महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-062
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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कर्णेन धृतराष्ट्रमनादृत्य पाण्डवहननप्रतिज्ञानम् ।। 1 ।। तथा भीष्माधिक्षिप्तेन तेन युद्धे भीष्मशमनावधि शस्त्रन्यासं प्रतिज्ञाय स्वभवनगमनम् ।। 2 ।। भीष्मेण प्रत्यहं अयुतयोधवधप्रतिज्ञा ।। 3 ।।
वैशंपायन उवाच। | 5-62-1x |
तथा तु पृच्छन्तमतीव पार्थं | 5-62-1a 5-62-1b 5-62-1c 5-62-1d |
मिथ्या प्रतिज्ञाय मया यदस्त्रं | 5-62-2a 5-62-2b 5-62-2c 5-62-2d |
महापराधे ह्यपि यन्न तेन | 5-62-3a 5-62-3b 5-62-3c 5-62-3d |
प्रसादितं ह्यस्य मया मनोऽभू- | 5-62-4a 5-62-4b 5-62-4c 5-62-4d |
निमेषमात्रात्तमृषेः प्रसाद- | 5-62-5a 5-62-5b 5-62-5c 5-62-5d |
पितामहस्तिष्ठतु ते समीपे | 5-62-6a 5-62-6b 5-62-6c 5-62-6d |
एवं ब्रुवन्तं तमुवाच भीष्मः | 5-62-7a 5-62-7b 5-62-7c 5-62-7d |
यत्खाण्डवं दाहयता कृतं हि | 5-62-8a 5-62-8b 5-62-8c 5-62-8d |
यां चापि शक्तिं त्रिदशाधिपस्ते | 5-62-9a 5-62-9b 5-62-9c 5-62-9d |
यस्ते शरः सर्पमुखो विभाति | 5-62-10a 5-62-10b 5-62-10c 5-62-10d |
बाणस्य भौमस्य च कर्ण हन्ता | 5-62-11a 5-62-11b 5-62-11c 5-62-11d |
कर्ण उवाच। | 5-62-12x |
असंशयं वृष्णिपतिर्यथोक्त- | 5-62-12a 5-62-12b 5-62-12c 5-62-12d |
न्यस्यामि शस्त्राणि न जातु सङ्ख्ये | 5-62-13a 5-62-13b 5-62-13c 5-62-13d |
वैशंपायन उवाच। | 5-62-14x |
इत्येवमुक्त्वा स महाधनुष्मान् | 5-62-14a 5-62-14b 5-62-14c 5-62-14d |
सत्यप्रतिज्ञः किल सूतपुत्र- | 5-62-15a 5-62-15b 5-62-15c 5-62-15d |
आवन्त्यकालिङ्गजयद्रथेषु | 5-62-16a 5-62-16b 5-62-16c 5-62-16d |
यदैव रामे भगवत्यनिन्द्ये | 5-62-17a 5-62-17b 5-62-17c 5-62-17d |
वैशंपायन उवाच। | 5-62-18x |
तथोक्तवाक्ये नृपतीन्द्र भीष्मे | 5-62-18a 5-62-18b 5-62-18c 5-62-18d |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-62-1 तथेति पार्थं पृच्छन्तं वैचित्रवीर्यं अचिन्तयित्वेति संबन्धः ।। 5-62-4 सावशेषं मम आयुरस्ति। अतोऽन्तकालस्यानुपस्थितत्वात्तदस्त्रं ममास्तीति अहं समर्थोऽस्मि अर्जुनं जेतुमित्यर्थः ।। 5-62-5 प्रपत्स्ये प्रापयिष्ये ।। 5-62-7 प्रधाने त्वयि हते सति सर्वे हताः स्युरत आत्मानं गोपायेत्युपहासः ।। 5-62-17 ब्रह्मब्रुवाणः ब्राह्मणोऽहमिति वदन् ।।
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