"महाभारतम्-17-महाप्रस्थानिकपर्व-001" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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{{महाभारतम्}}
भ्रातृभिर्द्रौपद्या च सह स्वर्गे जिगमिषुणा युधिष्ठिरेण युयुत्सौ राज्यभारनिवेशनपूर्वकं परिक्षितो राज्येऽभिषेचनम्।। 1 ।।<br>
तथा कृच्छ्रात्पौरानुमतिसंपादनेन वल्कलधारणादिपूर्वकं शुना सह गृहात्प्रस्थानम्।। 2 ।।<br>
अर्जुनेन मध्येमार्गमग्निवचसा सनिषङ्गस्य गाण्डीवस्य वरुणोद्देशेन समुद्रे प्रक्षेपणम्।। 3 ।।
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<tr><td>
<tr><td><p> <B>श्रीवेदव्यासाय नमः।</B> <td> 17-1-1x </p></tr>
 
'''श्रीवेदव्यासाय नमः।''' <td> 17-1-1x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> नारायणं नमस्कृत्यि नरं चैव नरोत्तमम्।<BR>देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्।। <td> 17-1-1a<BR>17-1-1b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>जनमेजय उवाच।</B> <td> 17-1-1x </p></tr>
नारायणं नमस्कृत्यि नरं चैव नरोत्तमम्।<BR>देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्।। <td> 17-1-1a<BR>17-1-1b
 
</tr>
<tr><td>
 
'''जनमेजय उवाच।''' <td> 17-1-1x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> एवं वृष्ण्यन्धककुले श्रुत्वा मौसलमाहवम्।<BR>पाण्डवाः किमकुर्वन्त तथा कृष्णे दिवं गते।। <td> 17-1-1a<BR>17-1-1b </p></tr>
 
<tr><td><p> <B>वैशम्पायन उवाच।</B> <td> 17-1-2x </p></tr>
एवं वृष्ण्यन्धककुले श्रुत्वा मौसलमाहवम्।<BR>पाण्डवाः किमकुर्वन्त तथा कृष्णे दिवं गते।। <td> 17-1-1a<BR>17-1-1b
 
</tr>
<tr><td>
 
'''वैशम्पायन उवाच।''' <td> 17-1-2x
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> श्रुत्वैवं कौरवो राजा वृष्णीनां कदनं महत्।<BR>प्रस्थाने मतिमाधाय वाक्यमर्जुनमब्रवीत्।। <td> 17-1-2a<BR>17-1-2b </p></tr>
 
श्रुत्वैवं कौरवो राजा वृष्णीनां कदनं महत्।<BR>प्रस्थाने मतिमाधाय वाक्यमर्जुनमब्रवीत्।। <td> 17-1-2a<BR>17-1-2b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> कालः पचति भतानि सर्वाण्येव महामते।<BR>कालपाशमहं मन्ये त्वमपि द्रष्टुमर्हसि।। <td> 17-1-3a<BR>17-1-3b </p></tr>
 
कालः पचति भतानि सर्वाण्येव महामते।<BR>कालपाशमहं मन्ये त्वमपि द्रष्टुमर्हसि।। <td> 17-1-3a<BR>17-1-3b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> इत्युक्तः स तु कौन्तेयः कालः काल इति ब्रुवन्।<BR>अन्वपद्यत तद्वाक्यं भ्रातुर्ज्येष्ठस्य धीमतः।। <td> 17-1-4a<BR>17-1-4b </p></tr>
 
इत्युक्तः स तु कौन्तेयः कालः काल इति ब्रुवन्।<BR>अन्वपद्यत तद्वाक्यं भ्रातुर्ज्येष्ठस्य धीमतः।। <td> 17-1-4a<BR>17-1-4b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अर्जुनस्य मतं ज्ञात्वा भीमसेनो यमौ तथा।<BR>अन्वपद्यन्त तद्वाक्यं यदुक्तं सव्यसाचिना।। <td> 17-1-5a<BR>17-1-5b </p></tr>
 
अर्जुनस्य मतं ज्ञात्वा भीमसेनो यमौ तथा।<BR>अन्वपद्यन्त तद्वाक्यं यदुक्तं सव्यसाचिना।। <td> 17-1-5a<BR>17-1-5b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ततो युयुत्सुमानाय्य प्रव्रजन्धर्मकाम्यया।<BR>राज्यं परिददौ सर्वं वैश्यापुत्रे युधिष्ठिरः।। <td> 17-1-6a<BR>17-1-6b </p></tr>
 
