महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-159
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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धृतराष्ट्रेण सञ्जयंप्रति कुरुपाण्डवसेनयोर्वृत्तवृत्तान्तकथनचोदना ।। 1 ।।
संजयेन धृतराष्ट्रंप्रति पुरुषस्याकर्तृत्वकथनपूर्वकं स्वेन वक्ष्यमाणबन्धुनिधनश्रवणेन शोकानधिगमोपदेशः ।। 2 ।।
जनमेजय उवाच। | 5-159-1x |
तथा व्यूढेष्वनीकेषु कुरुक्षेत्रे द्विजर्षभ । | 5-159-1a 5-159-1b |
वैशंपायन उवाच। | 5-159-2x |
तथा व्यूढेष्वनीकेषु यत्तेषु भरतर्षभ। | 5-159-2a 5-159-2b |
एहि सञ्जय सर्व मे आचक्ष्वानवशेषतः । | 5-159-3a 5-159-3b |
दिष्टमेव परं मन्ये पौरुषं चाप्यनर्थकम् । | 5-159-4a 5-159-4b |
तथापि निकृतिप्रज्ञं पुत्रं दुर्द्यूतदेविनम् । | 5-159-5a 5-159-5b |
भवत्येव हि मे सूत बुद्धिर्दोषानुदर्शिनी । | 5-159-6a 5-159-6b |
एवं गते वै यद्भावि तद्भविष्यति सञ्जय । | 5-159-7a 5-159-7b |
सञ्जय उवाच। | 5-159-8x |
त्वद्युक्तोऽयमनुप्रश्नो महाराज यथेच्छसि। | 5-159-8a 5-159-8b |
शृणुष्वानवशेषेण वदतो मम पार्थिव । | 5-159-9a 5-159-9b 5-159-9c |
महाराज मनुष्येषु निन्द्यं यः सर्वमाचरेत्। | 5-159-10a 5-159-10b |
निकारा मनुजश्रेष्ठ पाण्डवैस्त्वत्प्रतीक्षया । | 5-159-11a 5-159-11b |
हयानां च गजानां च राज्ञां चामिततेजसाम् । | 5-159-12a 5-159-12b |
स्थिरो भूत्वा महाप्राज्ञ सर्वलोकक्षयोदयम्। | 5-159-13a 5-159-13b |
न ह्येव कर्ता पुरुषः कर्मणोः शुभपापयोः । | 5-159-14a 5-159-14b |
केचिदीश्वरनिर्दिष्टाः केचिदेव यदृच्छया। | 5-159-15a 5-159-15b 5-159-15c |
।। इति श्रीमन्महाभारते | |
।। समाप्तं च सैन्यनिर्याणपर्व ।। |
5-159-4 क्षयस्यैव उदयो येभ्यस्तान् क्षयोदयान् ।। 5-159-5 निकृतिप्रज्ञं कपटविषयैव प्रज्ञा न धर्मविषया यस्य तम् ।। 5-159-9 एनसा दोषेण देवान्कालं वा गुन्तुं उपलब्धुं नार्हति। न स कालं न वा देवं वक्तुमेतदिहार्हतीति पाठेप्ययमेवार्थः ।। 5-159-11 निकाराः तिरस्काराः ।।
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