महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-184
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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रामभीष्मयोरायोधनम् ।। 1 ।।
भीष्मस्य प्रस्वापनास्त्रप्रतिभानम् ।। 2 ।।
भीष्म उवाच। | 5-184-1x |
ततो रात्रौ व्यतीतायां प्रतिबुद्धोऽस्मि भारत । | 5-184-1a 5-184-1b |
ततः समभवद्युद्धं मम तस्य च भारत । | 5-184-2a 5-184-2b |
ततो बाणमयं वर्षं ववर्ष मयि भार्गवः। | 5-184-3a 5-184-3b |
ततः परमसंक्रुद्धः पुनरेव महातपाः । | 5-184-4a 5-184-4b |
इन्द्राशनिसमस्पर्शां यमदण्डसमप्रभाम् । | 5-184-5a 5-184-5b |
ततो भरतशार्दूल धिष्ण्यमाकाशगं यथा। | 5-184-6a 5-184-6b |
अथास्रमस्रवद्धोरं गिरेर्गैरिकधातुवात् । | 5-184-7a 5-184-7b |
ततोऽहं जामदग्न्याय भृशं क्रोधसमन्वितः । | 5-184-8a 5-184-8b |
स तेनाभिहतो वीरो ललाटे द्विजसत्तमः । | 5-184-9a 5-184-9b |
स संरब्धः समावृत्य शरं कालान्तकोपमम् । | 5-184-10a 5-184-10b |
स वक्षसि पापतोग्रः शरो व्याल इव श्वसन् । | 5-184-11a 5-184-11b |
संप्राप्य तु पुनः संज्ञां जामदघ्न्याय धीमते । | 5-184-12a 5-184-12b |
सा तस्य द्विजमुख्यस्य निपपात भुजान्तरे । | 5-184-13a 5-184-13b |
तत एनं परिष्वज्य सखा विप्रो महातपाः । | 5-184-14a 5-184-14b |
समाश्वस्तस्ततो रामः क्रोधामर्षसमन्वितः । | 5-184-15a 5-184-15b |
ततस्तत्प्रतिघातार्थं ब्राह्ममेवास्त्रमुत्तमम् । | 5-184-16a 5-184-16b |
तयोर्ब्रह्मास्त्रयोरासीदन्तरा वै समागमः । | 5-184-17a 5-184-17b |
ततो व्योम्नि प्रादुरभूत्तेज एव हि केवलम् । | 5-184-18a 5-184-18b |
ऋषयश्च सगन्धर्वा देवताश्चैव भारत। | 5-184-19a 5-184-19b |
ततश्चचाल पृथिवी सपर्वतवनद्रुमा। | 5-184-20a 5-184-20b |
प्रजज्वाल नभो राजन्धूमायन्ते दिशो दश। | 5-184-21a 5-184-21b |
ततो हाहाकृते लोके सदेवासुरराक्षसे । | 5-184-22a 5-184-22b |
प्रस्वापमस्त्रं त्वरितो वचनाद्ब्रह्मवादिनाम् । | 5-184-23a 5-184-23b |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
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