ततो युयुत्सुमानाय्य प्रव्रजन्धर्मकाम्यया।<BR>राज्यं परिददौ सर्वं वैश्यापुत्रे युधिष्ठिरः।। <td> 17-1-6a<BR>17-1-6b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अभिंषिच्य स्वराज्ये च राजानं च परिक्षितम्।<BR>दुःखार्तश्चाब्रवीद्राजा सुभद्रां पाण्डवाग्रजः।। <td> 17-1-7a<BR>17-1-7b </p></tr>
 
अभिंषिच्य स्वराज्ये च राजानं च परिक्षितम्।<BR>दुःखार्तश्चाब्रवीद्राजा सुभद्रां पाण्डवाग्रजः।। <td> 17-1-7a<BR>17-1-7b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> एष पुत्रस्य पुत्रस्ते कुरुराजो भविष्यति।<BR>यदूनां परिशेषश्च वज्रो राजा कृतश्च ह।। <td> 17-1-8a<BR>17-1-8b </p></tr>
 
एष पुत्रस्य पुत्रस्ते कुरुराजो भविष्यति।<BR>यदूनां परिशेषश्च वज्रो राजा कृतश्च ह।। <td> 17-1-8a<BR>17-1-8b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> परिक्षिद्धास्तिनपुरे शक्रप्रस्थे च यादवः।<BR>वज्रो राजा त्वया रक्ष्यो मा चाधर्मे मनः कृथाः।। <td> 17-1-9a<BR>17-1-9b </p></tr>
 
परिक्षिद्धास्तिनपुरे शक्रप्रस्थे च यादवः।<BR>वज्रो राजा त्वया रक्ष्यो मा चाधर्मे मनः कृथाः।। <td> 17-1-9a<BR>17-1-9b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> इत्युक्त्वा धर्मराजाः स वासुदेवस्य धीमतः।<BR>मातुलस्य च वृद्धस्य रामदीनां तथैव च।। <td> 17-1-10a<BR>17-1-10b </p></tr>
 
इत्युक्त्वा धर्मराजाः स वासुदेवस्य धीमतः।<BR>मातुलस्य च वृद्धस्य रामदीनां तथैव च।। <td> 17-1-10a<BR>17-1-10b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> भ्रातृभिः सह धर्मात्मा कृत्वोदकमतन्द्रितः।<BR>श्राद्धान्यद्दिश्य सर्वेषां चकार विदिवत्तदा।। <td> 17-1-11a<BR>17-1-11b </p></tr>
 
भ्रातृभिः सह धर्मात्मा कृत्वोदकमतन्द्रितः।<BR>श्राद्धान्यद्दिश्य सर्वेषां चकार विदिवत्तदा।। <td> 17-1-11a<BR>17-1-11b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> द्वैपायनं नारदं च मार्कण्डेयं तपोधनम्।<BR>भारद्वाजं याज्ञवल्क्यं हरिमुद्दिश्य यत्नवान्।<BR>अभोजयत्स्वादु भोज्यं कीर्तयित्वा च शार्ङ्गिणं।। <td> 17-1-12a<BR>17-1-12b<BR>17-1-12c </p></tr>
 
द्वैपायनं नारदं च मार्कण्डेयं तपोधनम्।<BR>भारद्वाजं याज्ञवल्क्यं हरिमुद्दिश्य यत्नवान्।<BR>अभोजयत्स्वादु भोज्यं कीर्तयित्वा च शार्ङ्गिणं।। <td> 17-1-12a<BR>17-1-12b<BR>17-1-12c
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ददौ रत्नानि वासांसि ग्रामानश्वान्रथांस्तथा।<BR>स्त्रियश्च द्विजमुख्येभ्यस्तदा शतसहस्रशः।। <td> 17-1-13a<BR>17-1-13b </p></tr>
 
ददौ रत्नानि वासांसि ग्रामानश्वान्रथांस्तथा।<BR>स्त्रियश्च द्विजमुख्येभ्यस्तदा शतसहस्रशः।। <td> 17-1-13a<BR>17-1-13b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> कृपमभ्यर्च्य च गुरुमथ पौरपुरस्कृतम्।<BR>`आहूय भरतश्रेष्ठ संनिवेश्यासने तदा।'<BR>शिष्यं परिक्षितं तस्मै तदौ भरतसत्तमः।। <td> 17-1-14a<BR>17-1-14b<BR>17-1-14c </p></tr>
 
