महाभारतम्-04-विराटपर्व-025
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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द्रौपद्या भीमवचनात्कीचकंप्रति नर्तनशालाया उभयोः समागमे संकेतस्थानत्वनिर्धारणेन रात्रौ तत्रागमनचादना ।। 1 ।।
भीम उवाच। | 4-25-1x |
तथा भद्रे करिष्यामि यथा त्वं भीरु भाषसे। | 4-25-1a 4-25-1b |
अस्याः प्रदोषे शर्वर्याः कुरुष्वानेन संविदम् । | 4-25-2a 4-25-2b |
यैषा नर्तनशालेह मत्स्यराजेन कारिता। | 4-25-3a 4-25-3b |
तत्रास्ति शयनं भीरु दृढाङ्गं सुप्रतिष्ठितम्। | 4-25-4a 4-25-4b 4-24-4c |
संकेतं सूतपुत्रस्य कारयस्व शुभानने। | 4-25-5a 4-25-5b |
तथा कुरुष्व कल्याणि यथा सन्निहितो भवेत्। | 4-25-6a 4-25-6b |
आवयोः संगमं भीरु यथा मार्त्यो न बुध्यति । | 4-25-7a 4-25-7b |
वैशंपायन उवाच । | 4-25-8x |
तत्र तौ कथयित्वा तु बाष्पमुत्सृज्य दुःखितौ। | 4-25-8a 4-25-8b |
भीमेन च प्रतिज्ञाते कीचकस्य वधे तदा। | 4-25-9a 4-25-9b |
तस्यां रजन्यां व्युष्टायां प्रातरुत्थाय कीचकः। | 4-25-10a 4-25-10b |
यत्त्वाऽहं पश्यतो राज्ञः पातयित्वा पदाऽहनम् । | 4-25-11a 4-25-11b |
प्रवादेन तु मात्स्यानामयं राजेति चोच्यते। | 4-25-12a 4-25-12b |
सा सुखं प्रतिपद्यस्व दासो भीरु भवामि ते। | 4-25-13a 4-25-13b |
अहन्यहनि सुश्रोणि शतनिष्कं ददामि ते। | 4-25-14a 4-25-14b |
रथांश्चाश्वतरीयुक्तानस्तु नौ भीरु संगमः । | 4-25-15a 4-25-15b |
अन्तःपुरसहस्रं च हेमकूटसहस्रकम्। | 4-25-16a 4-25-16b |
द्रौपद्युवाच। | 4-25-17x |
एतन्मे वचनं सत्यं प्रतिपद्यस्व कीचक। | 4-25-17a 4-25-17b |
अनुप्रवादाद्भीताऽस्मि गन्धर्वाणां यशस्विनाम् । | 4-25-18a 4-25-18b 4-25-18c |
कीचक उवाच। | 4-25-19x |
एवमेतत्करिष्यामि यथा सुश्रोणि भाषसे। | 4-25-19a 4-25-19b |
समागमार्थं रम्भोरु त्वया मदनदर्पितः। | 4-25-20a 4-25-20b |
द्रौपद्युवाच। | 4-25-21x |
यदेतन्नर्तनागारं मात्स्यराजेन कारितम्। | 4-25-21a 4-25-21b |
निशायां तत्र गच्छेथा गन्धर्वास्तन्न जानते। | 4-25-22a 4-25-22b |
एकस्त्वं नर्तनागारं रात्रौ संकेतमाव्रज । | 4-25-23a 4-25-23b |
कीचक उवाच। | 4-25-24x |
तथा भद्रे करिष्यामि यथा त्वं भीरु वक्ष्यसि। | 4-25-24a 4-25-24b 4-25-24c |
यथा त्वां नावबुध्यन्ति गन्धर्वा वरवर्णिनि। | 4-25-25a 4-25-25b 4-25-25c |
