सुवर्णमालास्तुतिः
सुवर्णमालास्तुतिः शङ्कराचार्यः १९१० |
॥ श्रीः॥
॥ सुवर्णमालास्तुतिः॥
अथ कथमपि मद्रसनां त्वद्गुण-
लेशैर्विंशोधयामि विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ १ ॥
आखण्डलमदखण्डनपण्डित
तण्डुप्रिय चण्डीश विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २॥
इभचर्माम्बर शम्बररिपुवपु-
रपहरणोज्ज्वलनयन विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ।। ३ ।।
ईश गिरीश नरेश परेश म-
हेश बिलेशयभूषण भो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम ॥ ४ ॥
उमया दिव्यसुमङ्गलविग्रह-
यालिङ्गितवामाङ्ग विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ।।५।।
ऊरीकुरु मामज्ञमनाथं
दूरीकुरु मे दुरितं भो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ६ ॥
ऋषिवरमानसहंस चराचर-
जननस्थितिलयकारण भो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ७ ॥
ऋक्षाधीशकिरीट महोक्षा-
रूढ विधृतरुद्राक्ष विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ८ ॥
ऌवर्णद्वन्द्वमवृन्तसुकुसुममि-
वाङ्घ्रौ तवार्पयामि विभो।
साम्व सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ।। ९॥
एकं सदिति श्रुत्या त्वमेव
सदसीत्युपास्महे मृड भो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ १० ॥
ऐक्यं निजभक्तेभ्यो वितरसि
विश्वंभरोऽत्र साक्षी भो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ११ ॥
ओमिति तव निर्देष्ट्री माया-
स्माकं मृडोपकर्त्री भो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम ॥ १२ ॥
औदास्यं स्फुटयति विषयेषु दि-
गम्बरता च तवैव विभो ।।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ।। १३ ।।
अन्त:करणविशुद्धिं भक्तिं
च त्वयि सतीं प्रदेहि विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ १४ ॥
अस्तोपाधिसमस्तव्यस्तै
रूपैर्जगन्मयोऽसि विभो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ १५ ॥
करुणावरुणालय मयि दास उ-
दासस्तवोचितो न हि भो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ १६ ॥
खलसहवासं विघटय घदय स-
तामेव सङ्गमनिशं भो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ।। १७ ॥
गरलं जगदुपकृतये गिलितं
भवता समोऽस्ति कोऽत्र विभो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ।। १८ ॥
घनसारगौरगात्र प्रचुरज-
टाजूटबद्धगङ्ग विभो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ १९ ॥
ज्ञप्तिः सर्वशरीरेष्वखण्डि-
ता या विभाति सा त्वं भो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ।। २० ॥
चपलं मम हृदयकपिं विषय-
द्रुचरं दृढं वधान विभो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २१ ।।
छाया स्थाणोरपि तव तापं
नमतां हरत्यहो शिव भो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २२ ॥
जय कैलासनिवास प्रमथग-
णाधीश भूसुरार्चित भो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २३ ॥
झणुतकझङ्किणुझणुतत्किंटतक-
शब्दैर्नटसि महानट भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २४ ॥
ज्ञानं विक्षेपावृतिरहितं
कुरु मे गुरुस्त्वमेव विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २५ ॥
टङ्कारस्तव धनुषो दलयति
हृदयं द्विषामशनिरिव भो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २६ ॥
ठाकृतिरिव तव माया बहिर-
न्तः शून्यरूपिणी खलु भो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ।। २७ ।।
डम्बरमम्बुरुहामपि दलय-
त्यनघं त्वदङ्घ्रियुगलं भो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २८ ॥
ढक्काक्षसूत्रशूलद्रुहिणक-
रोटीसमुल्लसत्कर भो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २९ ॥
णाकारगर्भिणी चेच्छुभदा
ते शरगतिनृणामिह भो
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ३० ॥
तव मन्वतिसंजपतः सद्य-
स्तरति नरो हि भवाब्धिं भो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ३१ ॥
थूत्कारस्तस्य मुखे भूया-
त्ते नाम नास्ति यस्य विभो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ३२ ॥
दयनीयश्च दयालुः कोऽस्ति म-
दन्यस्त्वदन्य इह वद भो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ३३ ॥
धर्मस्थापनदक्ष त्र्यक्ष गु-
रो दक्षयज्ञशिक्षक भो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ३४ ॥
ननु ताडितोऽसि धनुषा लुब्धधि-
या त्वं पुरा नरेण विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ।। ३५ ॥
परिमातुं तव मूर्ति नालम-
जस्तत्परात्परोऽसि विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ।। ३६ ।।
फलमिह नृतया जनुषस्त्वत्पद-
सेवा सनातनेश विभो
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ३७ ।।
बलमारोग्यं चायुस्त्वद्गुण-
रुचित्तां चिरं प्रदेहि विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ।। ३८॥
भगवन्भर्ग भयापह भूतप-
ते भूतिभूषिताङ्ग विभो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ।। ३९ ।।
महिमा तव न हि माति श्रुतिषु हि-
मानीधरात्मजाधव भो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम ॥ ४० ॥
यमनियमादिभिरङ्गैर्यमिनो
हृदये भजन्ति स त्वं भो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ४१ ॥
रज्जावहिरिव शुक्तौ रजतमि-
व त्वयि जगन्ति भान्ति विभो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ४२ ।।
लब्ध्वा भवत्प्रसादाच्चक्रं
विधुरवति लोकमखिलं भो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ।। ४३ ।।
वसुधातद्धरतच्छयरथमौ-
र्वीशर पराकृतासुर भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ४४ ॥
शर्व देव सर्वोत्तम सर्वद
दुर्वृत्तगर्वहरण विभो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ४५ ॥
षड्रिपुषडूर्मिषड्विकारहर
सन्मुख षण्मुखजनक विभो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ।। ४६ ।।
सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्मे-
त्येतल्लक्षणलक्षित भो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ४७ ॥
हाहाहूहूमुखसुरगायक-
गीतापदानपद्य विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ।। ४८॥
ळादिर्न हि प्रयोगस्तदन्त-
मिह मङ्गळं सदास्तु विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ।। ४९ ।।
क्षणमिव दिवसान्नेष्यति त्वत्पद-
सेवाक्षणोत्सुकः शिव भो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ५० ॥
इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य
श्रीगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य
श्रीमच्छंकरभगवतः कृतौ
सुवर्णमालास्तुतिः संपूर्णा ॥