कृपमभ्यर्च्य च गुरुमथ पौरपुरस्कृतम्।<BR>`आहूय भरतश्रेष्ठ संनिवेश्यासने तदा।'<BR>शिष्यं परिक्षितं तस्मै तदौ भरतसत्तमः।। <td> 17-1-14a<BR>17-1-14b<BR>17-1-14c
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ततस्तु प्रकृतीः सर्वाः समानाय्य युधिष्ठिरः।<BR>सर्वमाचष्ट राजर्षिकीर्षितमथात्मनः।। <td> 17-1-15a<BR>17-1-15b </p></tr>
 
ततस्तु प्रकृतीः सर्वाः समानाय्य युधिष्ठिरः।<BR>सर्वमाचष्ट राजर्षिकीर्षितमथात्मनः।। <td> 17-1-15a<BR>17-1-15b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ते श्रुत्वैव वचस्तस्य पौरजानपदा जनाः।<BR>भृशमुद्विग्रमनसो नाभ्यनन्दन्त तद्वचः।। <td> 17-1-16a<BR>17-1-16b </p></tr>
 
ते श्रुत्वैव वचस्तस्य पौरजानपदा जनाः।<BR>भृशमुद्विग्रमनसो नाभ्यनन्दन्त तद्वचः।। <td> 17-1-16a<BR>17-1-16b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> नैवं कर्तव्यमिति ते तदोचुस्तं जनाधिपम्।<BR>न च राजा तथाऽकार्षीत्कालपर्यायधर्मिवित्।। <td> 17-1-17a<BR>17-1-17b </p></tr>
 
नैवं कर्तव्यमिति ते तदोचुस्तं जनाधिपम्।<BR>न च राजा तथाऽकार्षीत्कालपर्यायधर्मिवित्।। <td> 17-1-17a<BR>17-1-17b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ततोऽनुमान्य धर्मात्मा पौरजानपदं जनम्।<BR>गमनाय मतिं चक्रे कृष्णस्य गमनादपि।। <td> 17-1-18a<BR>17-1-18b </p></tr>
 
ततोऽनुमान्य धर्मात्मा पौरजानपदं जनम्।<BR>गमनाय मतिं चक्रे कृष्णस्य गमनादपि।। <td> 17-1-18a<BR>17-1-18b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> `वर्तमाने विवादे तु वास्तुविक्रयिणं प्रति।<BR>धनेच्छा युगपत्प्राप्ता क्षेत्रतस्वामिभूभृताम्।। <td> 17-1-19a<BR>17-1-19b </p></tr>
 
`वर्तमाने विवादे तु वास्तुविक्रयिणं प्रति।<BR>धनेच्छा युगपत्प्राप्ता क्षेत्रतस्वामिभूभृताम्।। <td> 17-1-19a<BR>17-1-19b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> प्राप्तं कलियुगं ज्ञात्वा सहदेवो हसन्निव।<BR>राज्ञस्तु कथयामास धर्मो नष्टस्तु सङ्करः।। <td> 17-1-20a<BR>17-1-20b </p></tr>
 
प्राप्तं कलियुगं ज्ञात्वा सहदेवो हसन्निव।<BR>राज्ञस्तु कथयामास धर्मो नष्टस्तु सङ्करः।। <td> 17-1-20a<BR>17-1-20b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> श्रुत्वा तु दुर्मना राजा पर्याप्तं जीवनं मम।'<BR>इति स्म राजा कौरव्यो धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः।<BR>उत्सृज्याभरणान्यङ्गाज्जगृहे वल्कलान्युत।। <td> 17-1-21a<BR>17-1-21b<BR>17-1-21c </p></tr>
 
श्रुत्वा तु दुर्मना राजा पर्याप्तं जीवनं मम।'<BR>इति स्म राजा कौरव्यो धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः।<BR>उत्सृज्याभरणान्यङ्गाज्जगृहे वल्कलान्युत।। <td> 17-1-21a<BR>17-1-21b<BR>17-1-21c
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> भीमार्जुनयमाश्चैव द्रौपदी च यशस्विनी।<BR>तथैव जगृहुः सर्वे वल्कलानि नराधिप।। <td> 17-1-22a<BR>17-1-22b </p></tr>
 
