महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-048
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सञ्जयेन धृतराष्ट्रंप्रति श्रीकृष्णमहिमादिप्रतिपादकानामर्जुनवचसां विस्तरेण कथनम् ।। 1 ।।
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-48-1x |
पृच्छामि त्वां सञ्जय राजमध्ये | 5-48-1a 5-48-1b 5-48-1c 5-48-1d |
सञ्जय उवाच। | 5-48-2x |
दुर्योधनो वाचमिमां श्रृणोतु | 5-48-2a 5-48-2b 5-48-2c 5-48-2d |
अवित्रस्तो बाहुवीर्यं विजान- | 5-48-3a 5-48-3b 5-48-3c 5-48-3d |
संश्रृण्वतस्तस्य दुर्भाषिणो वै | 5-48-4a 5-48-4b 5-48-4c 5-48-4d |
ये वै राजानः पाण्डवायोधनाय | 5-48-5a 5-48-5b 5-48-5c 5-48-5d |
यथा नूनं देवराजस्य देवाः | 5-48-6a 5-48-6b 5-48-6c 5-48-6d |
इत्यब्रवीदर्जुनो योत्स्यमानो | 5-48-7a 5-48-7b 5-48-7c 5-48-7d |
अस्ति नूनं कर्म कृतं पुरस्ता- | 5-48-8a 5-48-8b 5-48-8c 5-48-8d |
शैनयेन ध्रुवमात्तायुधेन | 5-48-9a 5-48-9b 5-48-9c 5-48-9d |
तैश्चेद्योद्धुं मन्यते धार्तराष्ट्रो | 5-48-10a 5-48-10b 5-48-10c 5-48-10d |
यां तां वने दुःखशय्यामवात्सी- | 5-48-11a 5-48-11b 5-48-11c 5-48-11d |
ह्रिया ज्ञानेन तपसा दमेन | 5-48-12a 5-48-12b 5-48-12c 5-48-12d |
मायोपधं प्रतिधानार्जवाभ्यां | 5-48-13a 5-48-13b 5-48-13c 5-48-13d |
यदा ज्येष्ठः पाण्डवः संशितात्मा | 5-48-14a 5-48-14b 5-48-14c 5-48-14d |
कृष्णवर्त्मेव ज्वलितः समिद्धो | 5-48-15a 5-48-15b 5-48-15c 5-48-15d |
यदा द्रष्टा भीमसेनं रथस्यं | 5-48-16a 5-48-16b 5-48-16c 5-48-16d |
सेनागगं दंशितं भीमसेनं | 5-48-17a 5-48-17b 5-48-17c 5-48-17d |
यदा द्रष्टा भीमसेनेन नागा- | 5-48-18a 5-48-18b 5-48-18c 5-48-18d |
महासिंहो गा इव संप्रविश्य | 5-48-19a 5-48-19b 5-48-19c 5-48-19d |
महाभये वीतभयः कृतास्त्रः | 5-48-20a 5-48-20b 5-48-20c 5-48-20d |
सैन्याननेकांस्तरसा विगृह्ण- | 5-48-21a 5-48-21b 5-48-21c 5-48-21d |
तृणप्रायं ज्वलनेनेव दग्धं | 5-48-22a 5-48-22b 5-48-22c 5-48-22d |
हतप्रवीरं विमुखं भयार्तं | 5-48-23a 5-48-23b 5-48-23c 5-48-23d |
उपासङ्गानाचरेद्दक्षिणेन | 5-48-24a 5-48-24b 5-48-24c 5-48-24d |
सुखोचितो दुःखशय्यां वनेषु | 5-48-25a 5-48-25b 5-48-25c 5-48-25d |
त्यक्तात्मानः पार्थिवायोधनाय | 5-48-26a 5-48-26b 5-48-26c 5-48-26d |
शिशून्कृतास्त्रानशिशुप्रकाशान् | 5-48-27a 5-48-27b 5-48-27c 5-48-27d |
