महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-179
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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भीष्मजामदग्न्ययुद्धवर्णनम् ।। 1 ।।
भीष्म उवाच। | 5-179-1x |
तमहं स्मयन्निव रणे प्रत्यभाषं व्यवस्थितम्। | 5-179-1a 5-179-1b |
आरोह स्यन्दनं वीर कवचं च महाभुज । | 5-179-2a 5-179-2b |
ततो मामब्रवीद्रामः स्मयमानो रणाजिरे । | 5-179-3a 5-179-3b |
सूतश्च मातरिश्वा वै कवचं वेदमातरः । | 5-179-4a 5-179-4b |
एवं ब्रुवाणो गान्धारे रामो मां सत्यविक्रमः। | 5-179-5a 5-179-5b |
ततोऽपश्यं जामदग्न्यं रथमध्ये व्यवस्थितम् । | 5-179-6a 5-179-6b |
मनसा विहिते पुण्ये विस्तीर्णे नगरोपभे । | 5-179-7a 5-179-7b |
कवचेन महाबाहो सोमार्ककृतलक्ष्मणा। | 5-179-8a 5-179-8b |
सारथ्यं कृतवांस्तत्र युयुत्सोरकुतव्रणः । | 5-179-9a 5-179-9b |
आह्वयानः स मां युद्धे मनो हर्षयतीव मे । | 5-179-10a 5-179-10b |
तमादित्यमिवोद्यन्तमनाधृष्यं महाबलम् । | 5-179-11a 5-179-11b |
ततोऽहं बाणपातेषु त्रिषु वाहान्निगृह्य वै । | 5-179-12a 5-179-12b |
अभ्यागच्छं तदा राममर्चिष्यन्द्विजसत्तमम् । | 5-179-13a 5-179-13b |
योत्स्ये त्वया रणे राम सदृशेनाधिकेन वा । | 5-179-14a 5-179-14b |
राम उवाच। | 5-179-15x |
एवमेतत्कुरुश्रेष्ठ कर्तव्यं भूतिमिच्छता। | 5-179-15a 5-179-15b |
शपेयं त्वां नचेदेवमागच्छेथा विशांपते । | 5-179-16a 5-179-16b |
न तु ते जयमाशासे त्वां विजेतुमहं स्थितः । | 5-179-17a 5-179-17b |
ततोऽहं तं नमस्कृत्य रथमारुह्य सत्वरः । | 5-179-18a 5-179-18b |
ततो युद्धं समभवन्मम तस्य च भारत । | 5-179-19a 5-179-19b |
स मे तस्मिन्रणे पूर्वं प्राहरत्कङ्खपत्रिभिः । | 5-179-20a 5-179-20b |
चत्वारस्तेन मे वाहाः सूतश्चैव विशांपते । | 5-179-21a 5-179-21b |
नमस्कृत्य च देवेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो विशेषतः । | 5-179-22a 5-179-22b |
आचार्यता मानिता मे निर्मर्यादे ह्यपि त्वयि । | 5-179-23a 5-179-23b |
ये ते वेदाः शरीरस्था .... यच्च ते महत् । | 5-179-24a 5-179-24b |
प्रहरे क्षत्रधर्मस्य यं त्वं राम समाश्रितः । | 5-179-25a 5-179-25b |
पश्य मे धनुषो वीर्यं पश्य बाह्वोर्बलं मम। | 5-179-26a 5-179-26b |
तस्याहं निशितं भल्लं चिक्षेप भरतर्षभ । | 5-179-27a 5-179-27b |
तथैव च पृषत्कानां शतानि नतपर्वणाम् । | 5-179-28a 5-179-28b |
काये विषक्तास्तु तदा वायुना समुदीरिताः। | 5-179-29a 5-179-29b |
क्षतजोक्षितसर्वाङ्गः क्षरन्स रुधिरं रणे। | 5-179-30a 5-179-30b |
हेमन्तान्तेऽशोक इव रक्तस्तबकमण्डितः। | 5-179-31a 5-179-31b |
ततोऽन्यद्धनुरादाय रामः क्रोधसमन्वितः । | 5-179-32a 5-179-32b |
ते समासाद्य मां रौद्रा बहुधा मर्मभेदिनः । | 5-179-33a 5-179-33b |
तमहं समवष्टभ्य पुनरात्मानमाहवे । | 5-179-34a 5-179-34b |
स तैरग्न्यर्कसङ्काशैः शरैराशीविषोपमैः । | 5-179-35a 5-179-35b |
ततोऽहं कृपयाऽऽविष्टो विनिन्द्यात्मानमात्मना । | 5-179-36a 5-179-36b |
असकृच्चाब्रुवं राजञ्शोकवेगपरिप्लुतः । | 5-179-37a 5-179-37b |
गुरुर्द्विजातिर्धर्मात्मा यदेवं पीडितः शरैः। | 5-179-38a 5-179-38b |
अथावताप्य पृथिवीं पूषा दिवसमंक्षये। | 5-179-39a 5-179-39b |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
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