महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-063
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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दुर्योधनेन भीष्माभिमतपाण्डवजयपक्षप्रतिक्षेपः ।। 1 ।। तथा भीष्मादिनैरपेक्ष्येण कर्णादुश्शासनसङ्गतेन आत्मनैव पाण्डवनिधनप्रतिज्ञा ।। 2 ।। विदुरेण दमप्रशंसनम् ।। 3 ।।
दुर्योधन उवाच। | 5-63-1x |
सदृशानां मनुष्येषु सर्वेषां तुल्यजन्मनाम्। | 5-63-1a 5-63-1b |
वयं च तेऽपि तुल्या वै वीर्येण च पराक्रमैः । | 5-63-2a 5-63-2b |
अस्त्रेण योधयुग्या च शीघ्रत्वे कौशले तथा। | 5-63-3a 5-63-3b |
पितामह विजानीषे पार्थेषु विजयं कथम्। | 5-63-4a 5-63-4b |
अन्येषु च नरेन्द्रेषु पराक्रम्य समारभे। | 5-63-5a 5-63-5b |
पाण्डवान्समरे पञ्च हनिष्यामः शितैः शरैः । | 5-63-6a 5-63-6b |
ब्राह्मणांस्तर्पयिष्यामि गोभिरश्वैर्धनेन च । | 5-63-7a 5-63-7b 5-63-7c |
पश्यन्तस्ते परांस्तत्र रथनागसमाकुलान्। | 5-63-8a 5-63-8b |
`सुखान्यवाप्य सहिताः कृत्वा कर्म सुदुस्तरम्। | 5-63-9a 5-63-9b |
वैशंपायन उवाच। | 5-63-10x |
अथाब्रवीन्महाराजो धृतराष्ट्रः सुदुर्मनाः । | 5-63-10a 5-63-10b |
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-63-11x |
मोहितो मृत्युपाशेन कालस्य वशमागतः। | 5-63-11a 5-63-11b |
विदुर उवाच। | 5-63-12x |
इह निःश्रेयसं प्राहुर्वृद्धा निश्चितदर्शिनः । | 5-63-12a 5-63-12b |
तस्य दानं क्षमा सिद्धिर्यथावदुपपद्यते । | 5-63-13a 5-63-13b |
दमस्तेजो वर्धयति पवित्रं दम उत्तमम् । | 5-63-14a 5-63-14b |
क्रव्याद्भ्य इव भूतानामदान्तेभ्यः सदा भयम् । | 5-63-15a 5-63-15b |
आश्रमेषु चतुर्ष्वाहुर्दममेवोत्तमं व्रतम्। | 5-63-16a 5-63-16b |
क्षमा धृतिरहिंसा च समता सत्यमार्जवम् । | 5-63-17a 5-63-17b |
अकार्पण्यमसंरम्भः सन्तोषं श्रद्दधानता । | 5-63-18a 5-63-18b |
कामो लोभश्च दर्पश्च मन्युर्निद्रा विकत्थनम्। | 5-63-19a 5-63-19b 5-63-19c |
अलोलुपस्तथाऽल्पेप्सुः कामानामविचिन्तिता । | 5-63-20a 5-63-20b |
सुवृत्तः शीलसंपन्नः प्रसन्नात्माऽत्मविद्बुधः । | 5-63-21a 5-63-21b |
अभयं यस्य भूतेभ्यः सर्वेषामभयं यतः। | 5-63-22a 5-63-22b |
सर्वभूतहितो मैत्रस्तस्मान्नोद्विजते जनः। | 5-63-23a 5-63-23b |
कर्मणाऽचरितं पूर्वं सद्भिराचरितं च यत्। | 5-63-24a 5-63-24b |
नैष्कर्म्यं वा समास्थाय ज्ञानतृप्तो जितेन्द्रियः। | 5-63-25a 5-63-25b |
शकुनीनामिवाकाशे पदं नैवोपलभ्यते। | 5-63-26a 5-63-26b |
उत्सृज्यैव गृहान्यस्तु मोक्षमेवाभिमन्यते । | 5-63-27a 5-63-27b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-63-2 प्रातिभेन समयस्फूर्त्या ।। 5-63-3 योधयुग्या शूरसमृद्ध्या ।। 5-63-7 तरित्रा नौरक्षकाः कर्णधारादयः तद्रहितान् तद्वत् मामकास्तान् रणे बाहुभ्यां परिहरिष्यन्ति ।। 5-63-16 समुदयः उदयहेतु ।।
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