श्रीवेङ्कटेश्वरसुप्रभातस्तोत्रम्
श्रीवेङ्कटेश्वरसुप्रभातस्तोत्रम् [[लेखकः :|]] १९७९ |
पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटेश्वरसुप्रभातस्तोत्रम्.pdf/१ पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटेश्वरसुप्रभातस्तोत्रम्.pdf/२ पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटेश्वरसुप्रभातस्तोत्रम्.pdf/४ श्रीवेङ्कटेश सुप्रभातम् कौसल्यासुप्रजा राम पूर्वा सन्ध्या प्रवर्तते। उत्तिष्ठ नरशार्दूल कर्तव्यं दैव मान्हिकम् ॥१॥
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द उत्तिष्ठ जरूडध्वज । उत्तिष्ठ कमलाकान्त त्त्रैलोक्यं मङ्गलं कृरू॥२॥
मात स्समस्तजगतां मधुकैटभारेः व्क्षोविहारिणी मनोहरदिव्यरूपे। श्रीस्वामिनि श्रीतजनप्रियदानशीले श्रीवेङ्कटेशदयिते तव सुप्रभातम्॥३॥
तव सुप्रभातमरवन्दलोचने भवतु प्रसन्नमुखचन्द्रमण्डले। विदिशङ्करेन्द्रवनिताभिरर्चिते वृषशैलनाथदतिते दयानिधे॥४॥
अत्र्यादिसप्तऋष्य स्समुपास्य सन्ध्यां आकाश्सिन्धुकमलानि म्नोहराणि। आदाय पादयुगमर्चयितुं प्रपन्नाः शेषद्रिशेखर विभो तव सुप्रभातम्॥५॥ श्रीवेंकटेश्र्वर सुप्रभात स्तोत्त्र ! कौसल्या-गर्भ शुक्ति- मुक्ताफल पुरूषोतम जागो राम। भोर हो रही है, करने दैवान्हिक- कार्य उठो घनश्याम!॥१॥
उठो उठि गोविन्द हरे! गरूडध्वज उठो सकल गुणधाम१
कमलावल्लभ उठो, बनाओ त्त्रिजगों को शुभ-मंगल धाम!॥२॥
सकल जगों कि मां! मधुकैटभहारि हरि की हृदयविहारिणि!
मनमोहिनी-मूर्ति-शोभित जननी१ पूज्ये! अग-जग-स्वामिनि! आश्रित-भक्तों को मंगल बरसानेवाली चिंतामणि! मंगलमय प्रभात हो मां तव श्रीवेंकटगिरिनाथजृहिणि!॥३॥
सुप्रभात हो कमल लोचन। शुचि-प्रसन्न-मुख-विधुवरालये। विधिशिवेंद्रवनिताभिरचिंते! वृषगिरिशजाये! दयालये!॥४॥
अत्त्रि आदि सातों ऋषि संध्याचंदन कर, नभ गांगकमल लिये म्नोहर स्तबकों में मकरंदमधुसहित वर परिमल! जाये हैं, पूजित समंकृत करने प्रभु के चरणकमल! शेषशैलस्वामिन् ! जागो ! होवे तव सुप्रभात भगवन्!॥५॥ पञ्चाननाब्बभवषण्मुखवासवाध्याः त्त्रैविक्रमादिचरितं विबुधाः स्तुवन्ति। भाषापतिः पठति दासरशुध्दिमारात् शेषाद्रिशेखर विभो तव सुप्रभातम्॥६॥
ईषत्प्रफुल्लसरसीरुहनारिकेल- पृगद्रुमादिसुमनोहरपालिकानाम्। आवाति मन्दमनिल स्सह दिव्यगन्धैः शेषाद्रिशेखर विभो तव सुप्रभातम्॥७॥
उन्मीक्य नेत्रयुगमुत्तमपञ्जरस्थाः पात्त्रवशिष्टकदकदलीफलपायसानि। मुक्त्वा सलीलमय केलिशुकाः पठन्ति शेषाद्रिशेखर विभो तव सुप्रभातम्॥८॥
तन्त्त्रीप्रकषेमधुरस्वनया विपञ्च्या गायत्यनन्तचरितं तव नारदोऽपि। भाषासमग्रमसकृत्करचाररम्यं शेषाद्रिशेखर विभो तव सुप्रभातम् ॥९॥