भीमार्जुनयमाश्चैव द्रौपदी च यशस्विनी।<BR>तथैव जगृहुः सर्वे वल्कलानि नराधिप।। <td> 17-1-22a<BR>17-1-22b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> विधिवत्कारयित्वेष्टिं नैष्ठिकीं भरतर्षभ।<BR>समुत्सृज्याप्सु सर्वेऽग्नीन्प्रतस्थुर्नरपुङ्गवाः।। <td> 17-1-23a<BR>17-1-23b </p></tr>
 
विधिवत्कारयित्वेष्टिं नैष्ठिकीं भरतर्षभ।<BR>समुत्सृज्याप्सु सर्वेऽग्नीन्प्रतस्थुर्नरपुङ्गवाः।। <td> 17-1-23a<BR>17-1-23b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ततः प्ररुरुदुः सर्वाः स्त्रिंयो दृष्ट्वा नरोत्तमान्।<BR>प्रस्थितान्द्रौपदीषष्ठान्पुरा द्यूतजितान्यथा।। <td> 17-1-24a<BR>17-1-24b </p></tr>
 
ततः प्ररुरुदुः सर्वाः स्त्रिंयो दृष्ट्वा नरोत्तमान्।<BR>प्रस्थितान्द्रौपदीषष्ठान्पुरा द्यूतजितान्यथा।। <td> 17-1-24a<BR>17-1-24b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> हर्षोऽभवच्च सर्वेषां भ्रातॄणां गमनं प्रति।<BR>युधिष्ठिरमतं ज्ञात्वा वृष्णिक्षयमवेक्ष्य च। <td> 17-1-25a<BR>17-1-25b </p></tr>
 
हर्षोऽभवच्च सर्वेषां भ्रातॄणां गमनं प्रति।<BR>युधिष्ठिरमतं ज्ञात्वा वृष्णिक्षयमवेक्ष्य च। <td> 17-1-25a<BR>17-1-25b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> भ्रातरः पञ्च कृष्णा च षष्ठी श्वा चैव सप्तमः।<BR>आत्मना सप्तमो राजा निर्ययौ गजसाह्वयात्।<BR>पौरैरनुगतो दूरं सर्वैरन्तःपुरैस्तथा।। <td> 17-1-26a<BR>17-1-26b<BR>17-1-26c </p></tr>
 
भ्रातरः पञ्च कृष्णा च षष्ठी श्वा चैव सप्तमः।<BR>आत्मना सप्तमो राजा निर्ययौ गजसाह्वयात्।<BR>पौरैरनुगतो दूरं सर्वैरन्तःपुरैस्तथा।। <td> 17-1-26a<BR>17-1-26b<BR>17-1-26c
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> न चैनमशकत्कश्चिन्निवर्तस्वेति भाषितुम्।<BR>न्यवर्तन्त ततः सर्वे नरा नगरवासिनः।। <td> 17-1-27a<BR>17-1-27b </p></tr>
 
न चैनमशकत्कश्चिन्निवर्तस्वेति भाषितुम्।<BR>न्यवर्तन्त ततः सर्वे नरा नगरवासिनः।। <td> 17-1-27a<BR>17-1-27b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> कृपप्रभृतयश्चैव युयुत्सुं पर्यवारयन्।<BR>विवेश गङ्गां कौरव्य उलूपी भुजगात्मजा।। <td> 17-1-28a<BR>17-1-28b </p></tr>
 
कृपप्रभृतयश्चैव युयुत्सुं पर्यवारयन्।<BR>विवेश गङ्गां कौरव्य उलूपी भुजगात्मजा।। <td> 17-1-28a<BR>17-1-28b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> चित्राङ्गदा ययौ चापि मणलूरपुरं प्रति।<BR>शिष्टाः परिक्षितं त्वन्या मातरः पर्यवारयन्।। <td> 17-1-29a<BR>17-1-29b </p></tr>
 
चित्राङ्गदा ययौ चापि मणलूरपुरं प्रति।<BR>शिष्टाः परिक्षितं त्वन्या मातरः पर्यवारयन्।। <td> 17-1-29a<BR>17-1-29b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> पाण्डवाश्च महात्मानो द्रौपदी च यशस्विनी।<BR>कृतोपवासाः कौरव्य प्रययुः प्राङ्मुखास्ततः।। <td> 17-1-30a<BR>17-1-30b </p></tr>
 