यथा शक्रो दानवनाशनार्थं | 5-48-28a 5-48-28b 5-48-28c 5-48-28d |
महाभये संप्रवृत्ते रथस्थं | 5-48-29a 5-48-29b 5-48-29c 5-48-29d |
ह्रीनिषेवो निपुणः सत्यवादी | 5-48-30a 5-48-30b 5-48-30c 5-48-30d |
यदा द्रष्टा द्रौपदेयान्महेषून् | 5-48-31a 5-48-31b 5-48-31c 5-48-31d |
यदाभिमन्युः परवीरघाती | 5-48-32a 5-48-32b 5-48-32c 5-48-32d |
यदा द्रष्टा बालमबालवीर्यं | 5-48-33a 5-48-33b 5-48-33c 5-48-33d |
प्रभद्रकाः शीघ्रतरा युवानो | 5-48-34a 5-48-34b 5-48-34c 5-48-34d |
वृद्धौ विराटद्रुपदौ महारथौ | 5-48-35a 5-48-35b 5-48-35c 5-48-35d |
यदा कृतास्त्रो द्रुपदः प्रचिन्वन् | 5-48-36a 5-48-36b 5-48-36c 5-48-36d |
यदा विराटः परवीरघाती | 5-48-37a 5-48-37b 5-48-37c 5-48-37d |
ज्येष्ठं मात्स्यमनृसंसार्यरूपं | 5-48-38a 5-48-38b 5-48-38c 5-48-38d |
रणे हते कौरवाणां प्रवीरे | 5-48-39a 5-48-39b 5-48-39c 5-48-39d |
यदा शिखण्डी रथिनः प्रचिन्वन् | 5-48-40a 5-48-40b 5-48-40c 5-48-40d |
यदा द्रष्टा सृञ्जयानामनीके | 5-48-41a 5-48-41b 5-48-41c 5-48-41d |
यदा स सेनापतिरप्रमेयः | 5-48-42a 5-48-42b 5-48-42c 5-48-42d |
ह्रीमान्मनीपी बलवान्मनस्वी | 5-48-43a 5-48-43b 5-48-43c 5-48-43d |
इदं च ब्रूया मा वृणीष्वेति लोके | 5-48-44a 5-48-44b 5-48-44c 5-48-44d |
महोरस्को दीर्घबाहुः प्रमाथी | 5-48-45a 5-48-45b 5-48-45c 5-48-45d |
यदा शिनीनामधिपो मयोक्तः | 5-48-46a 5-48-46b 5-48-46c 5-48-46d |
यदा धृतिं कुरुते योत्स्यमानः | 5-48-47a 5-48-47b 5-48-47c 5-48-47d |
स दीर्घबाहुर्दृढधन्वा महात्मा | 5-48-48a 5-48-48b 5-48-48c 5-48-48d |
चित्रः सूक्ष्मः सुकृतो यादवस्य | 5-48-49a 5-48-49b 5-48-49c 5-48-49d |
हिरण्मयं श्वेतहयैश्चतुर्भि- | 5-48-50a 5-48-50b 5-48-50c 5-48-50d |
यदा रथं हेममणिप्रकाशं | 5-48-51a 5-48-51b 5-48-51c 5-48-51d |
यदा मौर्व्यास्तलनिष्पेपमुग्रं | 5-48-52a 5-48-52b 5-48-52c 5-48-52d |
तदा मूढो धृतराष्ट्रस्य पुत्र- | 5-48-53a 5-48-53b 5-48-53c 5-48-53d |
बलाहकादुच्चरतः सुभीमा- | 5-48-54a 5-48-54b 5-48-54c 5-48-54d |
यदा द्रष्टा ज्यामुखाद्बाणसङ्घान् | 5-48-55a 5-48-55b 5-48-55c 5-48-55d |
यदा मन्दः परबाणान्विमुक्ता- | 5-48-56a 5-48-56b 5-48-56c 5-48-56d |
यदा विपाठा मद्भुजविप्रमुक्ता | 5-48-57a 5-48-57b 5-48-57c 5-48-57d |
