महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-192
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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स्थूणेन शिखण्डिन्यै पुनःपुंस्त्वप्रत्यर्पणप्रतिज्ञापनपूर्वकं तदीयस्त्रीत्वस्वीकारेण स्वीयपुंस्त्वसमर्पणम् ।। 1 ।।
दाशार्णकेन उपायात् शिखण्डिनः पुंस्त्वं निर्धार्य स्वपुरगमनम् ।। 2 ।।
अत्रान्तरे स्थूणगृहमागतेन कुबेरेण तंप्रति स्त्रीत्वधारणस्य शिखण्डिमरणावधिकत्वरूपशापदानम् ।। 3 ।।
पुंस्त्वप्रत्यर्पणाय गतेन शिखण्डिना स्थूणात्तद्वृत्तान्तमुपलभ्य हर्षात्स्वगृहागमनम् ।। 4 ।।
इति भीष्मेण दुर्योधनंप्रति शिखण्डिना सह स्वेन युद्धाकरणे कारणाभिधानम् ।। 5 ।।
भीष्म उवाच। | 5-193-1x |
शिखण्डिवाक्यं श्रुत्वाऽथ स यक्षो भरतर्षभ । | 5-192-1a 5-192-1b |
भवितव्यं तथा तद्धि मम दुःखाय कौरव। | 5-192-2a 5-192-2b |
`स्वं ते पुंस्त्वं प्रदास्यामि स्त्रीत्वं धारयिताऽस्मि ते' | 5-192-3a 5-192-3b 5-192-3c |
प्रभुः संकल्पसिद्धोऽस्मि कामचारी विहंगमः । | 5-192-4a 5-192-4b |
स्त्रीलिङ्गं धारयिष्यामि तवेदं पार्थिवात्मजे। | 5-192-5a 5-192-5b |
शिखण्ड्युवाच। | 5-192-6x |
प्रतिदास्यामि भगवन्पुलिङ्गं तव सुव्रत। | 5-192-6a 5-192-6b |
प्रतियाते दशार्णे तु पार्थिवे हेमवर्मणि । | 5-192-7a 5-192-7b |
भीष्म उवाच। | 5-192-8x |
इत्युक्त्वा समयं तत्र चक्राते तावुभौ नृप । | 5-192-8a 5-192-8b |
स्त्रीलिङ्गं धारयामास स्थूणो यक्षोऽथ भारत । | 5-192-9a 5-192-9b |
ततः शिखण्डी पाञ्चाल्यः पुंस्त्वमासाद्य पार्थिव । | 5-192-10a 5-192-10b |
यथावृत्तं तु तत्सर्वमाचख्यौ द्रुपदस्य तत्। | 5-192-11a 5-192-11b 5-192-11c |
सभार्यस्तच्च सस्मार महेश्वरवचस्तदा । | 5-192-12a 5-192-12b |
पुरुषोऽयं मम सुतः श्रद्धत्तां मे भवानिति । | 5-192-13a 5-192-13b |
पाञ्चालराजं द्रुपदं दुःखशोकसमन्वितः। | 5-192-14a 5-192-14b |
प्रेषयामास सत्कृत्य दूतं ब्रह्मविदां वरम्। | 5-192-15a 5-192-15b |
यन्मे कन्यां स्वकन्यार्थे वृतवानसि दुर्मते। | 5-192-16a 5-192-16b |
एवमुक्तश्च तेनासौ ब्राह्मणो राजसत्तम। | 5-192-17a 5-192-17b |
ततः आसादयामास पुरोधा द्रुपदं पुरे। | 5-192-18a 5-192-18b |
प्रापयामास राजेन्द्र सह तेन शिखण्डिना । | 5-192-19a 5-192-29b |
यदुक्तं तेन वीरेण राज्ञा काञ्चनवर्मणा । | 5-192-20a 5-192-20b |
तस्य पापस्य करणात्फलं प्राप्नुहि दुर्मते । | 5-192-21a 5-192-21b |
उद्धरिष्यामि ते सद्यः सामात्यसुतबान्धवम् । | 5-192-22a 5-192-22b |
दशार्णपतिना चोक्तो मन्त्रिमध्ये पुरोधसा। | 5-192-23a 5-192-23b |
यदाह मां भवान्ब्रह्मन्संबन्धिवचनाद्वचः । | 5-192-24a 5-192-24b |
ततः संप्रेषयामास द्रुपदोऽपि महात्मने । | 5-192-25a 5-192-25b |