पाण्डवाश्च महात्मानो द्रौपदी च यशस्विनी।<BR>कृतोपवासाः कौरव्य प्रययुः प्राङ्मुखास्ततः।। <td> 17-1-30a<BR>17-1-30b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> योगयुक्ता महात्मानस्त्यागधर्ममुपेयुषः।<BR>अभिजग्मुर्बहून्देसान्सरितः सागरांस्तथा।। <td> 17-1-31a<BR>17-1-31b </p></tr>
 
योगयुक्ता महात्मानस्त्यागधर्ममुपेयुषः।<BR>अभिजग्मुर्बहून्देसान्सरितः सागरांस्तथा।। <td> 17-1-31a<BR>17-1-31b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> युधिष्ठिरो ययावग्रे भीमस्तु तदनन्तरम्।<BR>अर्जुनस्तस्य चान्वेव यमौ चापि यथाक्रमम।। <td> 17-1-32a<BR>17-1-32b </p></tr>
 
युधिष्ठिरो ययावग्रे भीमस्तु तदनन्तरम्।<BR>अर्जुनस्तस्य चान्वेव यमौ चापि यथाक्रमम।। <td> 17-1-32a<BR>17-1-32b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> पृष्ठतस्तु वरारोहा श्यामा पद्मदलेक्षणा।<BR>द्रौपदी योषितांश्रेष्ठा ययौ भरतसत्तम। <td> 17-1-33a<BR>17-1-33b </p></tr>
 
पृष्ठतस्तु वरारोहा श्यामा पद्मदलेक्षणा।<BR>द्रौपदी योषितांश्रेष्ठा ययौ भरतसत्तम। <td> 17-1-33a<BR>17-1-33b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> श्वा चैवानुयायावेकः प्रस्थितान्पाण्डवान्वनम्।<BR>क्रमेणि ते ययुर्वीरा लौहित्यं सलिलार्णवम्।। <td> 17-1-34a<BR>17-1-34b </p></tr>
 
श्वा चैवानुयायावेकः प्रस्थितान्पाण्डवान्वनम्।<BR>क्रमेणि ते ययुर्वीरा लौहित्यं सलिलार्णवम्।। <td> 17-1-34a<BR>17-1-34b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> गाण्डीवं तु धनुर्दिव्यं न मुमोच धनंजयः।<BR>रत्नलोभान्महाराज ते चाक्षय्ये महेषुधी।। <td> 17-1-35a<BR>17-1-35b </p></tr>
 
गाण्डीवं तु धनुर्दिव्यं न मुमोच धनंजयः।<BR>रत्नलोभान्महाराज ते चाक्षय्ये महेषुधी।। <td> 17-1-35a<BR>17-1-35b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अग्निं ते ददृशुस्तत्र स्थितं शैलमिवाग्रतः।<BR>मार्गमावृत्य तिष्ठन्तं साक्षात्पुरुषविग्रहम्।। <td> 17-1-36a<BR>17-1-36b </p></tr>
 
अग्निं ते ददृशुस्तत्र स्थितं शैलमिवाग्रतः।<BR>मार्गमावृत्य तिष्ठन्तं साक्षात्पुरुषविग्रहम्।। <td> 17-1-36a<BR>17-1-36b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ततो देवः स सप्तार्चिः पाण्डवानिदमब्रवीत्।<BR>भोभो पाण्डुसुता वीराः पावकं मां निबोधत।। <td> 17-1-37a<BR>17-1-37b </p></tr>
 
ततो देवः स सप्तार्चिः पाण्डवानिदमब्रवीत्।<BR>भोभो पाण्डुसुता वीराः पावकं मां निबोधत।। <td> 17-1-37a<BR>17-1-37b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> युधिष्ठिर महाबाहो भीमसेन परंतप।<BR>अर्जुनाश्विसुतौ वीरौ निबोधत वचो मम।। <td> 17-1-38a<BR>17-1-38b </p></tr>
 
युधिष्ठिर महाबाहो भीमसेन परंतप।<BR>अर्जुनाश्विसुतौ वीरौ निबोधत वचो मम।। <td> 17-1-38a<BR>17-1-38b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अहमग्निः कुरुश्रेष्ठा मया दग्धं च खाण्डवम्।<BR>अर्जुनस्य प्रभावेन तथा नारायणस्य च।। <td> 17-1-39a<BR>17-1-39b </p></tr>
 
