महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-078
← उद्योगपर्व-077 | महाभारतम् पञ्चमपर्व महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-078 वेदव्यासः |
उद्योगपर्व-079 → |
महाभारतस्य पर्वाणि |
---|
श्रीकृष्णेन अर्जुनंप्रति दण्डार्हे सुयोधने शमकरणस्य दुश्शकत्वाभिधानपूर्वकं युधिष्ठिरगौरवेण स्वस्य तदर्थं प्रयतनकथनम् ।। 1 ।।
श्रीभगवानुवाच। | 5-78-1x |
एवमेतन्महाबाहो यथा वदसि पाण्डव। | 5-78-1a 5-78-1b 5-78-1c |
क्षेत्रं हि रसवच्छुद्धं कर्मणैवोपपादितम्। | 5-78-2a 5-78-2b |
तत्र वै पौरुषं ब्रूयुरासेकं यत्र कारितम्। | 5-78-3a 5-78-3b |
तदिदं निश्चित्तं बुद्ध्या पूर्वैरपि महात्मभिः । | 5-78-4a 5-78-4b |
अहं हि तत्करिष्यामि परं पुरुषकारतः । | 5-78-5a 5-78-5b |
स हि धर्मं च लोकं च त्यक्त्वा चरति दुर्मतिः। | 5-78-6a 5-78-6b |
तथापि बुद्धिं पापिष्ठां वर्धयन्त्यस्य मन्त्रिणः । | 5-78-7a 5-78-7b |
स हि त्यागेन राज्यस्य न शमं समुपैष्यति। | 5-78-8a 5-78-8b |
न चापि प्रणिपातेन त्यक्तुमिच्छति धर्मराट् । | 5-78-9a 5-78-9b |
न तु मन्ये स तद्वाच्यो यद्युधिष्ठिरशातनम् । | 5-78-10a 5-78-10b |
तथा पापस्तु तत्सर्वं न करिष्यति कौरवः । | 5-78-11a 5-78-11b |
मम चापि स वध्यो हि जगतश्चापि भारत । | 5-78-12a 5-78-12b |
विप्रलुप्तं च वो राज्यं नृशंसेन दुरात्मना। | 5-78-13a 5-78-13b |
असकृच्चाप्यहं तेन त्वत्कृते पार्थ भेदितः । | 5-78-14a 5-78-14b |
जानासि हि महाबाहो त्वमप्यस्य परं मतम्। | 5-78-15a 5-78-15b |
संजानंस्तस्य चात्मानं मम चैव परं मतम्। | 5-78-16a 5-78-16b |
यच्चापि परमं दिव्यं तच्चाप्यनुगतं त्वया। | 5-78-17a 5-78-17b |
यत्तु वाचा मया शक्यं कर्मणा वाऽपि पाण्डव । | 5-78-18a 5-78-18b |
कथं गोहरणे ह्युक्तो नैतच्छर्म तथा हितम् । | 5-78-19a 5-78-19b |
तदैव ते पराभूता यदा सङ्कल्पितास्त्वया। | 5-78-20a 5-78-20b |
सर्वथा तु मया कार्यं धर्मराजस्य शासनम् । | 5-78-21a 5-78-21b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-78-1 द्वयोः कर्मणोः शमयुद्धयोर्मध्ये इदं अनामयम् ।। 5-78-4 संयुक्तं आहितम्। लोककारणं लोकहितसाधनम् ।। 5-78-17 दिव्यं विधानं भूभारापहारार्थं स्वर्गाद्देवानामवतरणम् ।। 5-78-18 आशंसे संभावयामि ।। 5-78-19 भीष्मेण एतच्छर्म याच्यमानोपि सः हितं कथं नोक्तः अपितु उक्तः। संवत्सरगते गतसंवत्सरे ।। 5-78-20 संकल्पिताः वध्यत्वेन निश्चिताः ।। 5-78-21 विभाव्यं विचारणीयम् ।।
उद्योगपर्व-077 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | उद्योगपर्व-079 |