महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-175
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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भीष्मानुज्ञया साल्वं गताया अम्बायास्तेन परित्यागः ।। 1 ।।
अम्बया भीष्मस्य प्रतिचिकीर्षया तापसाश्रममेत्य तेषु स्ववृत्तान्तनिवेदनम् ।। 2 ।।
भीष्म उवाच। | 5-175-1x |
ततोऽहं समनुज्ञाप्य कालीं गन्धवतीं तदा। | 5-175-1a 5-175-1b 5-175-1c |
अनुज्ञाता ययौ सा तु कन्या साल्वपतेः पुरम्। | 5-175-2a 5-175-2b |
अतीत्य च तमध्वानमासमाद नराधिपम । | 5-175-3a 5-175-3b |
आगताहं महाबाहो त्वामुद्दिश्य महामते। | 5-175-4a 5-175-4b |
प्रतिपादय मां राजन्धर्मादींश्चर धर्मतः । | 5-175-5a 5-175-5b |
भीष्म उवाच।' | 5-175-6x |
तामब्रवीत्साल्वपतिः स्मयन्निव विशांपते। | 5-175-6a 5-175-6b |
गच्छ भद्रे पुनस्तत्र सकाशं भीष्मकस्य वै। | 5-175-7a 5-175-7b |
त्वं हि भीष्मेण निर्जित्य नीता प्रीतिमती तदा। | 5-175-8a 5-175-8b |
नाहं त्वय्यन्यपूर्वायां भार्यार्थी वरवर्णिनि । | 5-175-9a 5-175-9b |
नारीं विदितविज्ञानः परेषां धर्ममादिशन्। | 5-175-10a 5-175-10b |
अम्बा तमब्रवीद्राजन्ननङ्गशरपीडिता। | 5-175-11a 5-175-11b |
नास्मि प्रीतिमती नीता भीष्मेणामित्रकर्शन । | 5-175-12a 5-175-12b |
भजस्व मां साल्वपते भक्तां बालामनागसम् । | 5-175-13a 5-175-13b |
साहमामन्त्र्य गाङ्गेयं समरेष्वनिवर्तिनम् । | 5-175-14a 5-175-14b |
न स भीष्मो महाबाहुर्मामिच्छति विशांपते । | 5-175-15a 5-175-15b |
भगिन्यौ मम ये नीते अम्बिकाम्बालिके नृप। | 5-175-16a 5-175-16b |
यथा साल्वपते नान्यं वरं यामि कथंचन। | 5-175-17a 5-175-17b |
न चान्यपूर्वा राजेन्द्र त्वामहं समुपस्थिता। | 5-175-18a 5-175-18b |
भजस्व मां विशालाक्ष स्वयं कन्यामुपस्थिताम्। | 5-175-19a 5-175-19b |
तामेवं भाषमाणां तु साल्वः काशिपतेः सुताम्। | 5-175-20a 5-175-20b |
एवं बहुविधैर्वाक्यैर्याच्यमानस्तया नृपः । | 5-175-21a 5-175-21b |
ततः सा मन्युनाऽऽविष्टा ज्येष्ठा काशिपतेः सुता। | 5-175-22a 5-175-22b |
त्वया त्यक्ता गमिष्यामि यत्र तत्र विशांपते। | 5-175-23a 5-175-23b |
एवं तां भाषमाणां तु कन्यां साल्वपतिस्तदा। | 5-175-24a 5-175-24b |
गच्छ गच्छेति तां साल्वः पुनः पुनरभाषत। | 5-175-25a 5-175-25b |
एवमुक्ता तु सा तेन साल्वेनादीर्घदर्शिना । | 5-175-26a 5-175-26b |
भीष्म उवाच। | 5-175-27x |
निष्क्रामन्ती तु नगराच्चिन्तयामास दुःखिता । | 5-175-27a 5-175-27b |
बन्धुर्भिर्विप्रहीणास्मि साल्वेन च निराकृता । | 5-175-28a 5-175-28b |
अनुज्ञाता तु भीष्मेण साल्वमुद्दिश्य कारणम्। | 5-175-29a 5-175-29b |
अथवा पितरं मूढं यो मेऽकार्षीत्स्वयंवरम् । | 5-175-30a 5-175-30b |
प्रवृत्ते दारुणे युद्धे साल्वार्थं नापतं पुरा। | 5-175-31a 5-175-31b |
धिग्भीष्मं धिक्क मे मन्दं पितरं मूढचेतसम् । | 5-175-32a 5-175-32b |
धिङ्मां धिक्साल्वराजानं धिग्धातारमथापि वा । | 5-175-33a 5-175-33b |
सर्वथा भागधेयानि स्वानि प्राप्नोति मानवः । | 5-175-34a 5-175-34b |
सा भीष्मे प्रतिकर्तव्यमहं पश्यामि सांप्रतम् । | 5-175-35a 5-175-35b |
को नु भीष्मं युधा जेतुमुत्सहेत महीपतिः । | 5-175-36a 5-175-36b |
आश्रमं पुण्यशीलानां तापसानां महात्मनाम् । | 5-175-37a 5-175-37b |
आचख्यौ च यथावृत्तं सर्वमात्मनि भारत । | 5-175-38a 5-175-38b 5-175-38c |
ततस्तत्र महानासीद्ब्राह्मणः संशितव्रतः । | 5-175-39a 5-175-39b |
आर्ता तामाह स मुनिः शैखावत्यो महातपाः । | 5-175-40a 5-175-40b |
एवं गते तु किं भद्रे शक्यं कर्तुं तपस्विभिः । | 5-175-41a 5-175-41b |
सा त्वेनमब्रवीद्राजन्क्रियतां मदनुग्रहः । | 5-175-42a 5-175-42b |
मयैव यानि कर्माणि पूर्वदेहे तु मूढया। | 5-175-43a 5-175-43b |
नोत्सहे तु पुनर्गन्तुं स्वजनं प्रति तापसाः । | 5-175-44a 5-175-44b |
उपदिष्टमिहेच्छामि तापस्यं वीतकल्मषाः । | 5-175-45a 5-175-45b |
स तामाश्वासयत्कन्यां दृष्टान्तागमहेतुभिः । | 5-175-46a 5-175-46b |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
5-175-39 शैखावत्यः शिखावान् वह्निस्तत्साध्यानि श्रौतस्मार्तकर्माणि शैखावतानि तेषु साधुः शैखावत्यः। आरण्यके उपनिषदि गुरुब्रह्मविदित्यर्थः ।। 5-175-46 दृष्टान्तो लौकिकोदाहरणम् । आगमो वेदः। हेतुर्युक्तिः ।।
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