भुङ्गवली च मकरन्दरसानुविध्द- शङ्कारगीतनिनदै स्सह सेवनाय। निर्यात्युपान्तसरसीकमलोदरेभ्यः शेषाद्रिशेखर विभो तव सुप्रभातम् ॥१०॥ चतुरानन, पंचानन और षडानन इन्द्र आदि सुरगण, गायन करते वामनादि अवतार-चरित भुले तन मन। तिथि वासर तारादि पढ रहे हैं भाषापति, नतशिर बन! शेषशैलस्वामिन्! जागो! तव सुप्रभात भगवान्॥६॥
कमलों का अधखुले, पृग नारिकेल मुकुलो का परिमल वहन किये मंद मंद गाति से संचारण कर रहा अनिल, दक्षिण दिशि से निकल, सुगांधि-भार से दिव्य बने बोझिल! शेषशैलस्वामिन् जागो! होवे तव सुप्रभात भगवान्!॥७॥
खोल नेत्र- युगल केलीशुक, अपने श्रेष्ठ पंजरों में, बचे-खुचे कदलीफल, पेट भर खा, वर पात्रों में, रटने लगे तुम्हारे नाम हेलया कल कल नादों में, शेषशैलस्वामिन् जागो! होवे तव सुप्रभात भगवन्॥८॥
नारद मी मह्ती वीणा के तार मिलाये सुस्वर में, तव अनन्त लील गुण गण सुमनोहर सुन्दर भाषा में, गायन करते हैं हाथ हिला, मूल शरीर मधुर रद में, शेषशैलस्वामिन् जागो! होवे तव सुप्रभात भगवान्!॥९॥
फूले हुए निकट के कमलाकर में प्रमन गा रहे हैं, मकरंद के पान से छक,भौरों के झण्ड भा रहे हैं; सेवा करने को तुम्हारी सरसिज छोड आ रहे हैं; शेषशैलस्वामिन् जागो! होवे तव सुप्रभात भगवान्!॥१०॥ योषागणेन वरदध्नि विमथ्यमाने घोषालयेषु दधिमन्थनतीत्र्धोषाः। रोषात्कालिं विदधते ककुभश्र्च कुम्भाः शेषाद्रिशेखर विभो तव सुप्रभातम्॥११॥
पद्मेशमित्रशतपत्रगतालिवर्गाः हर्तुं श्रियं कुवलस्य निजाङ्गलक्ष्म्या। भेरीनिनादमिव बिभ्रति तीव्रनादं शेषाद्रिशेखर विभो तव सुप्रभातम्॥१२॥
श्रीमन्नभीष्टवरदाखिललोकबन्दो श्रीश्रीनिवास जगदेकदयैकसिन्धो। श्रीदेवतागृहमुजान्तरदिव्यमूर्ते श्रीवेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम्॥१३॥
श्रीस्वामिपुष्करिणिकाऽऽप्लवनिर्मङ्गाः श्रेयोऽर्थिनो हरविरिञ्चसनन्दनाद्याः। द्वारेवसन्ति वरवेत्रहतोत्तमाङ्गः श्रीवेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम्॥
श्रीशेषशैलगरूडाचलवेक्कटाद्रि- नारायणाद्रिवृषभाद्रिवृषाद्रिमुख्याम्। आख्यां त्वदीयवसतेरनिशं वदन्ति श्रीवेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥ घोष- कुटीरों में त्रजभाभिनिर्यो,मटकोँ में दधि धर कर मथन लगी मधुर घुम घुमु के शब्द दिशाऔ में भर कर; लगता है,दिशिया मटके लडते हो,स्फ्ध्र्दा में भर कर! शेषशैलस्वामिन् जागो! होवे तव सुप्रभातम् भगवन्! ॥११॥
पद्मापति के मित्र शतदलों में पेठे मधुपों के झण्ड अपनी देह कांति से देने ईदीवर आभा को दण्ड, भेरीनाद समान धीर गुजार कर रहे हैं उद्दण्ड, शेषशैलस्वामिन् जागो!होवे तव सुप्रभातम्॥१२॥