यदा द्रष्टा पततः स्यन्दनेभ्यो | 5-48-58a 5-48-58b 5-48-58c 5-48-58d |
असंप्राप्तानस्त्रपथं परस्य | 5-48-59a 5-48-59b 5-48-59c 5-48-59d |
पदातिसङ्घान्रथसङ्घान्समन्ता- | 5-48-60a 5-48-60b 5-48-60c 5-48-60d |
सर्वा दिशः संपतता रथेन | 5-48-61a 5-48-61b 5-48-61c 5-48-61d |
कान्दिग्भूतं छिन्नगात्रं विसंज्ञं | 5-48-62a 5-48-62b 5-48-62c 5-48-62d |
आर्तस्वरं हन्यमानं हतं च | 5-48-63a 5-48-63b 5-48-63c 5-48-63d |
यदा रथे गाण्डिवं वासुदेवं | 5-48-64a 5-48-64b 5-48-64c 5-48-64d |
उद्वर्तयन्दस्युसङ्घान्समेतान् | 5-48-65a 5-48-65b 5-48-65c 5-48-65d |
सभ्राता वै सहसैन्यः सभृत्यो | 5-48-66a 5-48-66b 5-48-66c 5-48-66d |
पूर्वाह्णे मां कृतजप्यं कदाचि- | 5-48-67a 5-48-67b 5-48-67c 5-48-67d |
इन्द्रो वा ते हरिवान्वज्रहस्तः | 5-48-68a 5-48-68b 5-48-68c 5-48-68d |
वज्रे चाहं वज्रहस्तान्महेन्द्रा- | 5-48-69a 5-48-69b 5-48-69c 5-48-69d |
अयुद्ध्यमानो मनसापि यस्य | 5-48-70a 5-48-70b 5-48-70c 5-48-70d |
स बाहुभ्यां सागरमुत्तितीर्षे- | 5-48-71a 5-48-71b 5-48-71c 5-48-71d |
गिरिं य इच्छेत्तु तलेन भेत्तुं | 5-48-72a 5-48-72b 5-48-72c 5-48-72d |
अग्निं समिद्धं शमयेद्भुजाभ्यां | 5-48-73a 5-48-73b 5-48-73c 5-48-73d |
यो रुक्मिणीमेकरथेन भोज- | 5-48-74a 5-48-74b 5-48-74c 5-48-74d |
अयं गान्धारांस्तरसा संप्रमथ्य | 5-48-75a 5-48-75b 5-48-75c 5-48-75d |
अयं कवाटे निजघान पाण्ड्यं | 5-48-76a 5-48-76b 5-48-76c 5-48-76d |
अयं स्म युद्धे मन्यतेऽन्यैरजेयं | 5-48-77a 5-48-77b 5-48-77c 5-48-77d |
तथोग्रसेनस्य सुतं सुदुष्टं | 5-48-78a 5-48-78b 5-48-78c 5-48-78d |
अयं सौभं योधयामास स्वस्थं | 5-48-79a 5-48-79b 5-48-79c 5-48-79d |
प्राग्ज्योतिषं नाम बभूव दुर्गं | 5-48-80a 5-48-80b 5-48-80c 5-48-80d |
न तं देवाः सह शक्रेण शेकुः | 5-48-81a 5-48-81b 5-48-81c 5-48-81d |
जानन्तोऽस्य प्रकृतिं केशवस्य | 5-48-82a 5-48-82b 5-48-82c 5-48-82d |
निर्मोचने षट्सहस्राणि हत्वा | 5-48-83a 5-48-83b 5-48-83c 5-48-83d |
तत्रैव तेनास्य बभूव युद्धं | 5-48-84a 5-48-84b 5-48-84c 5-48-84d |
आहृत्य कृष्णो मणिकुण्डले ते | 5-48-85a 5-48-85b 5-48-85c 5-48-85d |
अस्मै वराण्यददंस्तत्र देवा | 5-48-86a 5-48-86b 5-48-86c 5-48-86d |
शस्त्राणि गात्रे न च ते क्रमेर- | 5-48-87a 5-48-87b 5-48-87c 5-48-87d |
तमसह्यं विष्णुमनन्तवीर्य- | 5-48-88a 5-48-88b 5-48-88c 5-48-88d |
