्ट्या कुशलिनो राजन्पूजिता द्रुपदेन च।। <td> 1-219-21a
 
</tr>
<tr><td>
 
'''वैशंपायन उवाच।''' <td> 1-219-22x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> एतच्छ्रुत्वा तु वचनं विदुरस्य नराधिपः।<BR>आकारच्छादनार्थाय दिष्ट्यादिष्ट्येति चाब्रवीत्।। <td> 1-219-22a<BR>1-219-22b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>धृतराष्ट्र उवाच।</B> <td> 1-219-23x </p></tr>
एतच्छ्रुत्वा तु वचनं विदुरस्य नराधिपः।<BR>आकारच्छादनार्थाय दिष्ट्यादिष्ट्येति चाब्रवीत्।। <td> 1-219-22a<BR>1-219-22b
 
</tr>
<tr><td>
 
'''धृतराष्ट्र उवाच।''' <td> 1-219-23x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> एवं विदुर भद्रं ते यदि जीवन्ति पाण्डवाः।<BR>न ममौ मे तनौ प्रीतिस्त्वद्वाक्यामृतसंभवा।। <td> 1-219-23a<BR>1-219-23b </p></tr>
 
एवं विदुर भद्रं ते यदि जीवन्ति पाण्डवाः।<BR>न ममौ मे तनौ प्रीतिस्त्वद्वाक्यामृतसंभवा।। <td> 1-219-23a<BR>1-219-23b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> साध्वाचारतया तेषां संबन्धो द्रुपदेन च।<BR>बभूव परमश्लाघ्यो दिष्ट्यादिष्ट्येति चाब्रवीत्।। <td> 1-219-24a<BR>1-219-24b </p></tr>
 
साध्वाचारतया तेषां संबन्धो द्रुपदेन च।<BR>बभूव परमश्लाघ्यो दिष्ट्यादिष्ट्येति चाब्रवीत्।। <td> 1-219-24a<BR>1-219-24b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अन्ववाये वसोर्जातः प्रवरे मात्स्यके कुले।<BR>वृत्तविद्यातपोवृद्धः पार्थिवानां च संमतः।। <td> 1-219-25a<BR>1-219-25b </p></tr>
 
अन्ववाये वसोर्जातः प्रवरे मात्स्यके कुले।<BR>वृत्तविद्यातपोवृद्धः पार्थिवानां च संमतः।। <td> 1-219-25a<BR>1-219-25b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> पुत्राश्चास्य तथा पौत्राः सर्वे सुचरितव्रताः।<BR>तेषां संबन्धिनश्चान्ये बहवः सुमहाबलाः।। <td> 1-219-26a<BR>1-219-26b </p></tr>
 
पुत्राश्चास्य तथा पौत्राः सर्वे सुचरितव्रताः।<BR>तेषां संबन्धिनश्चान्ये बहवः सुमहाबलाः।। <td> 1-219-26a<BR>1-219-26b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> यथैव पाण्डोः पुत्रास्ते ततोऽप्यभ्यधिका मम।<BR>सेयमभ्यधिकान्येभ्यो वृत्तिर्विदुर मे मता।। <td> 1-219-27a<BR>1-219-27b </p></tr>
 
यथैव पाण्डोः पुत्रास्ते ततोऽप्यभ्यधिका मम।<BR>सेयमभ्यधिकान्येभ्यो वृत्तिर्विदुर मे मता।। <td> 1-219-27a<BR>1-219-27b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> या प्रीतिः पाण्डुपुत्रेषु न साऽन्यत्र ममाभिभो।<BR>नित्योऽयं चिन्तितः क्षत्तः सत्यं सत्येन शपे।। <td> 1-219-28a<BR>1-219-28b </p></tr>
 
या प्रीतिः पाण्डुपुत्रेषु न साऽन्यत्र ममाभिभो।<BR>नित्योऽयं चिन्तितः क्षत्तः सत्यं सत्येन शपे।। <td> 1-219-28a<BR>1-219-28b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> यत्ते कुशलिनो वीराः पाण्डुपुत्रा महारथाः।<BR>मित्रवन्तोऽभवन्पुत्रा दुर्योधनमुखास्तथा।। <td> 1-219-29a<BR>1-219-29b </p></tr>
 
यत्ते कुशलिनो वीराः पाण्डुपुत्रा महारथाः।<BR>मित्रवन्तोऽभवन्पुत्रा दुर्योधनमुखास्तथा।। <td> 1-219-29a<BR>1-219-29b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> मया श्रुतं यदा वह्नेर्दग्धाः पाण्डुसुता इति।<BR>तदाऽदह्यं दिवारात्रं न भोक्ष्ये न स्वपामि च।। <td> 1-219-30a<BR>1-219-30b </p></tr>
 
मया श्रुतं यदा वह्नेर्दग्धाः पाण्डुसुता इति।<BR>तदाऽदह्यं दिवारात्रं न भोक्ष्ये न स्वपामि च।। <td> 1-219-30a<BR>1-219-30b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> असहायाश्चं मे पुत्रा लूनपक्षा इव द्विजाः।<BR>तत्त्वतः शृणु मे क्षत्तः सुसहायाः सुता मम।<BR>अद्य वै स्थिरसाम्राज्यमाचन्द्रार्कं ममाभवत्।।' <td> 1-219-31a<BR>1-219-31b<BR>1-219-31c </p></tr>
 
