महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-183
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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सप्रमाणं देवतादिप्रार्थनापूर्वकं शायितस्य भीष्मस्य दिव्यपुरुषैः स्वप्ने समाश्वासनपूर्वकं ज्ञातपूर्वप्रस्वापनास्त्रानुस्मारणम् ।। 1 ।।
भीष्म उवाच। | 5-183-1x |
ततोऽहं निशि राजेन्द्र प्रणम्य शिरसा तदा। | 5-183-1a 5-183-1b |
नक्तंचराणां भूतानां राजन्यानां विशांपते। | 5-183-2a 5-183-2b |
जामदग्न्येन मे युद्धमिदं परमदारुणम् । | 5-183-3a 5-183-3b |
न च रामं महावीर्यं शक्नोमि रणमूर्धनि । | 5-183-4a 5-183-4b |
यदि शक्यो मया जेतुं जामदग्न्यः प्रतापवान् । | 5-183-5a 5-183-5b |
ततो निशि च राजेन्द्र प्रसुप्तः शरविक्षतः । | 5-183-6a 5-183-6b |
ततोऽहं विप्रमुख्यैस्तैर्यैरस्मि पतितो रथात्। | 5-183-7a 5-183-7b |
त एव मां महाराज स्वप्ने दर्शनमेत्य वै । | 5-183-8a 5-183-8b |
उत्तिष्ठ मा भैर्गाङ्गेय न भयं तेऽस्ति किंचन। | 5-183-9a 5-183-9b |
न त्वां रामो रणे जेता जामदग्न्यः कथंचन । | 5-183-10a 5-183-10b |
इदमस्त्रं सुदयितं प्रत्यभिज्ञास्यते भवान् । | 5-183-11a 5-183-11b |
प्राजापत्यं विश्वकृतं प्रस्वापं नाम भारत । | 5-183-12a 5-183-12b |
तत्स्मरस्व महाबाहो भृशं संयोजयस्व च। | 5-183-13a 5-183-13b |
येन सर्वान्महावीर्यान्प्रशासिष्यसि कौरव । | 5-183-14a 5-183-14b |
एनसा न तु संयोगं प्राप्स्यसे जातु मानद । | 5-183-15a 5-183-15b |
ततो जित्वा त्वमेवैनं पुनरुत्थापयिष्यसि। | 5-183-16a 5-183-16b |
एवं कुरुष्व कौरव्य प्रभाते रथमास्थितः। | 5-183-17a 5-183-17b |
न च रामेण मर्तव्यं कदाचिदपि पार्थिव। | 5-183-18a 5-183-18b |
इत्युक्त्वान्तर्हिता राजन्सर्व एव द्विजोत्तमाः । | 5-183-19a 5-183-19b |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
5-183-5 निशां निशि। दर्शयन्तु आत्मानं प्रकाशयन्तु ।।
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