महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-053
← उद्योगपर्व-052 | महाभारतम् पञ्चमपर्व महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-053 वेदव्यासः |
उद्योगपर्व-054 → |
महाभारतस्य पर्वाणि |
---|
धृतराष्ट्रेण कुरून्प्रति पाण्डवानां बलवत्सहायसंपन्नत्वादिगुणसमृद्धिकथनपूर्वकं शान्त्यर्थं स्वेन प्रयतनाभिधानम् ।। 1 ।।
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-53-1x |
यथैव पाण्डवाः सर्वे पराक्रान्ता जिगीषवः। | 5-53-1a 5-53-1b |
......हि पराक्रान्तानाचक्षीथाः परान्मम। | 5-53-2a 5-53-2b |
यश्च सेन्द्रानिमाँल्लोकानिच्छन्कुर्याद्वशे बली। | 5-53-3a 5-53-3b |
समस्तामर्जुनाद्विद्यां सात्यकिः क्षिप्रमाप्तवान्। | 5-53-4a 5-53-4b |
धृष्टद्युम्नश्च पाञ्चाल्यः क्रूरकर्मा महारथः । | 5-53-5a 5-53-5b |
युधिष्ठिरस्य च क्रोधादर्जुनस्य च विक्रमात्। | 5-53-6a 5-53-6b |
अमानुषं मनुष्येन्द्रैर्जालं विततमन्तरा । | 5-53-7a 5-53-7b |
दर्शनीयो मनस्वी च लक्ष्मीवान्ब्रह्मवर्चसी। | 5-53-8a 5-53-8b |
मित्रामात्यैः सुसंपन्नः संपन्नो युद्धयोजकैः । | 5-53-9a 5-53-9b |
धृत्या च पुरुषव्याघ्रो नैभृत्येन च पाण्डवः। | 5-53-10a 5-53-10b |
बहुश्रुतः कृतात्मा च वृद्धसेवी जितेन्द्रियः । | 5-53-11a 5-53-11b |
तपन्तमभि को मन्दः पतिष्यति पतङ्गवत्। | 5-53-12a 5-53-12b |
तनुरुच्चः शिखी राजा मिथ्योपचरितो मया। | 5-53-13a 5-53-13b |
तैरयुद्धं साधु मन्ये कुरवस्तन्निबोधत। | 5-53-14a 5-53-14b |
एषा मे परमा बुद्धिर्यया शाम्यति मे मनः । | 5-53-15a 5-53-15b |
न तु नः क्लिश्यमानानामुपेक्षेत युधिष्ठिरः। | 5-53-16a 5-53-16b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-53-1 अभिसराः पुरोगाः ।। 5-53-10 नैभृत्येन मन्त्रगुप्त्या ।।
उद्योगपर्व-052 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | उद्योगपर्व-054 |