असहायाश्चं मे पुत्रा लूनपक्षा इव द्विजाः।<BR>तत्त्वतः शृणु मे क्षत्तः सुसहायाः सुता मम।<BR>अद्य वै स्थिरसाम्राज्यमाचन्द्रार्कं ममाभवत्।।' <td> 1-219-31a<BR>1-219-31b<BR>1-219-31c
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> को हि द्रुपदमासाद्य मित्रं क्षत्तः सबान्धवम्।<BR>न बुभूषेद्भवेनार्थी गतश्रीरपि पार्थिवः।। <td> 1-219-32a<BR>1-219-32b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>वैशंपायन उवाच।</B> <td> 1-219-33x </p></tr>
को हि द्रुपदमासाद्य मित्रं क्षत्तः सबान्धवम्।<BR>न बुभूषेद्भवेनार्थी गतश्रीरपि पार्थिवः।। <td> 1-219-32a<BR>1-219-32b
 
</tr>
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'''वैशंपायन उवाच।''' <td> 1-219-33x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> तं तथा भाषमाणं तु विदुरः प्रत्यभाषत।<BR>नित्यं भवतु ते बुद्धिरेषा राजञ्छतं समाः।<BR>इत्युक्त्वा प्रययौ राजन्विदुरः स्वं निवेशनम्।। <td> 1-219-33a<BR>1-219-33b<BR>1-219-33c </p></tr>
 
तं तथा भाषमाणं तु विदुरः प्रत्यभाषत।<BR>नित्यं भवतु ते बुद्धिरेषा राजञ्छतं समाः।<BR>इत्युक्त्वा प्रययौ राजन्विदुरः स्वं निवेशनम्।। <td> 1-219-33a<BR>1-219-33b<BR>1-219-33c
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ततो दुर्योधनश्चापि राधेयश्च विशांपते।<BR>धृतराष्ट्रमुपागम्य वचोऽब्रूतामिदं तदा।। <td> 1-219-34a<BR>1-219-34b </p></tr>
 
ततो दुर्योधनश्चापि राधेयश्च विशांपते।<BR>धृतराष्ट्रमुपागम्य वचोऽब्रूतामिदं तदा।। <td> 1-219-34a<BR>1-219-34b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> सन्निधौ विदुरस्य त्वां दोषं वक्तुं न शक्नुवः।<BR>विविक्तमिति वक्ष्यावः किं तवेदं चिकीर्षितम्।। <td> 1-219-35a<BR>1-219-35b </p></tr>
 
सन्निधौ विदुरस्य त्वां दोषं वक्तुं न शक्नुवः।<BR>विविक्तमिति वक्ष्यावः किं तवेदं चिकीर्षितम्।। <td> 1-219-35a<BR>1-219-35b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> सपत्नवृद्धिं यत्तात मन्यसे वृद्धिमात्मनः।<BR>अभिष्टौषि च यत्क्षत्तुः समीपे द्विपदांवर।। <td> 1-219-36a<BR>1-219-36b </p></tr>
 
सपत्नवृद्धिं यत्तात मन्यसे वृद्धिमात्मनः।<BR>अभिष्टौषि च यत्क्षत्तुः समीपे द्विपदांवर।। <td> 1-219-36a<BR>1-219-36b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अन्यस्मिन्नृप कर्तव्ये त्वमन्यत्कुरुषेऽनघ।<BR>तेषां बलविघातो हि कर्तव्यस्तात नित्यशः।। <td> 1-219-37a<BR>1-219-37b </p></tr>
 
अन्यस्मिन्नृप कर्तव्ये त्वमन्यत्कुरुषेऽनघ।<BR>तेषां बलविघातो हि कर्तव्यस्तात नित्यशः।। <td> 1-219-37a<BR>1-219-37b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ते वयं प्राप्तकालस्य चिकीर्षां मन्त्रयामहे।<BR>यथा नो न ग्रसेयुस्ते सपुत्रबलबान्धवान्।। <td> 1-219-38a<BR>1-219-38b </p></tr>
 
<tr><td><p> ।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वमि <br>विदुरागमनराज्यलाभपर्वणि <br>एकोनविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 219 ।। <td> </p></tr></table>
ते वयं प्राप्तकालस्य चिकीर्षां मन्त्रयामहे।<BR>यथा नो न ग्रसेयुस्ते सपुत्रबलबान्धवान्।। <td> 1-219-38a<BR>1-219-38b
 
</tr>
<tr><td>
 
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वमि <br>विदुरागमनराज्यलाभपर्वणि <br>एकोनविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 219 ।। <td>
 
</tr></table>
1-219-32 गतश्रीर्नष्टश्रीः को भवेन ऐश्वर्येणार्थी न बुभूषेद्भवितुमिच्छेदपि तु सर्वोपीच्छेत्।।
एकोनविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 219 ।।
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