श्रीगणपतिस्तोत्रम्
श्रीगणपतिस्तोत्रम् श्रीवासुदेवानन्दसरस्वती |
।।श्रीगणपतिस्तोत्रम्।।
द्विरदानन विघ्नकाननज्वलन त्वं प्रथमेशनंदन।
मदनपतिमाखुवाहन ज्वलनाभासितपिंगलोचन।।१।।
अहिबंधन रक्तचंदन प्रियदूर्वाङ्कुरभारपूजन।।
शशिभूषण भक्तपालन ज्वलनाक्षाsव निजान्निजावन।।२।।
विविधामरमर्त्यनायकः प्रथितस्त्वं भुवने विनायकः।।
तव कोपे%पि हि नैव नायकस्तत एव त्वमजो विनायक।।३।।
बलिनिग्रह ईश केशवस्त्रिपुराख्यासुरनिग्रहे शिवः।।
जगदुद्भववनेsब्जसंभवः सकलान्जेतुमहो मनोभवः।।४।।
महिषासुरनिग्रहे शिवा भवमुक्त्यै मुनयो धुताशिवाः।।
यमपूजयदिष्टसिद्धये वरदो मे भव चेष्टसिद्धये।।५।।
गजकर्णक मूषकस्थिते वरदे त्वय्यभये हृदि स्थिते।।
जयलाभरमेष्टसंपदाः खलु सर्वत्र कुतो वदापदाः।।६।।
संकल्पितं कार्यमविघ्नमीश द्राक्सिद्धिमायातु ममाखिलेश।।
पापत्रयं मे हर सन्मतीश तापत्रयं मे हर शांत्यधीश।।७।।
गणाधीशो धीशो हरिहरविधीशोsभयकरो
गुणाधीशो धीशो विजयत उमाहृत्सुखकरः।
बुधाधीशो नीशो निजभजकविघ्नौघहरकः
मुदाधीशो पीशो यशस उभयर्धेश्च शरणम्।।८।।
इति श्री प. प. श्रीवासुदेवानन्दसरस्वतीविरचितं गणपतिस्तोत्रं संपूर्णम्।।