पर्यागतं मम कृष्णस्य चैव | 5-48-89a 5-48-89b 5-48-89c 5-48-89d |
नमस्कृत्वा शान्तनवाय राज्ञे | 5-48-90a 5-48-90b 5-48-90c 5-48-90d |
धर्मेणाप्तं निधनं तस्य मन्ये | 5-48-91a 5-48-91b 5-48-91c 5-48-91d |
वासः कृच्छ्रो विहितश्चाप्यरण्ये | 5-48-92a 5-48-92b 5-48-92c 5-48-92d |
ते चेदस्मान्युध्यमानाञ्जयेयु- | 5-48-93a 5-48-93b 5-48-93c 5-48-93d |
न चेदिदं पौरुषं कर्मबद्धं | 5-48-94a 5-48-94b 5-48-94c 5-48-94d |
न चेदिदं कर्म नरेन्द्र वन्ध्यं | 5-48-95a 5-48-95b 5-48-95c 5-48-95d |
प्रत्यक्षं वः कुरवो यद्ब्रवीमि | 5-48-96a 5-48-96b 5-48-96c 5-48-96d |
हत्वा त्वहं धार्तराष्ट्रान्सकर्णा- | 5-48-97a 5-48-97b 5-48-97c 5-48-97d |
अप्येवं नो ब्राह्मणाः सन्ति वृद्धा | 5-48-98a 5-48-98b 5-48-98c 5-48-98d |
उच्चावचं दैवयुक्तं रहस्यं | 5-48-99a 5-48-99b 5-48-99c 5-48-99d |
यथा हि नो मन्यतेऽजातशत्रुः | 5-48-100a 5-48-100b 5-48-100c 5-48-100d |
अहं तथैनं खलु भाविरूपं | 5-48-101a 5-48-101b 5-48-101c 5-48-101d |
अनालब्धं जृम्भति गाण्डिवं धनु- | 5-48-102a 5-48-102b 5-48-102c 5-48-102d |
खङ्गः कोशान्निःसरति प्रसन्नो | 5-48-103a 5-48-103b 5-48-103c 5-48-103d |
गोमायुसङ्घाश्च नदन्ति रात्रौ | 5-48-104a 5-48-104b 5-48-104c 5-48-104d |
सुवर्णपत्राश्च पतन्ति पञ्चा- | 5-48-105a 5-48-105b 5-48-105c 5-48-105d |
समादेदानः पृथगस्त्रमार्गा- | 5-48-106a 5-48-106b 5-48-106c 5-48-106d |
वधे धृतो वेगवतः प्रमुञ्च- | 5-48-107a 5-48-107b 5-48-107c 5-48-107d |
ये वैजय्याः समरे सूत लब्ध्वा | 5-48-108a 5-48-108b 5-48-108c 5-48-108d |
वृद्धो भीष्मः शान्तनवः कृपश्च | 5-48-109a 5-48-109b 5-48-109c 5-48-109d |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-48-8 कर्म पापम्। अनिर्विष्टं अनुपभुक्तम्। अश्विभ्यां अश्विपुत्राभ्याम् ।। 5-48-9 अपध्यानात अपकारचिन्तनमात्रात् । गां पृथ्वीम् ।। 5-48-12 त्वं एतावत्कुर्वित्याह ह्रियेति। यान् लोकान् अन्यायवृत्तिर्धार्तराष्ट्रोऽध्यतिष्ठत् तान् ह्रीप्रभृतिनिर्गुणैरुपलक्षिते पाण्डवे अनुरक्तान् कुरु ।। 5-48-13 मायया कपटेन उपधीयन्ते उपस्थाप्यन्ते इति मायोपधश्चलवादः तम्। प्रतिपन्नः प्राप्तः प्रणिधानादिभिरुपेतः सत्यं ब्रुवंश्च नः नृपः अतिवेलं क्लिश्यमानोपि तितिक्षमाण एवास्ते इति शेषः ।। 