महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-174

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पञ्चमपर्व
महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-174
वेदव्यासः
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महाभारतस्य पर्वाणि
  1. आदिपर्व
  2. सभापर्व
  3. आरण्यकपर्व
  4. विराटपर्व
  5. उद्योगपर्व
  6. भीष्मपर्व
  7. द्रोणपर्व
  8. कर्णपर्व
  9. शल्यपर्व
  10. सौप्तिकपर्व
  11. स्त्रीपर्व
  12. शान्तिपर्व
  13. अनुशासनपर्व
  14. आश्वमेधिकपर्व
  15. आश्रमवासिकपर्व
  16. मौसलपर्व
  17. महाप्रस्थानिकपर्व
  18. स्वर्गारोहणपर्व

भीष्मेण विचित्रवीर्यस्य कन्यात्रयेण विवाहप्रयतने अम्बया स्वस्य साल्वकामत्वकथनपूर्वकं तत्समीपगमने भीष्मंप्रत्यनुज्ञायाचनम् ।। 1 ।।

भीष्म उवाच।

5-174-1x

ततोऽहं भरतश्रेष्ठ मातरं वीरमातरम् ।
अभिगम्योपसंगृह्य दाशेयीमिदमब्रुवम् ।।

5-174-1a
5-174-1b

इमाः काशिपतेः कन्या मया निर्जित्य पार्थिवान् ।
विचित्रवीर्यस्य कृते वीर्यशुल्का हृता इति ।।

5-174-2a
5-174-2b

ततो मूर्धन्युपाघ्राय पर्यश्रुनयना नृप।
आह सत्यवती हृष्टा दिष्ट्या पुत्र जितं त्वया ।।

5-174-3a
5-174-3b

सत्यवत्यास्त्वनुमते विवाहे समुपस्थिते।
उवाच वाक्यं सव्रीडा ज्येष्ठा काशिपतेः सुता ।।

5-174-4a
5-174-4b

भीष्म त्वमसि धर्मज्ञः सर्वशास्त्रविशारदः ।
श्रुत्वा च वचनं धर्म्यं मह्यं कर्तुमिहार्हसि ।।

5-174-5a
5-174-5b

मया साल्वपत्तिः पूर्वं मनसाऽभिवृतो वरः।
तेन चास्मि वृता पूर्वं रहस्यविदिते पितुः ।।

5-174-6a
5-174-6b

कथं मामन्यकामां त्वं राजधर्ममतीत्य वै ।
वासयेथा गृहे भीष्म कौरवः सन्विशेषतः ।।

5-174-7a
5-174-7b

एतद्बुद्ध्या विनिश्चित्य मनसा भरतर्षभ ।
यत्क्षमं ते महाबाहो तदिहारब्धुमर्हसि ।।

5-174-8a
5-174-8b

स मां प्रतीक्षते व्यक्तं साल्वराजो विशांपते ।
तस्मान्मां त्वं कुरुश्रेष्ठ समनुज्ञातुमर्हसि ।।

5-174-9a
5-174-9b

कृपां कुरु महाबाहो मयि धर्मभृतां वर।
त्वं हि सत्यव्रतो वीर पृथिव्यामिति नः श्रुतम् ।।

5-174-10a
5-174-10b

।। इति श्रीमन्महाभारते
उद्योगपर्वणि अम्बोपाख्यनपर्वणि
चतुःसप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः ।।

5-174-1 उपसंगृह्य पादयोः पतित्वा।। 5-175-5 मह्यं मम ।।

उद्योगपर्व-173 पुटाग्रे अल्लिखितम्। उद्योगपर्व-175