महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-137
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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कुन्त्या श्रीकृष्णे अर्जुनादीन्प्रति वक्तव्यसंदेशकथनम् ।। 1 ।।
श्रीकृष्णस्य स्वरथमारोपितेन कर्णेन सह संभाषणपूर्वकमुपप्लाव्यं प्रत्यागमनम् ।। 2 ।।
कुन्त्युवाच। | 5-137-1x |
अर्जुनं केशव ब्रूयास्त्वयि जाते स्म सूतके। | 5-137-1a 5-137-1b |
अथान्तरिक्षे वागासीद्दिव्यरूपा मनोरमा । | 5-137-2a 5-137-2b |
एष जेष्यति सङ्ग्रामे कुरून्सर्वान्समागतान्। | 5-137-3a 5-137-3b |
पुत्रस्ते पृथिवीं जेता यशश्चास्य दिवं स्पृशेत्। | 5-137-4a 5-137-4b |
पित्र्यमंशं प्रनष्टं च पुनरप्युद्धरिष्यति । | 5-137-5a 5-137-5b |
स सत्यसन्धो बीभत्सुः सव्यसाची यथाच्युत । | 5-137-6a 5-137-6b |
तथा तदस्तु दाशार्ह यथा वागभ्यभाषत । | 5-137-7a 5-137-7b |
त्वं चापि तत्तथा कृष्ण सर्वं संपादयिष्यसि । | 5-137-8a 5-137-8b |
नमो धर्माय महते धर्मो धारयति प्रजाः । | 5-137-9a 5-137-9b |
यदर्थं क्षत्रिया सूते तस्य कालोऽयमागतः। | 5-137-10a 5-137-10b |
विदिता ते सदा बुद्धिर्भीमस्य न स शाम्यति। | 5-137-11a 5-137-11b |
तावदेव महापबाहुर्निशासु न सुखं लभेत्। | 5-137-12a 5-137-12b 5-137-12c |
युक्तमेतन्महाभागे कुले जाते यशस्विनि । | 5-137-13a 5-137-13b |
माद्रीपुत्रौ च वक्तव्यौ क्षत्रधर्मरतावुभौ । | 5-137-14a 5-137-14b |
विक्रमाधिगता ह्यर्थाः क्षत्रधर्मेण जीवतः । | 5-137-15a 5-137-15b |
यच्च वः प्रेक्षमाणानां सर्वधर्मोपचायिनाम्। | 5-137-16a 5-137-16b |
न राज्यहरणं दुःखं द्यूते चापि पराजयः। | 5-137-17a 5-137-17b |
यत्र सा बृहती श्यामा सभायां रुदती तदा। | 5-137-18a 5-137-18b |
स्त्रीधर्मिणी वरारोहा क्षत्रधर्मरता सदा। | 5-137-19a 5-137-19b |
तं वै ब्रूहि महाबाहो सर्वशस्त्रभृतां वरम् । | 5-137-20a 5-137-20b |
विदितं हि तवात्यन्तं क्रूद्धाविव यमान्तकौ । | 5-137-21a 5-137-21b |
तयोश्चैतदवज्ञानं यत्सा कृष्णा सभागता। | 5-137-22a 5-137-22b |
पश्यतां कुरुवीराणां तच्च संस्मारयेः पुनः । | 5-137-23a 5-137-23b |
मां वै कुशलिनीं ब्रूयास्तेषु भूयो जनार्दन । | 5-137-24a 5-137-24b |
वैशंपायन उवाच। | 5-137-25x |
अभिवाद्याथ तां कृष्णः कृत्वा चापि प्रदक्षिणम्। | 5-137-25a 5-137-25b |
ततो विसर्जयामास भीष्मादीन्कुरुपुङ्गवान्। | 5-137-26a 5-137-26b |
ततः प्रयाते दाशार्हे कुरवः सङ्गता मिथः । | 5-137-27a 5-137-27b |
प्रमूढा पृथिवी सर्वा मृत्युपाशवशीकृता । | 5-137-28a 5-137-28b |
ततो निर्याय नगरात्प्रययौ पुरुषोत्तमः । | 5-137-29a 5-137-29b |
विसर्जयित्वा राधेयं सर्वयादवनन्दनः। | 5-137-30a 5-137-30b |
ते पिबन्त इवाकाशं दारुकेण प्रचोदिताः । | 5-137-31a 5-137-31b |
ते व्यतीत्य महाध्वानं क्षिप्रं श्येना इवाशुगाः । | 5-137-32a 5-137-32b |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
5-137-3 उद्वर्तयिष्यति आकुलीकरिष्यति। लोकं शत्रुजनम् ।। 5-137-5 मेधान् अश्वमेधान् ।। 5-137-16 धर्मोपचायिनां धर्मवर्धनशीलानाम् ।। 5-137-20 पदवीं चर मार्गमनुसर ।। 5-137-28 नैतदस्ति। राष्ट्रमिति शेषः ।। 5-137-29 निर्याय निर्गत्य ।। 5-137-32 उपप्लाव्यं विराटनगरम् ।।
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