महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-172
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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भीष्मेण दुर्योधनंप्रति शिखण्डिनः स्त्रीपूर्वत्वमभिधाय तेन सह युद्धाकरणप्रतिज्ञा ।। 1 ।।
भीष्म उवाच। | 5-172-1x |
रोचमानो महाराज पाण्डवानां महारथः। | 5-172-1a 5-172-1b |
पुरुजित्कृन्तिभोजश्च महेष्वासो महाबलः । | 5-172-2a 5-172-2b |
एष वीरो महेष्वासः कृती च निपुणश्च ह । | 5-172-3a 5-172-3b |
स योत्स्यति हि विक्रम्य मघवानिव दानवैः । | 5-172-4a 5-172-4b |
भागिनेयकृते वीरः स करिष्यति संगरे । | 5-172-5a 5-172-5b |
भैमसेनिर्महाराज हैडिम्बो राक्षसेश्वरः । | 5-172-6a 5-172-6b |
योत्स्यते समरे तात मायावी समरप्रियः । | 5-172-7a 5-172-7b |
एते चान्ये च बहवो नानाजनपदेश्वराः । | 5-172-8a 5-172-8b |
एते प्राधान्यतो राजन्पाण्डवस्य महात्मनः । | 5-172-9a 5-172-9b |
नेष्यन्ति समरे सेनां भीमां यौधिष्ठिरीं नृप । | 5-172-10a 5-172-10b |
तैरहं समरे वीर मायाविद्भिर्जयैषिभिः । | 5-172-11a 5-172-11b |
वासुदेवं च पार्थं च चक्रगाण्डीवधारिणौ । | 5-172-12a 5-172-12b |
यं चैव ते रथोदाराः पाण्डुपुत्रस्य सैनिकाः । | 5-172-13a 5-172-13b |
एते रथाश्चातिरथाश्च तुभ्यं | 5-172-14a 5-172-14b 5-171-14c 5-171-14d |
अर्जुनं वासुदेवं च ये चान्ये तत्र पार्थिवाः। | 5-172-15a 5-172-15b |
पाञ्चाल्यं तु महाबाहो नाहं हन्यां शिखण्डिनम् । | 5-172-16a 5-172-16b |
लोकस्तं वेद यदहं पितुः प्रियचिकीर्षया । | 5-172-17a 5-172-17b |
चित्राङ्गदं कौरवाणामाधिपत्येऽभ्यषेचयम्। | 5-172-18a 5-172-18b |
देवव्रतत्वं विज्ञाप्य पृथिवीं सर्वराजसु । | 5-172-19a 5-172-19b |
स हि स्त्रीपूर्वको राजञ्शिखण्डी यदि ते श्रुतः । | 5-172-20a 5-172-20b |
सर्वांस्त्वन्यान्हनिष्यामि पार्थिवान्भरतर्षभ । | 5-172-21a 5-172-21b |
।। इति श्रीमन्महाभारते | |
।। समाप्तं च रथातिरथसंख्यानपर्व ।। |
5-172-19 देवव्रतत्वं ब्रह्मचारिव्रतवत्त्वम् ।।
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