महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-158
← उद्योगपर्व-157 | महाभारतम् पञ्चमपर्व महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-158 वेदव्यासः |
उद्योगपर्व-159 → |
महाभारतस्य पर्वाणि |
---|
श्रीकृषअणश्यालस्य रुक्मिणः पाण्डवानुपेत्य अर्जुनंप्रति तस्य भयविकल्पपूर्वकं दर्पास्त्वेन साहाय्यकरणोक्तिः ।। 1 ।।
अर्जुनेन तस्य प्रत्याख्यानम् ।। 2 ।।
दुर्योधनमेत्य तथाभाषिणस्तस्य तेनापि प्रत्याख्यानम् ।। 3 ।।
वैशंपायन उवाच। | 5-158-1x |
एतस्मिन्नैव काले तु भीष्मकस्य महात्मनः । | 5-158-1a 5-158-1b |
आकूतीनामधिपतिर्भोजस्यातियशस्विनः । | 5-158-2a 5-158-2b |
यः किंपुरुषसिंहस्य गन्धमादनवासिनः । | 5-158-3a 5-158-3b |
यो माहेन्द्रं धनुर्लेभे तुल्यं गाण्डीवतेजसा। | 5-158-4a 5-158-4b |
त्रीण्येवैतानि दिव्यानि धनूंषि दिविचारिणाम् । | 5-158-5a 5-158-5b 5-158-5c |
धारयामास तत्कृष्णः परसेनाभयावहम्। | 5-158-6a 5-158-6b |
द्रुमाद्रुक्मी महातेजा विजयं प्रत्यपद्यत। | 5-158-7a 5-158-7b |
निर्जित्य नरकं भौममाहृत्य मणिकुण्डले । | 5-158-8a 5-158-8b |
प्रतिपेदे हृषीकेशः शार्ङ्गं च धनुरुत्तमम्। | 5-158-9a 5-158-9b |
विभीषयन्निव जगत्पाण्डवानभ्यवर्तत। | 5-158-10a 5-158-10b |
रुक्मिण्या हरणं वीरो वासुदेवेन धीमता। | 5-158-11a 5-158-11b |
ततोऽन्वधावद्वार्ष्णेयं सर्वशस्त्रभृतां वरः। | 5-158-12a 5-158-12b |
विचित्रायुधवर्मिण्या गङ्ग्येव प्रवृद्धया। | 5-158-13a 5-158-13b |
व्यंसितो व्रीडितो राजन्नाजगाम स कुण्डिनम्। | 5-158-14a 5-158-14b |
तत्र भोजकटं नाम कृतं नगरमुत्तमम् । | 5-158-15a 5-158-15b |
पुरं तद्भुवि विख्यातं नाम्ना भोजकटं नृप । | 5-158-16a 5-158-16b |
अक्षौहिण्या महावीर्यः पाण्डवान्क्षिप्रमागमत्। | 5-158-17a 5-158-17b |
रथेनादित्यवर्णेन प्रविवेश महाचमूम् । | 5-158-18a 5-158-18b |
युधिष्ठिरस्तु तं राजा प्रत्युद्गम्याभ्यपूजयत्। | 5-158-19a 5-158-19b |
प्रतिगृह्य तु तान्सर्वान्विश्रान्तः सहसैनिकः । | 5-158-20a 5-158-20b |
सहायोस्मि स्थितो युद्धे यदि भीतोसि पाण्डव । | 5-158-21a 5-158-21b |
न हि मे विक्रमे तुल्यः पुमानस्तीह कश्चन। | 5-158-22a 5-158-22b |
अपि द्रोणकृपौ वीरौ भीष्मकर्णावथो पुनः । | 5-158-23a 5-158-23b |
निहत्य समरे शत्रूंस्तव दास्यामि मेदिनीम् । | 5-158-24a 5-158-24b |
श्रृण्वतां पार्थिवेन्द्राणामन्येषां चैव सर्वशः । | 5-158-25a 5-158-25b 5-158-25c |
युध्यमानस्य मे वीर गन्धर्वैः सुमहाबलैः । | 5-158-26a 5-158-26b |
तथा प्रतिभये तस्मिन्देवदानवसंकुले। | 5-158-27a 5-158-27b |
निवातकवचैर्युद्धे कालकेयैश्च दानवैः । | 5-158-28a 5-158-28b |
तथा विराटनगरे कुरुभिः सह सङ्गरे। | 5-158-29a 5-158-29b |
उपजीव्य रणे रुद्रं शक्रं वैश्रवणं यमम्। | 5-158-30a 5-158-30b |
धारयन्गाण्डिवं दिव्यं धनुस्तेजोमयं दृढम् । | 5-158-31a 5-158-31b |
कौरवामां कुले जातः पाण्डोः पुत्रो विशेषतः । | 5-158-32a 5-158-32b |
कथमस्मद्विधो ब्रूयाद्भीतोऽस्मीति यशोहरम् । | 5-158-33a 5-158-33b |
नास्मि भीतो महाबाहो सहायार्थश्च नास्ति मे । | 5-158-34a 5-158-34b |
`वैशंपायन उवाच | 5-158-35x |
तच्छ्रुत्वा वचनं तस्य विजयस्य च धीमतः ।' | 5-158-35a 5-158-35b 5-158-35c |
तथैव चाभिगम्यैनमुवाच वसुधाधिपः। | 5-158-36a 5-158-36b |
द्वावेव तु महाराज तस्माद्युद्धादपेयतुः। | 5-158-37a 5-158-37b |
गते रामे तीर्थयात्रां भीष्मकस्य सुते तथा। | 5-158-38a 5-158-38b |
समितिर्धर्मराजस्य सा पार्थिवसमाकुला । | 5-158-39a 5-158-39b |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
5-158-1 साक्षात्पुत्र इति संबन्धः ।। 5-158-2 आकूतीनां संकल्पानाम् । सत्यसंकल्प इत्यर्थः ।। 5-158-7 मौरवान् आन्त्रतन्तिमयान् । यैरिदानी शार्ङ्गे धनुषि ज्या क्रियते।। 5-158-30 उपजीव्य आराध्य। रणे युद्धनिमित्तम् ।। 5-158-32 द्रोणं अयं मम गुरुरिति व्यपदिशन् कथयन् ।।
उद्योगपर्व-157 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | उद्योगपर्व-159 |