महाभारतम्-04-विराटपर्व-069
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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विराटेन युधिष्ठिरादिभिः सह सुशर्मादिजयानन्तरं पुसंप्रत्यागमनम् ।। 1।। तथा उत्तरस्य कुरुविजयाय सहबृहन्नलया गमनश्रवणेन तद्रक्षणाय सेनाचोदना ।। 2 ।। अत्रान्तरे विराटाय दूतैरुत्तरजनिवेदनम् ।। 3 ।।
वैशंपायन उवाच। | 4-69-1x |
स विजित्य धनं चापि विराटो वाहिनीपतिः। | 4-69-1a 4-69-1b |
जित्वा त्रिगर्तान्संग्रामे गाश्चैवानाय्य केवलाः। | 4-69-2a 4-69-2b |
तमासनगत वीरं सुहृदां प्रीतिवर्धनम् । | 4-69-3a 4-69-3b |
सभाजितः सभासद्भिः प्रतिनन्द्य स मत्स्यराट् । | 4-69-4a 4-69-4b |
ततः स राजा मात्स्यानां विराटो वाहिनीपतिः। | 4-69-5a 4-69-5b 4-69-5c |
आचख्युस्तत्र संहृष्टाः स्त्रियः कन्याश्च वेश्मनि। | 4-69-6a 4-69-6b |
ताञ्जेतुमभिसंरब्ध एक एवातिसाहसात् । | 4-69-7a 4-69-7b |
उपयातानतिरथान्द्रोणं शान्तनवं कृपम्। | 4-69-8a 4-69-8b |
ततो विराटः परमाभितप्तः | 4-69-9a 4-69-9b 4-69-9c 4-69-9d |
गवां शतसहस्राणि उभिभूय ममात्मजम्। | 4-69-10a 4-69-10b |
तस्माद्गच्छतु मे योधा बलेन महता वृताः। | 4-69-11a 4-69-11b |
वैशंपायन उवाच। | 4-69-12x |
हयांश्च नागांश्च रथांश्च शीघ्रं | 4-69-12a 4-69-12b 4-69-12c 4-69-12d |
एवं स राजा मात्स्यानां महानक्षोहिणीपतिः। | 4-69-13a 4-69-13b |
कुमारमाशु जानीत यदि जीवति वा नवा। | 4-69-14a 4-69-14b |
तमब्रवीद्धर्मसुतो विराट- | 4-69-15a 4-69-15b 4-69-15c 4-69-15d |
सर्वान्महीपान्सहितान्कुरूंश्च | 4-69-16a 4-69-16b 4-69-16c 4-69-16d |
सर्वथा कुरवश्चापि ये चान्ये वसुधाधिपाः । | 4-69-17a 4-69-17b |
वैशंपायन उवाच। | 4-69-18x |
अथोत्तरेण प्रहिता दूतास्ते शीघ्रगामिनः । | 4-69-18a 4-69-18b |
राजानं वृतमाचख्युर्मन्त्रिभिर्जयमुत्तमम् । | 4-69-19a 4-69-19b |
सर्वा विनिर्जिता गावः कुरवश्च पराजिताः। | 4-69-20a 4-69-20b |
कङ्क उवाच। | 4-69-21x |
दिष्ट्या ते निर्जिता गावः कुरवश्च पराजिताः। | 4-69-21a 4-69-21b |
नाद्भुतं त्विह मन्येऽहं यत्ते पुत्रोऽजयत्कुरून्। | 4-69-22a 4-69-22b |
देवेन्द्रसारथिश्चैव मातलिः ख्यातविक्रमः । | 4-69-23a 4-69-23b |
वैशंपायन उवाच। | 4-69-24x |
ततो विराटो नृपतिः संप्रहृष्टतनूरुह। | 4-69-24a 4-69-24b 4-69-24c |
गते त्वनुजने तस्मिन्दूतवाक्यं निशम्य च। | 4-69-25a 4-69-25b |
राजमार्गाः क्रियन्तां वै पताकाभिरलंकृताः। | 4-69-26a 4-69-26b |
कुमारा योधमुख्याश्च गणिकाश्च स्वलंकृताः। | 4-69-27a 4-69-27b |
भवन्तु ते लब्धजये सुते मे | 4-69-28a 4-69-28b 4-69-28c 4-69-28d |
भजन्तु सर्वा गणिकाः सुतं मे | 4-69-29a 4-69-29b 4-69-29c 4-69-29d |
घण्टापणवकाः शीघ्रं मत्तमारुह्य कुञ्जरम्। | 4-69-30a 4-69-30b |
उत्तरा च कुमारीभिर्बह्वाभरणभूषिता। | 4-69-31a 4-69-31b |
श्रुत्वा तु वचनं तस्य पार्थिवस्य महात्मन। | 4-69-32a 4-69-32b |
मूताश्च सर्वे सहमागधाश्च | 4-69-33a 4-69-33b 4-69-33c 4-69-33d |
वन्दिप्रवादाः पणवादिकाश्च | 4-69-34a 4-69-34b 4-69-34c 4-69-34d |
प्रत्युद्ययुः पुत्रमनन्तवीर्यं | 4-69-35a 4-69-35b 4-69-35c 4-69-36d |
।। इति श्रीमन्महाभारते विराटपर्वणि |
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