वासांसि च विचित्राणि मनोज्ञानि तवापि च। | 4-25-26a 4-25-26b |
द्रौपद्युवाच। | 4-25-27x |
तथा चेदप्यहं सूत दर्शयिष्यामि ते सुखम्। | 4-25-27a 4-25-27b |
वैशंपायन उवाच। | 4-25-28x |
तमर्थमपि जल्पन्त्या द्रौपद्याः कीचकस्य ह। | 4-25-28a 4-25-28b |
कीचकोऽथ गृहं गत्वा भृशं हर्षपरिप्लुतः। | 4-25-29a 4-25-29b |
गन्धाभरणमाल्येषु व्यासक्तः स विशेषतः। | 4-25-30a 4-25-30b |
तस्य तत्कुर्वतः कर्म कालो दीर्घ इवाभवत्। | 4-25-31a 4-25-31b |
आसीदभ्यधिका चापि श्रीः श्रियं प्रमुमुक्षतः । | 4-25-32a 4-25-32b |
कृतसंप्रत्ययस्तस्याः कीचकः काममोहितः। | 4-25-33a 4-25-33b |
ततस्तु द्रौपदी गत्वा भीमसेनं महानसे। | 4-25-34a 4-25-34b |
तमुवाच सुकेशान्ता कीचकस्य कृतो मया। | 4-25-35a 4-25-35b |
कालेन नियतं बद्धः कामेन च बलात्कृतः। | 4-25-36a 4-25-36b 4-25-36c |
तं मूतपुत्रं कौन्तेय कीचकं मददर्पितम्। | 4-25-37a 4-25-37b |
गर्वितः मूतपुत्रोऽसौ गन्धर्वानवमन्यते। | 4-25-38a 4-25-38b |
अस्रं दुःखाभिभूताया मम मार्जस्व भारत। | 4-25-39a 4-25-39b 4-25-39c |
भीम उवाच। | 4-25-40x |
स्वागतं ते वरारोहे यन्मां वेदयसे प्रियम्। | 4-25-40a 4-25-40b |
सा मे प्रीतिस्त्वयाऽऽख्याता कीचकस्य समागमे। | 4-25-41a 4-25-41b |
सत्यं भ्रातॄंश्च पुत्रांश्च पुरस्कृत्य शपामि ते। | 4-25-42a 4-25-42b |
प्रसह्य निहनिष्यामि केशवः केशिनं यथा। | 4-25-43a 4-25-43b |
अहं भद्रे हनिष्यामि कीचकं मदनान्वितम्। | 4-25-44a 4-25-44b |
अथ चेदवबुध्यन्ति सूतपुत्रं मया हतम्। | 4-25-45a 4-25-45b |
मया हतांश्चेन्मात्स्यांस्तु धार्तराष्ट्रो विबुध्यति। | 4-25-46a 4-25-46b 4-25-46c |
नाहं शक्तोऽनुनयितुं कुन्तीपुत्रं युधिष्ठिरम्। | 4-25-47a 4-25-47b 4-25-47c |
त्वां तु दुःखमिदं प्राप्तां नाहं शक्नोम्युपेक्षितुम्। | 4-25-48a 4-25-48b |
द्रौपद्युवाच। | 4-25-49x |
कीचकस्य वधं भीम यदि जानन्ति नागराः। | 4-25-49a 4-25-49b |
कथं सत्याच्च नापेयाद्राजाऽयं मत्कृते प्रभो। | 4-25-50a 4-25-50b |
अनुबुद्धे हि कौन्तेयो धर्मराजो युधिष्ठिरः। | 4-25-51a 4-25-51b |
कश्च धर्मपरं ज्येष्ठमतिवर्तेत भारत। | 4-25-52a 4-25-52b |
यथा न कश्चिञ्जानीते सूतपुत्रं त्वया हतम्। | 4-25-53a 4-25-53b 4-25-53c |
।। इति श्रीमन्महाभारते विराटपर्वणि |
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