महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-180
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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रामभीष्मसमरवर्णनम् ।। 1 ।।
भीष्म उवाच। | 5-180-1x |
आत्मनस्तु ततः सूतो हयानां च विशांपते। | 5-180-1a 5-180-1b |
स्नातापवृत्तैस्तुरगैर्लब्धतोयैरविह्वलैः। | 5-180-2a 5-180-2b |
दृष्ट्वा भां तूर्णमायान्तं दंशितं स्यन्दने स्थितम्। | 5-180-3a 5-180-3b |
ततोऽहं राममायान्तं दृष्ट्वा समरकाङ्क्षिणम् । | 5-180-4a 5-180-4b |
अभिवाद्य तथैवाहं रथमारुह्य भारत । | 5-180-5a 5-180-5b |
ततोऽहं शरवर्षेण महता समवाकिरम् । | 5-180-6a 5-180-6b |
संक्रुद्धो जामदग्न्यस्तु पुनरेव सुतेजितान् । | 5-180-7a 5-180-7b |
ततोऽहं निशितैर्भल्लैः शतशोऽथ सहस्रशः । | 5-180-8a 5-180-8b |
ततस्त्वस्त्राणि दिव्यानि जामदग्न्यः प्रतापवान् । | 5-180-9a 5-180-9b |
अस्त्रैरेव महाबाहो चिकीर्षन्नधिकां क्रियाम्। | 5-180-10a 5-180-10b |
ततोऽहमस्त्रं वायव्यं जामदग्न्ये प्रयुक्तवान्। | 5-180-11a 5-180-11b |
ततोऽहमस्त्रमाग्नेयमनुमन्त्र्य प्रयुक्तवान् । | 5-180-12a 5-180-12b |
एवमस्त्राणि दिव्यानि रामस्याहमवारयम् । | 5-180-13a 5-180-13b |
ततो मां सव्यतो राजन्रामः कुर्वन्द्विजोत्तमः। | 5-180-14a 5-180-14b |
ततोऽहं भारतश्रेष्ठ संन्यषीदं रथोत्तमे। | 5-180-15a 5-180-15b |
ग्लायन्तं भरश्रेष्ठ रामबाणप्रपीडितम् । | 5-180-16a 5-180-16b |
रामस्यानुचरा हृष्टाः सर्वे दृष्ट्वा विचुक्रुशुः । | 5-180-17a 5-180-17b |
ततस्तु लब्धसंज्ञोऽहं ज्ञात्वा सूतमथाब्रुवम् । | 5-180-18a 5-180-18b |
ततो मामवहत्सूतो हयैः परमशोभितैः । | 5-180-19a 5-180-19b |
ततोऽहं राममासाद्य बाणवर्षैश्च कौरव । | 5-180-20a 5-180-20b |
तानापतत एवासौ रामो बाणानजिह्मगान्। | 5-180-21a 5-180-21b |
ततस्ते सूदिताः सर्वे मम बाणाः सुसंशिताः । | 5-180-22a 5-180-22b |
ततः पुनः शरं दीप्तं सुप्रभं कालसंमितम् । | 5-180-23a 5-180-23b |
तेन त्वभिहतो गाढं बाणवेगवशं गतः। | 5-180-24a 5-180-24b |
ततो हाहाकृतं कसर्वं रामे भूतलमाश्रिते । | 5-180-25a 5-180-25b |
तत एनं समुद्विग्नाः सर्व एवाभिदुद्रुवुः । | 5-180-26a 5-180-26b |
तत एनं परिष्वज्य शनैराश्वासयंस्तदा । | 5-180-27a 5-180-27b |
ततः स विह्वलं वाक्यं राम उत्थाय चाब्रवीत्। | 5-180-28a 5-180-28b |
स मुक्तो न्यपतत्तूर्णं सव्ये पार्श्वे महाहवे । | 5-180-29a 5-180-29b |
हत्वा हयांस्ततो रामः शीघ्रास्त्रेण महाहवे । | 5-180-30a 5-180-30b |
ततोऽहमपि शीघ्रास्त्रं समरप्रतिवारणम् । | 5-180-31a 5-180-31b |
रामस्य मम चैवाशु व्योमावृत्य समन्ततः। | 5-180-32a 5-180-32b |
मातरिश्वा ततस्तस्मिन्मेघरुद्ध इवाभवत् । | 5-180-33a 5-180-33b |
अभिघातप्रभावाच्च पावकः समजायत । | 5-180-34a 5-180-34b |
भूमौ सर्वे तदा राजन्भस्मभूताः प्रपेदिरे । | 5-180-35a 5-180-35b |
अयुतान्यथ खर्वाणि निखर्वाणि च कौरव । | 5-180-36a 5-180-36b |
ततोऽहं तानपि रणे शरैराशीविषोपमैः । | 5-180-37a 5-180-37b |
एवं तदभवद्युद्वं तदा भरतसत्तम । | 5-180-38a 5-180-38b |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
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