श्रीमन्! सकल लोक बांधव! वांछित वरदायक भक्तों के, श्री लक्ष्मी का आश्रय! एकमात्र्!करूणा- निधि जगती के! श्री देवी- आश्रय- वक्षःस्थल-शोभित प्रभु, वर धरती के! श्रीमद्वेंकटगिरिस्वामिन्! होवे तव सुप्रभात भगवन्॥१३॥
हर, चतुरानन, सनकादिक शीस्वामिपुष्करिणिका-जल में कर के स्नान, सकल अगों से बन र्निमल द्वाराचल में, वेत्राहत-नत मस्तक हैं भद्रार्थी बाहर हलचल में! श्रीमदवेंकटगिरिस्वमिन्! होवे तव सुप्रभातम् भगवन्!॥१४॥
श्रीगिरि, वेंकटाद्रि, नारायणगिरि, शेषाचल, गऱूडाचल, सात पुनीत नाम हैं प्रमुख वृषाचल एवं वृषभाचल, देव तुम्हारे आवास के, सदा कहते वर नर निश्छल श्रीमदवेंकटगिरिस्वामिन्! होवे तव सुप्रभात भगवन्॥१५॥ सेवापरा श्शिवसुरेशकृशानुकर्म- रक्षोऽम्बुनाथपवमानघनाधिनाथाः। बध्दाञ्जकिप्रविलसन्निजशीर्षदेशाः श्रीवेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम्॥१६॥
घाटीषु ते विहगराजमृगाधिराज- नागाधिराजगजराजहयाधिराजाः। स्वस्वाधिकारमहिमादिकमर्थयन्ते श्रीवेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम्॥१७॥
सूर्येन्दुभौमबुधवाक्यपतिकाव्यसौरि -स्वर्भानुकेतुदिविषत्प्रधानाः त्वद्दासदासचरमानधिदासदासाः श्रीवेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥८॥
त्वत्पादधूलिभरितस्फुरितोत्तमाज्ञाः स्वर्गापवर्गनिरपेक्षनिजान्तारज्ञाः। कल्पागमाकलनयाऽऽकुलतां लभन्ते श्रीवेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥१९॥
त्वग्दोपुराग्रशिखराणि निरिक्षमाणाः स्वर्गापवर्गपदवीं परमां श्रयन्तः। मर्या मनुष्यभुवने मतिमश्रयन्ते श्रीवेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम्॥१०॥ शिव, सुरेश, सप्तचि, याम्यपति, नैऋति, वरूण, पवन,धनवान् करने को कैकर्य तुम्हार आठों दिश्पत श्रध्दावान् जोडे हाथ सिरो पर निज, हैं तुम्हार करते ध्यान् श्रीमदवेंकटगिरिस्वामिन्! हिवे तव सुप्रभात भगवन् ॥१६॥
देख तुम्हार गमन धिरे गंभीर विंहगराज, मृगराज नागाधिराज, तुरगाधिराज, हिम-सम स्वच्छ-धवल गजराज, निज महिमा अधिकारों की करते याचना, विनत,बन आज श्रीमदवेंकटगिरिस्वामिन्! होवे तव सुप्रभातम् भगवन्॥१७॥
सूर्य,चन्द्र, बुध,वाक्पति,शुक,मंद,स्वर्भानु व केतु,तव प्रमुख न्वों ग्रह सभा की वर शोभा का वो हैं हेतु, तव दासानुदासगण के चरम दास हैं भक्तसागर सेतु! श्रीमदवेंक्टगिरिस्वामिन्!होवे तव सुप्रभात भगवन्॥८॥
तव पद-धृलि-सुशोभित मस्तकवाले भाग्यवान किंकर, स्वर्ग, मोक्ष की परवाह न करनेवाले भवनशंकर! कल्पांतर की शंका से अतिव्याकुल हैं भक्तवशंकर! श्रीमदवेंकटगिरिस्वामिन्! होव्र् तव सुप्रभातम् भगवन्॥१०॥ श्रीभूमिनायक दयादिगुणामृताब्धे देवाधिदेव ज्गदेकशरण्यमूर्ते। श्रीमन्नन्तगरूडादिभिरर्चिताङ्घ्रे श्रीवेक्कटाचलपते तव सुप्रभातम्॥२१॥
