महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-162
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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भीमादिभिर्दुर्योधनंप्रति उलूकद्वारा प्रतिसन्देशप्रेषणम् ।। 1 ।।
सञ्जय उवाच। | 5-162-1x |
उलूकस्त्वर्जुनं भूयो यथोक्तं वाक्यमब्रवीत्। | 5-162-1a 5-162-1b |
तस्य तद्वचनं श्रुत्वा रुषिताः पाण्डवा भृशम् । | 5-162-2a 5-162-2b |
आसनेषूदतिष्ठन्त बाहूंश्चैव प्रचिक्षिपुः। | 5-162-3a 5-162-3b |
अवाक्छिरा भीमसेनः समुदैक्षत कैतवम्। | 5-162-4a 5-162-4b |
आर्तं वातात्मजं दृष्ट्वा क्रोधेनाभिहतं भृशम् । | 5-162-5a 5-162-5b |
प्रयाहि शीघ्रं कैतव्य ब्रूयाश्चैव सुयोधनम् । | 5-162-6a 5-162-6b |
एवमुक्त्वा महाबाहुः केशवो राजसत्तम। | 5-162-7a 5-162-7b |
सृञ्जयानां च सर्वेषां कृष्णस्य च यशस्विनः। | 5-162-8a 5-162-8b |
भूमिपानां च सर्वेषां मध्ये वाक्यं जगाद ह। | 5-162-9a 5-162-9b |
आशीविषमिव क्रुद्धं तुदन्वाक्यशलाकया। | 5-162-10a 5-162-10b |
उलूकस्य तु तद्वाक्यं पापं दारुणमीरितम् । | 5-162-11a 5-162-11b |
तदवस्थं तदा दृष्ट्वा पार्थं सा समितिर्नृप । | 5-162-12a 5-162-12b |
अधिक्षेपेण कृष्णस्य पार्थस्य च महात्मनः। | 5-162-13a 5-162-13b |
धृष्टद्युम्नः शिखण्डी च सात्यकिश्च महारथः। | 5-162-14a 5-162-14b |
द्रौपदेयाभिमन्युश्च धृष्टकेतुश्च पार्थिवः । | 5-162-15a 5-162-15b |
उत्पेतुरासनात्सर्वे क्रोधसंरक्तलोचनाः। | 5-162-16a 5-162-16b 5-162-16c |
दन्तान्दन्तेषु निष्पिष्य सृक्किणी परिलेलिहन् । | 5-162-17a 5-162-17b |
उदतिष्ठत्स वेगेन क्रोधेन प्रज्वलन्निव। | 5-162-18a 5-162-18b |
हस्तं हस्तेन निष्पिष्य उलूकं वाक्यमब्रवीत्। | 5-162-19a 5-162-19b |
श्रुतं ते चवनं मूर्ख यत्त्वां दुर्योधनोऽब्रवीत्। | 5-162-20a 5-162-20b |
सर्वक्षत्रस्य मध्ये तं यद्वक्ष्यसि सुयोधनम् । | 5-162-21a 5-162-21b |
अस्माभिः प्रीतिकामैस्तु भ्रातुर्ज्येष्ठस्य नित्यशः। | 5-162-22a 5-162-22b |
प्रेषितश्च हृषीकेशः शमाकाङ्क्षी कुरून्प्रति । | 5-162-23a 5-162-23b |
त्वं कालचोदितो नूनं गन्तुकामो यमक्षयम् । | 5-162-24a 5-162-24b |
मयापि च प्रतिज्ञातो वधः सभ्रातृकस्य ते। | 5-162-25a 5-162-25b |
वेलामतिक्रमेत्सद्यः सागरो वरुणालयः । | 5-162-26a 5-162-26b |
सहायस्ते यदि यमः कुबेरो रुद्र एव वा। | 5-162-27a 5-162-27b 5-162-27c |
यश्चेह प्रतिसंरब्धः क्षत्रियो माभियास्यति। | 5-162-28a 5-162-28b |
यच्चैतदुक्तं वचनं मया क्षत्रस्य संसदि। | 5-162-29a 5-162-29b |
भीमसेनवचः श्रुत्वा सहदेवोऽप्यमर्षणः । | 5-162-30a 5-162-30b |
शौटीरशूरसदृशमनीकजनसंसदि। | 5-162-31a 5-162-31b |
नास्माकं भविता भेदः कदाचित्कुरुभिः सह । | 5-162-32a 5-162-32b |
