महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-070

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पञ्चमपर्व
महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-070
वेदव्यासः
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महाभारतस्य पर्वाणि
  1. आदिपर्व
  2. सभापर्व
  3. आरण्यकपर्व
  4. विराटपर्व
  5. उद्योगपर्व
  6. भीष्मपर्व
  7. द्रोणपर्व
  8. कर्णपर्व
  9. शल्यपर्व
  10. सौप्तिकपर्व
  11. स्त्रीपर्व
  12. शान्तिपर्व
  13. अनुशासनपर्व
  14. आश्वमेधिकपर्व
  15. आश्रमवासिकपर्व
  16. मौसलपर्व
  17. महाप्रस्थानिकपर्व
  18. स्वर्गारोहणपर्व

श्रीकृष्णागमनश्रवणहृष्टेन धृतराष्ट्रेण चक्षुष्मत्प्रशंसनपूर्वकं श्रीकृष्णनुणानुवर्णनम् ।। 1 ।।








धृतराष्ट्र उवाच।

5-70-1x

चक्षुष्मतां वै स्पृहयामि सञ्जय
द्रक्ष्यन्ति ये वासुदेवं समीपे।
विभ्राजमानं वपुषा परेण
प्रकाशयन्तं प्रदिशो दिशश्च ।।

5-70-1a
5-70-1b
5-70-1c
5-70-1d

ईरयन्तं भारतीं भारताना-
मभ्यर्चनीयां शङ्करीं सृञ्जयानाम्।
बुभूषद्भिर्गर्हणीयामनिन्द्यां
परासूनामग्रहणीयरूपाम् ।।

5-70-2a
5-70-2b
5-70-2c
5-70-2d

समुद्यन्तं सात्वतमेकवीरं
प्रणेतारमृषभं यादवानाम्।
निहन्तारं क्षोभणं शात्रवाणां
मुञ्चन्तं च द्विषतां वै यशांसि ।।

5-70-3a
5-70-3b
5-70-3c
5-70-3d

द्रष्टारो हि कुरवस्तं समेता
महात्मानं शब्रुहणं वरेण्यम् ।
ब्रुवन्तं वाचमनृशंसरूपां
वृष्णिश्रेष्ठं मोहयन्तं मदीयान् ।।

5-70-4a
5-70-4b
5-70-4c
5-70-4d

ऋषिं सनातनतभं विपश्चितं
वाचःसमुद्रं कलशं यतीनाम्।
अरिष्टनेमिं गरुडं सुपर्णं
हरिं प्रजानां भुवनस्य धाम ।।

5-70-5a
5-70-5b
5-70-5c
5-70-5d

सहस्रशीर्षं पुरुषं पुराण-
मनादिमध्यान्तमनन्तकीर्तिम्।
शुक्रस्य धातारमजं च नित्यं
परं परेषां शरणं प्रपद्ये ।।

5-70-6a
5-70-6b
5-70-6c
5-70-6d

त्रैलोक्यनिर्माणकरं जनित्रं
देवासुराणामथ नागरक्षसाम्।
नराधिपानां विदुषां प्रधान-
मिन्द्रानुजं तं शरणं प्रपद्ये ।।

5-70-7a
5-70-7b
5-70-7c
5-70-7d

।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि
यानसन्धिपर्वणि सप्ततितमोऽध्यायः ।।

5-70-1 चक्षुष्मतां भाग्याय स्पृहयामि ।। 5-70-5 अरिष्टः अहिंसितः नेमिः पादो यस्य सः अरिष्टनेमिः ।। 5-70-7 निर्माणं रचना। जनित्रं जनयितारम् ।।

उद्योगपर्व-069 पुटाग्रे अल्लिखितम्। उद्योगपर्व-071