श्रीपद्मनाभ पुरूषोत्तम वासुदेव वैकुण्ठ माधव जनार्दन चक्रपाणे। श्रीवत्सचिन्ह शरणगतपारिजात श्रीवेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम॥२२॥
कन्दर्पदर्पहरसुन्दरदिव्यमूर्ते कान्ताकुचाम्बुरूहकुडमललोलदृष्टे। कल्याणनिर्मलगुणाकरदिव्यकीर्ते श्रीवेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम्॥२३॥
मीनाकृते कमठ कोल नृसिंह वर्णिन् स्वामिन् परश्र्वथतपोधन रामचन्द्र। शेषांशराम यदुनन्दन कल्किरूपम् श्रीवेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम्॥२४॥
एलालवङ्गघनसारसुगन्धतीर्थं दिव्यं वियत्सरिति हेमघटेषु पूर्णम्। धृत्वाऽद्य वैदिकशिखामणयःप्रहृष्टाः तिष्ठन्ति वेङ्कटपते तव सुप्रभातम्॥२५॥ श्रीदेवी-भूदेवी-रमण! दयदिगुणामृत का सागर, देवों के अधिदेव! जगतका एकमात्र् आश्रय, भवहर! श्रीमन् गरूद अनंत आदि भक्तार्चितपदयुग!सुषमाकर! श्रीमदवेम्कटगिरिस्वमिन्!होवे तव सुप्रभातम् भगवन्॥२१॥
सरसिजनाभ! हरे पुरूषोतम!वासुदेव,श्रीपति!स्वमिन्! हे वैकुंठपति!लक्ष्मीधव!चक्रधर!जनार्धन!वर भूमन्! श्रीवत्सांकित प्रभु! शरणगतभक्तकल्पभूरूह!श्रीमन् श्रीमदवेंकटगिरिस्वमिन्! होवे तव सुप्रभातम् भगवन्॥२२॥
गर्वध्दत कंदर्प-दर्प-हर!सुंदर दिव्य रूपसागर! कान्ता-कुच-सरसिज कुडमल-केलीरत लोलोनेत्र्!नागर! दिव्ययशोमंडित !पावन कल्याणगुणागणें का आकर! श्रीमदवेंकटगिरिस्वमिन्!होवे तव सुप्रभतम् भगवन्॥२३॥
मत्स्-रूप,कच्छप,वराह, वामन,नरसिंह,भक्तवत्सल! भार्गव-तपी परशुध्ह्री!श्रीरामचन्द्र, शरणद,निश्छ्ल! शेष-रूप बलरम,कृष्णा यदुनन्दन,कल्कि प्रणतजनबल! श्रीमदवेंकटगिरिस्वमिन्!ह्प्वे तव सुप्रभातम् भगवन्!॥२४॥
नभ गंगा का निर्मल जल सोने के कलशों में भर कर, लौंग,इलाइची व घनसार सुगंधिपूर्ण सिर पर दर कर वर वैदिक जन-विभोर।खडे हैं सब सेवा-श्रत दर, श्रीमदवेंकटगिरिस्वमिन् होवे तव सुप्रभातम् भगवन्॥२५॥ भास्वानुदेति विचानि सरोरुहाणि संपूरयन्ति निनदैःककुभो विहङ्गाः। श्रीवैष्णवा स्सत्ततमर्थितङ्गलास्ते धामाश्रायन्ति तव वेङ्कट सुप्रभातम्॥२६॥
ब्रह्मादय स्सुरवरा स्समहर्षयस्ते सन्त स्सनन्दनमुखास्त्वथ योगिवर्याः। धामन्तिके तव हि मङ्गलवस्तुहस्ताः श्रीवेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥२७॥
लक्ष्मीनिवास् नरवद्यगुणैकसन्धो संसारसागरसमुत्तरणैकसेतो । वेदान्तवेद्यनिजवैभव भक्तभोग्य श्रीवेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम्॥२८॥
इत्थं वृषाचलपतेरिह सुप्रभातं
ये मानवाःप्रतिदिनं पठितुं प्रवृत्ताः।
तेषां प्रभातसमये स्मृतिरङ्गभाजां
प्रज्ञां परार्थसुलभां परमां प्रसृते॥२९॥
॥इति श्रीनेङ्कटेश सुप्रभातम्॥ भास्कर उदित हो रह हैं,सरसीरूह संप्रति विकसित्स् हैं!