त्वं तु लोकविनाशाय धृतराष्ट्रकुलस्य च। | 5-162-33a 5-162-33b |
जन्मप्रभृति चास्माकं पिता ते पापपूरुषः । | 5-162-34a 5-162-34b |
तस्य वैरानुषङ्गस्य गन्तास्म्यन्तं सुदुर्गमम्। | 5-162-35a 5-162-35b |
ततोऽस्मि शकुनिं हन्ता मिषतां सर्वधन्विनाम्। | 5-162-36a 5-162-36b |
उवाच फाल्गुनो वाक्यं भीमसेनं स्मयन्निव। | 5-162-37a 5-162-37b |
मन्दा गृहेषु सुखिनो मृत्युपाशवशं गताः। | 5-162-38a 5-162-38b |
दूताः किमपराध्यन्ते यथोक्तस्यानुभाषिणः । | 5-162-39a 5-162-39b |
धृष्टद्युम्नसुखान्वीरान्सुहृदः समभाषत। | 5-162-40a 5-162-40b |
कुत्सनं वासुदेवस्य मम चैव विशेषतः। | 5-162-41a 5-162-41b |
प्रभावाद्वासुदेवस्य भवतां च प्रयत्नतः। | 5-162-42a 5-162-42b |
भवद्भिः समनुज्ञातो वाक्यमस्य यदुत्तरम् । | 5-162-43a 5-162-43b |
श्वो भूते कत्थितस्यास्य प्रतिवाक्यं चमूमुखे। | 5-162-44a 5-162-44b |
ततस्ते पार्थिवाः सर्वे प्रशशंसुर्धनञ्जयम् । | 5-162-45a 5-162-45b |
अनुनीय च तान्सर्वान्यथामान्यं यथावयः। | 5-162-46a 5-162-46b |
आत्मानमवमन्वानो न हि स्यात्पार्थिवोत्तमः । | 5-162-47a 5-162-47b |
उलूकं भरतश्रेष्ठ सामपूर्वमथोर्जितम् । | 5-162-48a 5-162-48b |
अतिलोहितनेत्राभ्यामाशीविष इव श्वसन् । | 5-162-49a 5-162-49b |
जनार्दनमभिप्रेक्ष्य भ्रातॄंश्चैवेदमब्रवीत् । | 5-162-50a 5-162-50b |
उलूक गच्छ कैतव्य ब्रूहि तात सुयोधनम् । | 5-162-51a 5-162-51b |
पाण्डवेषु सदा पाप नित्यं जिह्मं प्रवर्तते। | 5-162-52a 5-162-52b 5-162-52c |
स पापः क्षत्रियो भूत्वा अस्मानाहूय संयुगे। | 5-162-53a 5-162-53b |
आत्मवीर्यं समाश्रिकत्य भृत्यवीर्यं च कौरव । | 5-162-54a 5-162-54b |
परवीर्यं समाश्रित्य यः समाह्वयते परान्। | 5-162-55a 5-162-55b |
स त्वं परेषां वीर्येण आत्मानं बहुमन्यसे । | 5-162-56a 5-162-56b |
कृष्ण उवाच। | 5-162-57x |
मद्वचश्चापि भूयस्ते वक्तव्यः स सुयोधनः। | 5-162-57a 5-162-57b |
मन्यसे यच्च मूढ त्वं न योत्स्यति जनार्दनः। | 5-162-58a 5-162-58b |
जघन्यकालमप्येतन्न भवेत्सर्वपार्थिवान्। | 5-162-59a 5-162-59b |
युधिष्ठिरनियोगात्तु फाल्गुनस्य महात्मनः । | 5-162-60a 5-162-60b |
यद्युत्पतसि लोकांस्त्रीन्यद्याविशसि भूतलम् । | 5-162-61a 5-162-61b |
यच्चापि भीमसेनस्य मन्यसे मोघभाषितम् । | 5-162-62a 5-162-62b |
न त्वां समीक्षते पार्थो नापि राजा युधिष्ठिरः। | 5-162-63a 5-162-63b |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
5-162-12 समितिः सभा ।। 5-162-31 शौटीरः सगर्वः। शूरो विक्रान्तः। मह्यं मम ।। 5-162-55 नपुंसकं नपुंसकत्वं तव ।। 5-162-63 समीक्षते गणयति ।।
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