महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-136
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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विदुलोपाख्यानोपसंहारः ।। 1 ।।
विदुलोपाख्यानश्रवणफलकथनम् ।। 2 ।।
मातोवाच। | 5-136-1x |
नैव राज्ञा दरः कार्यो जातु कस्यांचिदापदि। | 5-136-1a 5-136-1b |
दीर्णं हि दृष्ट्वा राजानं सर्वमेवानुदीर्यते। | 5-136-2a 5-136-2b |
शत्रुनेके प्रपद्यन्ते प्रजहत्यपरे पुनः । | 5-136-3a 5-136-3b |
य एवात्यन्तसुहृदस्त एनं पर्युपासते। | 5-136-4a 5-136-4b |
शोचन्तमनुशोचन्ति पतितानिव बान्धवान् । | 5-136-5a 5-136-5b |
ये राष्ट्रमभिमन्यन्ते राज्ञो व्यसनमीयुषः । | 5-136-6a 5-136-6b |
प्रभावं पौरुषं बुद्धिं जिज्ञासन्त्या मया तव। | 5-136-7a 5-136-7b |
यदेतत्संविजानासि यदि सम्यग्ब्रवीम्यहम्। | 5-136-8a 5-136-8b |
अस्ति नः कोशनिचयो महानविदितस्तव। | 5-136-9a 5-136-9b |
सन्ति नैकशता भूयः सुहृदस्तव सञ्जय । | 5-136-10a 5-136-10b |
तादृशा हि सहाया वै पुरुषस्य बुभूषतः। | 5-136-11a 5-136-11b |
तस्यास्त्वीदृशकं वाक्यं श्रुत्वापि स्वल्पचेतसः । | 5-136-12a 5-136-12b |
पुत्र उवाच। | 5-136-13x |
उदके नौरियं धार्या वक्तव्यं प्रवणे मया। | 5-136-13a 5-136-13b |
अहं हि वचनं त्वत्तः शुश्रूषुरपरापरम् । | 5-136-14a 5-136-14b |
अतृप्यन्नमृतस्येव कृच्छ्राल्लब्धस्य बान्धवात्। | 5-136-15a 5-136-15b |
कुन्त्युवाच। | 5-136-16x |
सदश्च इव स क्षिप्तः प्रणुन्नो वाक्यसायकैः। | 5-136-16a 5-136-16b |
इदमुद्धर्षणं भीमं तेजोवर्धनमुत्तमम् । | 5-136-17a 5-136-17b |
जयो नामेतिहासोऽयं श्रोतव्यो विजिगीषुणा। | 5-136-18a 5-136-18b |
इदं पुंसवनं चैव वीराजननमेव च। | 5-136-19a 5-136-19b |
विद्याशूरं तपःशूरं दानशूरं तपस्विनम् । | 5-136-20a 5-136-20b |
अर्चिष्मन्तं बलोपेतं महाभागं महारथम् । | 5-136-21a 5-136-21b |
नियन्तारमसाधूनां गोप्तारं धर्मचारिणाम् । | 5-136-22a 5-136-22b |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
5-136-1 दरो भयम् ।। 5-136-4 इला धेनवः ।। 5-136-10 शतार्हा अनिवर्तिन इति कo खo पाठः। शतार्हाः शतवेतनयोग्या इति रत्नगर्भः ।। 5-136-12 स्वल्पचेतसोपि तस्य तमोपागमदिति संबन्धः ।। 5-136-13 उदके भूरियं धार्या मर्तव्यं प्रवणे मया इति झo पाठः । तत्रायमर्थः। उदके मज्जन्तीव भूः पित्र्यं राज्यं ।(धूरिति पाठेपि स एवार्थः) इयं मया धार्या मग्नं राज्यं वा उद्धर्तव्यम्। प्रवणे प्रपाते वा युद्धाख्ये वा मर्तव्यं नतु एवमेव निर्व्यापारेण स्थेयम्। नेत्री शिक्षयित्री। उदके सूर्यवद्यस्मिन्सक्तव्यं प्रवणे मया इति डo पाठः ।। 5-136-14 अपरापरं उत्तरोत्तरम्। प्रतिवदन् प्रतिकूलं वदन् ।। 5-136-15 बान्धवात् बन्धुतः । उद्यच्छामि उद्यमं करोमि। नियमार्थं निग्रहार्थम् ।। 5-136-19 पुंसवनं पुत्रप्रसवकरम् ।।
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