श्रीरङ्गस्तोत्र
विष्णुस्तोत्राणि
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पद्माधिराजे गरुडाधिराजे
     विरिञ्चराजे सुरराजराजे ।
त्रैलोक्यराजेऽखिलराजराजे
     श्रीरङ्गराजे रमतां मनो मे ॥ १॥

नीलाब्जवर्णे भुजपूर्णकर्णे
     कर्णान्तनेत्रे कमलाकलत्रे ।
श्रीमल्लरङ्गे जितमल्लरङ्गे
     श्रीरङ्गरङ्गे रमतां मनो मे ॥ २॥

लक्ष्मीनिवासे जगतां निवासे
     ह्ऱृत्पद्मवासे रविबिम्बवासे ।
क्षीराब्धिवासे फणिभोगवासे
     श्रीरङ्गवासे रमतां मनो मे ॥ ३॥

कुबेरलीले जगदेकलीले
     मन्दारमालाङ्कितचारुफाले ।
दैत्यान्तकालेऽखिललोकमौले
     श्रीरङ्गलीले रमतां मनो मे ॥ ४॥

अमोघनिद्रे जगदेकनिद्रे
     विदेहनिद्रे च समुद्रनिद्रे ।
श्रीयोगनिद्रे सुखयोगनिद्रे
     श्रीरङ्गनिद्रे रमतां मनो मे ॥ ५॥

आनन्दरूपे निजबोधरूपे
     ब्रह्मस्वरूपे क्षितिमूर्तिरूपे ।
विचित्ररूपे रमणीयरूपे
     श्रीरङ्गरूपे रमतां मनो मे ॥ ६॥

भक्ताक्ऱृतार्थे मुररावणार्थे
     भक्तसमर्थे जगदेककीर्ते ।
अनेकमूर्ते रमणीयमूर्ते
     श्रीरङ्गमूर्ते रमतां मनो मे ॥ ७॥

कंसप्रमाथे नरकप्रमाथे
     दुष्टप्रमाथे जगतां निदाने ।
अनाथनाथे जगदेकनाथे
     श्रीरङ्गनाथे रमतां मनो मे ॥ ८॥

सुचित्रशायी जगदेकशायी
     नन्दाङ्कशायी कमलाङ्कशायी ।
अम्भोधिशायी वटपत्रशायी
     श्रीरङ्गशायी रमतां मनो मे ॥ ९॥

सकलदुरितहारी भूमिभारापहारी
     दशमुखकुलहारी दैत्यदर्पापहारी ।
सुललितक्ऱृतचारी पारिजातापहारी
     त्रिभुवनभयहारी प्रीयतां श्रीमुरारिः ॥ १०॥

रङ्गस्तोत्रमिदं पुण्यं प्रातःकाले पठेन्नरः ।
कोटिजन्मार्जितं पापं स्मरणेन विनश्यति ॥

                     इति श्रीरङ्गस्तोत्रम् ॥

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