महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-049
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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भीष्मेण दुर्योधनंप्रति कृष्णार्जुनयोः नरनारायणतादात्म्यकथनपूर्वकं तद्विरोधे कुरूणां विनाशकथनम् ।। 1 ।। तथा मर्मोद्धाटनपूर्वकं कर्णगर्हणम् ।। 2 ।। धृतराष्ट्रेण भीष्मद्रोणवचनानादरणे सर्वकुरूणां स्वजीवितनैराश्याधिगमः ।। 3 ।।
वैशंपायन उवाच। | 5-49-1x |
समवेतेषु सर्वेषु तेषु राजसु भारत। | 5-49-1a 5-49-1b |
बृहस्पतिश्चोशना च ब्रह्माणं पर्युपस्थितौ। | 5-49-2a 5-49-2b |
आदित्याश्चैव साध्याश्च ये च सप्तर्पयो दिवि। | 5-49-3a 5-49-3b |
नमस्कृत्योपजग्मुस्ते लोकवृद्धं पितामहम् । | 5-49-4a 5-49-4b |
तेषां मनश्च तेजश्चाप्याददानाविवौजसा । | 5-49-5a 5-49-5b |
बृहस्पतिस्तु पप्रच्छ ब्रह्माणं काविमाविति। | 5-49-6a 5-49-6b |
ब्रह्मोवाच। | 5-49-7x |
यावेतौ पृथिवीं द्यां च भासयन्तौ तपस्विनौ। | 5-49-7a 5-49-7b |
नरनारायणावेतौ लोकाल्लोकं समास्थितौ । | 5-49-8a 5-49-8b |
एतौ हि कर्मणा लोकं नन्दयामासतुर्ध्रुवम् । | 5-49-9a 5-49-9b 5-49-9c |
वैशंपायन उवाच। | 5-49-10x |
जगाम शक्रस्तच्छ्रत्वा यत्र तौ तेपतुस्तपः । | 5-49-10a 5-49-10b |
तदा देवासुरे युद्धे भये जाते दिवौकसाम्। | 5-49-11a 5-49-11b |
तावब्रूतां वृणीष्वेति तदा भरतसत्तम। | 5-49-12a 5-49-12b |
ततस्तौ शक्रमब्रूतां करिष्यावो यदिच्छसि। | 5-49-13a 5-49-13b |
नर इन्द्रस्य संग्रामे हत्वा शत्रून्परन्तपः । | 5-49-14a 5-49-14b |
एष भ्रान्ते रथे तिष्ठन्भल्लेनापाहरच्छिरः। | 5-49-15a 5-49-15b |
एष पारे समुद्रस्य हिरण्यपुरमारुजत्। | 5-49-16a 5-49-16b |
एष देवान्सहेन्द्रेण जित्वा परपुरञ्जयः। | 5-49-17a 5-49-17b |
नारायणस्तथैवात्र भूयसोऽन्याञ्जघान ह। | 5-49-18a 5-49-18b |
वासुदेवार्जुनौ वीरौ समवेतौ महारथौ । | 5-49-19a 5-49-19b |
अजेयौ मानुषे लोके सेन्द्रैरपि सुरासुरैः । | 5-49-20a 5-49-20b 5-49-20c |
एतौ हि कर्मणा लोकानश्रुवातेऽक्षयान्ध्रुवान्। | 5-49-21a 5-49-21b |
तस्मात्कर्मैव कर्तव्यमिति होवाच नारदः । | 5-49-22a 5-49-22b |
शङ्खचक्रगदाहस्तं यदा द्रक्ष्यसि केशवम्। | 5-49-23a 5-49-23b |
सनातनौ महात्मानौ कृष्णावेकरथे स्थितौ। | 5-49-24a 5-49-24b |
नोचेदयमभावः स्यात्कुरूणां प्रत्युपस्थितः। | 5-49-25a 5-49-25b |
न चेद्ग्रहीष्यसे वाक्यं श्रोतामि सुबहून्हतान्। | 5-49-26a 5-49-26b |
त्रयाणामेव च मतं तत्त्वमेकोऽनुमन्यसे। | 5-49-27a 5-49-27b |
दुर्जातेः सूतपुत्रस्य शकुनेः सौबलस्य च। | 5-49-28a 5-49-28b |
कर्ण उवाच। | 5-49-29x |
नैवमायुष्मता वाच्यं यन्मामात्थ पितामह । | 5-49-29a 5-49-29b |
किञ्चान्यन्मयि दुर्वृत्तं येन मां परिगर्हसे। | 5-49-30a 5-49-30b |
नाचरं वृजिनं किञ्चिद्धार्तराष्ट्रस्य नित्यशः । | 5-49-31a 5-49-31b |
प्राग्विरुद्धैः शमं सद्भिः कथं वा क्रियते पुनः। | 5-49-32a 5-49-32b 5-49-32c |
वैशंपायन उवाच। | 5-49-33x |
कर्णस्य तु वचः श्रुत्वा भीष्मः शान्तनवः पुनः। | 5-49-33a 5-49-33b |
यदयं कत्थते नित्यं हन्ताहं पाण्डवानिति। | 5-49-34a 5-49-34b |
अनयो योयमागन्ता पुत्राणां ते दुरात्मनाम् । | 5-49-35a 5-49-35b |
एतमाश्रित्य पुत्रस्ते मन्दबुद्धिः सुयोधनः । | 5-49-36a 5-49-36b |
किञ्चाप्येतेन तत्कर्म कृतपूर्वं सुदुष्करम्। | 5-49-37a 5-49-37b |
दृष्ट्वा विराटनगरे भ्रातरं निहतं प्रियम्। | 5-49-38a 5-49-38b |
` सर्वे ह्यस्त्रिविदः शूराः सर्वे प्राप्ता महद्यशः। | 5-49-39a 5-49-39b |
सहितान्हि कुरून्सर्वानभियातो धनञ्जयः। | 5-49-40a 5-49-40b |
गन्धर्वैर्घोषयात्रायां ह्रियते यत्सुतस्तव। | 5-49-41a 5-49-41b |
ननु तत्रापि भीमेन पार्थेन च महात्मना। | 5-49-42a 5-49-42b |
एतान्यस्य मृषोक्तानि बहूनि भरतर्षभ । | 5-49-43a 5-49-43b |
वैशंपायन उवाच। | 5-49-44x |
भीष्मस्य तु वचः श्रुत्वा भारद्वाजो महामताः। | 5-49-44a 5-49-44b |
यदाह भरतश्रेष्ठो भीष्मस्तत्क्रियतां नृप । | 5-49-45a 5-49-45b |
पुरा युद्धात्साधु मन्ये पाण्डवैः सह सङ्गतम्। | 5-49-46a 5-49-46b |
सर्वं तदभिजानामि करिष्यति च पाण्डवः। | 5-49-47a 5-49-47b |
वैशंपायन उवाच। | 5-49-48x |
अनादृत्य तु तद्वाक्यमर्थवद्द्रोणभीष्मयोः। | 5-49-48a 5-49-48b |
तदैव कुरवः सर्वे निराशा जीवितेऽभवन् । | 5-49-49a 5-49-49b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-49-16 आरुजत् पीडितवान् ।। 5-49-41 वृषायते कर्णो भवति ।।
उद्योगपर्व-048 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | उद्योगपर्व-050 |