निज कल-कल नादों से वभ को करते खग गण मुखरित हैं! श्रीवैष्णव मम्गलप्रार्थी संतत तव वर धामाश्री हैं, श्रीमदवेंकटगिरिस्वमिन्! होवे तव सुप्रभात भगवन्॥२६॥
चतुरानन इन्द्रादि अमरवर अपने साथ लिये ऋषि गुण, तथा सनंदन सनकादि संत संग लिये योगीश सुजन, प्रागंण में तव खडे,करो में थामे मंगल-द्रव्य सुमन श्रीमदवेंकटगिरिस्वामिन्!हिवे तव सुप्रभात भगवन्॥२७॥
लक्ष्मी का आश्रय प्रभु! अमल पुनीत सद्गुणों क सागर! भवसिंधु के पार पहुचाने वाल सेतु! सकल श्रम-हर! वेदान्त से वेद्य-वैभवयुत,भक्तों के भाग्य परात्पर! श्रीमदवेंकटगिरिस्वमिन्!हिवे तव सुप्रभातम् भगवन्॥२८॥
इस प्रकार वृषगिरिविभु का यह सुप्रभात-स्तव मनभावन,
प्रतिदिन प्राःतकाल भक्ति-श्रध्दा-समेत जो नर शुचिमन
पढते रहते हैं उन भक्तो को,श्रीपति का यह सुमिरन,
परमार्थ-प्रदायिनी-प्रज्ञा प्राप्त कराता है पावन!॥२९॥
-------------------श्रीनिवास गद्यम्
रचयिता श्रीमान् श्रीशैल श्रीरङ्गाचार्यः श्रीमदखिल महिमडल मंडन धरणिधर मंडलाखंडलस्य,सुरासुर-वंदित वराहक्षेत्र विभूषणस्य,शेषचल गरुडाचल(सिंहाचल)वृषभाचल नारयणाचलांजनाचलाद्रि शिखरिमालाकुलस्य नागमुखयोगनिधि गुणवशंवद,परमपुरुष कृपापूर विभ्रमत्तुग श्रृगगलद्गंगन गंगा समालिंगितस्य,सीमातिगगुण रामानुजमुनि नामांकित बहुभूमाश्रय सुरषामालय वनरामालयत वनसोमा परिवृत बिशंकटतट निरंत।विजृंभित भक्तिरस नितर्झरानंतार्याहार्य प्रत्रदण धारपूर विश्रमद सलिलभरभरित महातटाक मडितस्य,कलिकर्दम मलमर्दनकलितिदय विलसद्यरमनियमादिन मुनिगण निषठेयमाण प्रत्यक्षीभवत्रिजसलिलि सम्ज्जन नमज्जन निखिल पापनाशन तोर्षाध्यासितस्य,मुरारि सेवक जराधिपीडित,निरार्ति जीवन निरश भूसुर वराति सुंदर सुरांगना रतिकरांग सौष्ठव कुमारतारकुति कुमारतारक समापतो-वयवनून पातक महापदामय विहापनोदितसकलभुवन विदित कुमारधारभिधानतीर्थाश्रिष्ठयस्य,धरधितल गतसकल हतकलिल शुभसलिल गतसकल विविधमलहतिचतुर रुचिरतर विलोकनमात्र् विदलित दिविध महापातक स्वामि पुष्करिणोसमेतस्य, बहुसंकट नरकावट पतदुस्कटकलिकंकट कलुहोद्भट जनपातक यिमिपातक रुचि नाटक करहाटक कलशाहुत कमलारतशुभमञ्जन जल सञ्जन(भर)भरित निज बुरित हतिनिरत जनसतत (मिरस्त)निरर्गलविवोपमान सलिल सभृत विशंकट कटाहतिर्य(दि) मूदितस्य,एवमादिम भूरिमंजिम सवंपातक गर्वहापक सिन्धुडभर हारिशंकरविविधदिपुर पुण्यतिर्थनिवहनिवासस्य, भो(मतो) वेंकटाचलस्य, शिखरशेखर महाकल्पसशाखि, तर्षेभदरति गर्दोकृत गुरु मेर्दोशगिरिमुलोर्दोधरकुलदर्दोकरदयितोर्चोपर