अहमग्निः कुरुश्रेष्ठा मया दग्धं च खाण्डवम्।<BR>अर्जुनस्य प्रभावेन तथा नारायणस्य च।। <td> 17-1-39a<BR>17-1-39b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> अयं वः फल्गुनो भ्राता गाण्डीवं परमायुधम्।<BR>परित्यज्य वने यातु नानेनार्थोस्ति कश्चन।। <td> 17-1-40a<BR>17-1-40b </p></tr>
 
अयं वः फल्गुनो भ्राता गाण्डीवं परमायुधम्।<BR>परित्यज्य वने यातु नानेनार्थोस्ति कश्चन।। <td> 17-1-40a<BR>17-1-40b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> चक्ररत्नं तु यत्कृष्णे स्थितमासीन्महात्मनि।<BR>गतं तच्च पुनर्हस्ते कालेनैष्यति तस्य ह।। <td> 17-1-41a<BR>17-1-41b </p></tr>
 
चक्ररत्नं तु यत्कृष्णे स्थितमासीन्महात्मनि।<BR>गतं तच्च पुनर्हस्ते कालेनैष्यति तस्य ह।। <td> 17-1-41a<BR>17-1-41b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> वरुणादाहृतं पूर्वं मयैतत्पार्थकारणात्।<BR>गाण्डीवं धनुषां श्रेष्ठं वरुणायैव दीयताम्।। <td> 17-1-42a<BR>17-1-42b </p></tr>
 
वरुणादाहृतं पूर्वं मयैतत्पार्थकारणात्।<BR>गाण्डीवं धनुषां श्रेष्ठं वरुणायैव दीयताम्।। <td> 17-1-42a<BR>17-1-42b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ततस्ते भ्रातरः सर्वे धनंजयमचोदयन्।<BR>स जले प्राक्षिपच्चैतत्तथाऽक्षय्ये महेषुधी।। <td> 17-1-43a<BR>17-1-43b </p></tr>
 
ततस्ते भ्रातरः सर्वे धनंजयमचोदयन्।<BR>स जले प्राक्षिपच्चैतत्तथाऽक्षय्ये महेषुधी।। <td> 17-1-43a<BR>17-1-43b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ततोऽग्निर्भरतश्रेष्ठ तत्रैवान्तरधीयत।<BR>ययुस्च पाण्डवा वीरास्ततस्ते दक्षिणामुखाः।। <td> 17-1-44a<BR>17-1-44b </p></tr>
 
ततोऽग्निर्भरतश्रेष्ठ तत्रैवान्तरधीयत।<BR>ययुस्च पाण्डवा वीरास्ततस्ते दक्षिणामुखाः।। <td> 17-1-44a<BR>17-1-44b
 
</tr>
<tr><td>
<tr><td><p> ततस्ते तूत्तरेणैव तीरेण लवणांभसः।<BR>जग्मुर्भरतशार्दूल दिशं दक्षिणपश्चिमाम्।। <td> 17-1-45a<BR>17-1-45b </p></tr>
 
ततस्ते तूत्तरेणैव तीरेण लवणांभसः।<BR>जग्मुर्भरतशार्दूल दिशं दक्षिणपश्चिमाम्।। <td> 17-1-45a<BR>17-1-45b
 
</tr>
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<tr><td><p> ततः पुनः समावृत्ताः पश्चिमां दिशमेव ते।<BR>ददृशुर्द्वारकां चापि सागरेण परिप्लुताम्।। <td> 17-1-46a<BR>17-1-46b </p></tr>
 
ततः पुनः समावृत्ताः पश्चिमां दिशमेव ते।<BR>ददृशुर्द्वारकां चापि सागरेण परिप्लुताम्।। <td> 17-1-46a<BR>17-1-46b
 
</tr>
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<tr><td><p> उदीचीं पुनरावृत्त्य ययुर्भरतसत्तमाः।<BR>प्रादक्षिण्यं चिकीर्षन्तः पृथिव्या योगधर्मिणः।। <td> 17-1-47a<BR>17-1-47b </p></tr>
 
<tr><td><p> ।। इति श्रीमन्महाभारते <BR>महाप्रस्थानिकपर्वणि प्रथमोऽध्यायः।। 1 ।। <td> </p></tr>
उदीचीं पुनरावृत्त्य ययुर्भरतसत्तमाः।<BR>प्रादक्षिण्यं चिकीर्षन्तः पृथिव्या योगधर्मिणः।। <td> 17-1-47a<BR>17-1-47b
 
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।। इति श्रीमन्महाभारते <BR>महाप्रस्थानिकपर्वणि प्रथमोऽध्यायः।। 1 ।। <td>
 
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