महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-070
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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श्रीकृष्णागमनश्रवणहृष्टेन धृतराष्ट्रेण चक्षुष्मत्प्रशंसनपूर्वकं श्रीकृष्णनुणानुवर्णनम् ।। 1 ।।
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-70-1x |
चक्षुष्मतां वै स्पृहयामि सञ्जय | 5-70-1a 5-70-1b 5-70-1c 5-70-1d |
ईरयन्तं भारतीं भारताना- | 5-70-2a 5-70-2b 5-70-2c 5-70-2d |
समुद्यन्तं सात्वतमेकवीरं | 5-70-3a 5-70-3b 5-70-3c 5-70-3d |
द्रष्टारो हि कुरवस्तं समेता | 5-70-4a 5-70-4b 5-70-4c 5-70-4d |
ऋषिं सनातनतभं विपश्चितं | 5-70-5a 5-70-5b 5-70-5c 5-70-5d |
सहस्रशीर्षं पुरुषं पुराण- | 5-70-6a 5-70-6b 5-70-6c 5-70-6d |
त्रैलोक्यनिर्माणकरं जनित्रं | 5-70-7a 5-70-7b 5-70-7c 5-70-7d |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-70-1 चक्षुष्मतां भाग्याय स्पृहयामि ।। 5-70-5 अरिष्टः अहिंसितः नेमिः पादो यस्य सः अरिष्टनेमिः ।। 5-70-7 निर्माणं रचना। जनित्रं जनयितारम् ।।
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