शिखरोर्दो सततसदूर्वोकृति चरणनवधन गर्वचर्वण निपुणतर्नुकिरण मसषित गिरिशिखरशेखर तरुनिकरतिमिरः,दानीपति शर्वाणी वयितेग्राणीस्वर मुखनाणीयोरसवेणीनिभशुभवाणी नुत महिमाणोयसतरकोटीरभवदखिल भुवनभुवनोदरःवैमानिक गुरुभूमाधिक गुण रामानुजक्कृतधामाकरकर धामारिदरललामाम्छकनकवामयित निजरामालयनव किसलयमयतोरणमालायित वनमालाधरः,कासांयुव मालामिभ नोलालक जालायुत दालाब्जलीलामल फालांक समलामतधारद्वया वर्षोरण षोरस पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटेश्वरसुप्रभातस्तोत्रम्.pdf/१९ 19 मंजुल मंदार हितालादि तिलक मलम नारिकेल क्रौचाशोक माघूका मलक हिन्दुक नागकेतक पूर्णकुछ पूर्णमय रसकंड वन बंजसखजूर साल कोविदार हिताल पनस विकट वैकस वरुण नहणधमरणीयल काश्वत्य यशवसुष वर्माध मंत्रिकी तिषिणी बोध न्यपाथ घटबटल जंबुमतल्ली बीरचल्ली वसोल वासंती जोबनो पोषणी प्रमुल निखिल संदोह तमाल मालामहित विराजमान काक मयूर हम भारताज कोकिल चक्रवाक कपोत गरुक नारायण नानाविध पक्षिजाति समूह ब्रह्म क्षत्रिय वेश्य शब नाना जात्यदब देवरानि म माणि वसाय गोमेदिक पुष्यराग पपरागंन्द्र प्रवाल मौक्तिक स्फटिक हेमास्म खचित पगड. गापमान रथगजतुरग पदाति सेनासमूह मेरी पर्वल मुरवल्लरी शंख काहस नृत्य गोन ताल वा भवास पंचमुखवाच अहमीमागंटीबाय किरिकुतलवार सुरटीचौंडोवाच सिभिलक वितालवाय सकारापाय घंटाताडन ब्रह्मताल समताल कोट्टरीवाल करीवाल एक्कालधाराबाट पटहकांश्यबाट भरतनाट्यालंकार किन्नर किंपुरुष हावीणा मुबबीना वायुवीणा तबरुवीणा गांपवं नारखोणा सर्वमंडल रावन हस्तमीणा स्ससंकिपालं कियालंकतानेकनिष बावापोकूप टाकादि गंमा यमना रेवारणा शोजनबी शोभनदी सुवर्णखी वेगवती देववती मोरनी बाहुनकी गहइनबो कावेरी साम्रपर्षी प्रमुखाः महापुण्य नमः सकल- ती सहोभय कुसंगतसदाप्रवाह जस्सामापर्वण वेद शास्त्रेतिहास पुराण सकलविद्या घोष भानुकोति प्रकाश चंद्रकोटिममान मिस्प कल्यानपरंपरोतराभिडियादिति भवन्तो महान्तोऽनगाहन्तु. बाह्मल्यो राजा पामिकोऽस्तु, देशोऽयं निरूपद्रवोऽस्तु, सर्वे सापजनास्सुलिनो- बिलसंतु, समस्तसन्मंगलानि सन् उत्तरोतराभिवतिरस्त, सकस कल्याणसमडिरस्तु। पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटेश्वरसुप्रभातस्तोत्रम्.pdf/२१ पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटेश्वरसुप्रभातस्तोत्रम्.pdf/२२ पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटेश्वरसुप्रभातस्तोत्रम्.pdf/२३