महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-150
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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कृष्णेन पाण्डवान्प्रति भीष्मादिवचनमवधूय समुत्थितेन दुर्योधनेन चोदितानां राज्ञीं भीष्मं पुरस्कृत्य सेनाभिः सह कुरुक्षत्रेप्रस्थानकथनम् ।। 1 ।।
तथा स्वेन सामादित्रयप्रयोगेऽप्यवशीभूते दुर्योधने दण्डस्यैव प्रयोक्तव्यत्वकथनम् ।। 2 ।।
भगवानुवाच। | 5-150-1x |
एवमुक्ते तु भीष्मेण द्रोणेन विदुरेण च। | 5-150-1a 5-150-1b |
अवधूयोत्थितो मन्दः क्रोधसंरक्तलोचनः। | 5-150-2a 5-150-2b |
आज्ञापयच्च राज्ञस्तान्पार्थिवान्नष्टचेतसः । | 5-150-3a 5-150-3b |
ततस्ते पृथिवीपालाः प्रययुः सहसैनिकाः । | 5-150-4a 5-150-4b |
अक्षौहिण्यो दशैका च कौरवाणां समागताः । | 5-150-5a 5-150-5b |
यदत्र युक्तं प्राप्तं च तद्विधत्स्व विशांपते । | 5-150-6a 5-150-6b |
गान्धार्या धृतराष्ट्रेण समक्षं मम भारत । | 5-150-7a 5-150-7b |
साम चादौ प्रयुक्तं मे राजन्सौभ्रात्रमिच्छता । | 5-150-8a 5-150-8b |
पुनर्भेदश्च मे युक्तो यदा साम न गृह्यते। | 5-150-9a 5-150-9b |
यदा नाद्रियते वाक्यं सामपूर्वं सुयोधनः । | 5-150-10a 5-150-10b |
अद्भुतानि च घोराणि दारुणानि च भारत। | 5-150-11a 5-150-11b |
निर्भर्त्सयित्वा राज्ञस्तांस्तृणीकृत्य सुयोधनम् । | 5-150-12a 5-150-12b |
द्यूततो धार्तराष्ट्राणां निन्दां कृत्वा तथा पुनः। | 5-150-13a 5-150-13b |
पुनः सामाभिसंयुक्तं संप्रदानमथाब्रुवम्। | 5-150-14a 5-150-14b |
ते शूरा धृतराष्ट्रस्य भीष्मस्य विदुरस्य च । | 5-150-15a 5-150-15b |
प्रयच्छन्तु च ते राज्यमनीशास्ते भवन्तु च। | 5-150-16a 5-150-16b |
सर्वं भवतु ते राज्यं पञ्च ग्रामान्विसर्जय। | 5-150-17a 5-150-17b |
एवमुक्तोऽपि दुष्टात्मा नैव भागं व्यमुञ्चत। | 5-150-18a 5-150-18b |
निर्याताश्च विनाशाय कुरुक्षेत्रं नराधिपाः । | 5-150-19a 5-150-19b |
न ते राज्यं प्रयच्छन्ति विना युद्धेन पाण्डव । | 5-150-20a 5-150-20b |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
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