5-48-14 क्रोध अवस्त्रष्टा उत्स्रक्ष्यति। अन्वतप्त्यत् शोचिष्यति। आर्षोलकारव्यत्ययः ।। 5-48-15 कृष्णवर्त्मा दाहेन कृष्णीकृतभूभाग इति प्राञ्चः। दग्धा धक्ष्यति ।। 5-48-22 तृणप्रायं तृणगृहमयं ग्रामम्। परासिक्तं दूरे निरस्तम् ।। 5-48-24 वराङ्गानां शिरसाम्। उपासङ्गान् उच्चयान् । दक्षिणेन कुशलेन अनायासेनेति यावत्। आचरेत् कुर्यात्। रथिनः योधान्। प्रचेता कूटीकरिष्यति ।। 5-48-25 दुःखशय्यां अशेतेत्युत्तरं तां यदा स्मरिष्यतीति शेषः ।। 5-48-28 सुवर्णस्य तारो दीर्घतन्तुः तम्। अतिवेगादलातचक्रवत्सुवर्णरेखातुल्यमित्यर्थ- ।। 5-48-31 आयतः आगच्छतः ।। 5-48-34 क्षेप्तारः क्षेप्स्यन्ति ।। 5-48-39 धारयेयुः जीवेयुः ।। 5-48-40 वरूथी रथगुप्तिमान् ।। 5-48-43 स वृष्णिसिंहः कृष्णाः येषामग्रणीः स्यात् तेभ्योऽन्ये तं न सहेरन् ।। 5-48-44 राज्यं च मा वृणीष्व मा प्रार्थयस्व इति ब्रूयाः । दुर्योधनं प्रतीत्यर्थात्। यतः वयं युद्धेऽद्वितयं सहायं सत्यकिं प्रवृणीम वृतवन्त- ।। 5-48-49 वृष्णिसिंहस्य कृष्णस्य यथाविधं यादृक्प्रकारं योगमाहुः तैः सर्वैर्गुणैः सात्यकिरुपेतः ।। 5-48-55 आददानान् ग्रसमानान् ।। 5-48-57 प्रचेतारः राशीकरिष्यन्ति ।। 5-48-59 अस्त्रपथं असंप्राप्तान् । अस्त्रं दृष्ट्वैव नश्यत इत्यर्थः 5-48-60 प्रणोत्स्यामि दूरीकरिष्यामि ।। 5-48-62 कान्दिग्भूतं भयेन पलायितम्। श्रान्तपत्रं श्रान्तवाहनम् ।। 5-48-63 यथा वाजपेये प्रजापतिदैवत्याः सप्तदश पशवो विशस्यन्ते तद्वद्बहूनामिहापि विशसनं कृतम् ।। 5-48-64 देवदत्तं अर्जुनस्य शङ्खम् ।। 5-48-67 उदूकान्ते संध्यावन्दनाचमनान्ते ।। 5-48-71 सागरं सगरैर्वर्धितम्। सलिलस्य महोदधिं जलसमुद्रम् ।। 5-48-75 सुदर्शनं नाम राजानम्। ललामं ललामभूतः कृष्णः ।। 5-48-76 कवाटे नगरभेदे ।। 5-48-77 अयं सुयोधनः। यथा जम्भो दैत्यः शैलं वेगेन अभिहत्य हतः शेते तद्वत् ।। 5-48-80 भौमो भूमिपुत्रः ।। 5-48-83 निर्मिचने नगरे। क्षुरान्तान् तीक्ष्णधारान् लोहमयानित्यर्थः ।। 5-48-93 साधु कृतं सत्कर्म नास्ति। निष्पलत्वात् वृथैव धर्म इत्यर्थः ।। 5-48-94 कर्मबद्धं न मन्यते चेदित्योकृष्य योज्यम् ।। 5-48-95 इदं राज्यस्याप्रदानं इदानींतनम्। तच्च राज्यात् निःसारणं तदार्नीतनं अभिसमीक्ष्य आलोच्य। पापवशात्पराजय एव तस्येत्यर्थः ।। 5-48-99 मृगचक्रा मृगसमूहाः ।। 5-48-108 विजयः कर्म येषां ते वैजय्याः। देवानपि लब्ध्वा विजयवन्त एवेत्यर्थः ।।
उद्योगपर्व-047 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | उद्योगपर्व-049 |