तमागम्य तु राजानं दशार्णाधिपतिं तदा। | 5-192-26a 5-192-26b |
आगमः क्रियतां व्यक्तः कुमारोऽयं सुतो मम । | 5-192-27a 5-192-27b |
ततः स राजा द्रुपदस्य श्रुत्वा। | 5-192-28a 5-192-28b 5-192-28c 5-192-28d |
ताः प्रेषितास्तत्त्वभावं विदित्वा | 5-192-29a 5-192-29b 5-192-29c 5-192-29d |
ततः कृत्वा तु राजा स आगमं प्रीतिमानथ। | 5-192-30a 5-192-30b |
शिखण्डिने च मुदितः प्रादाद्वित्तं जनेश्वरः । | 5-192-31a 5-192-31b 5-192031c |
विनीतकिल्विषे प्रीते हेमवर्मणि पार्थिवे । | 5-192-32a 5-192-32b |
कस्यचित्त्वथ कालस्य कुबेरो नरवाहनः । | 5-192-33a 5-192-33b |
स नद्गृहस्योपरि वतमान | 5-192-34a 5-192-34b 5-192-34c 5-192-34d |
लाचैश्च गन्धैश्च तथा वितानै- | 5-192-35a 5-192-35b 5-192-35c 5-192-35d |
तत्स्थानं तस्य दृष्ट्वा तु सर्वतः समलंकृतम्। | 5-192-36a 5-192-36b |
नानाकुसूमगन्धाढ्यं सिक्तसंमृष्टशोभितम् । | 5-192-37a 5-192-37b |
स्वलंकृतमिदं वेश्म स्थूणस्यामितविक्रमाः । | 5-192-38a 5-192-38b |
यस्माज्जानन्स मन्दात्मा मामसौ नोपसर्पति । | 5-192-39a 5-192-39b |
यक्षा ऊचुः । | 5-192-40x |
द्रुपदस्य सुता राजन्राज्ञो जाता शिखण्डिनी। | 5-192-40a 5-192-40b |
अग्रहील्लक्षणं स्त्रीणां स्त्रीभूता तिष्ठते गृहे। | 5-192-41a 5-192-41b |
एतस्मात्कारणाद्राजन्स्थूणो न त्वाऽद्य सर्पति। | 5-192-42a 5-192-42b |
आनीयतां स्थूण इति ततो यक्षाधिपोऽब्रवीत् । | 5-192-43a 5-192-43b |
सोऽभ्यगच्छत यक्षेन्द्रमाहूतः पृथिवीपते। | 5-192-44a 5-192-44b |
तं शशापाथ संक्रुद्धो धनदः कुरूनन्दन । | 5-192-45a 5-192-45b |
ततोऽब्रवीद्यक्षपतिर्महात्मा | 5-192-46a 5-192-46b 5-192-46c 5-192-46d |
अप्रवृत्तं सुदुर्बुद्धे यस्मादेतत्त्वया कृतम्। | 5-192-47a 5-192-47b |
ततः प्रसादयामासुर्यक्षा वैश्रवणं किल। | 5-192-48a 5-192-48b |
ततो महात्मा यक्षेन्द्रः प्रत्युवाचानुगामिनः । | 5-192-49a 5-192-49b |
शिखण्डिनि हते यक्षाः स्वं रूपं प्रतिपत्स्यते । | 5-192-50a 5-192-50b |
इत्युक्त्वा भगवान्देवो यक्षराजः सुपूजितः । | 5-192-51a 5-192-51b |
स्थूणस्तु शापं संप्राप्य तत्रैव न्यवसत्तदा। | 5-192-52a 5-192-52b |
सोऽभिगम्याब्रवीद्वाक्यं प्राप्तोऽस्मि भगवन्निति। | 5-192-53a 5-192-53b |
आर्जवेनागतं दृष्ट्वा राजपुत्रं शिखण्डिनम् । | 5-192-54a 5-192-54b |
भीष्म उवाच। | 5-192-55x |
शप्तो वैश्रवणेनाहं त्वत्कृते पार्थिवात्मज । | 5-192-55a 5-192-55b |
दिष्टमेतत्पुरा मन्ये न शक्यमतिवर्तितुम् । | 5-192-56a 5-192-56b |
भीष्म उवाच। | 5-192-57x |
एवमुक्तः शिखण्डी तु स्थूणयक्षेण भारत । | 5-192-57a 5-192-57b |
पूजयामास विविधैर्गन्धमाल्यैर्महाधनैः । | 5-192-58a 5-192-58b |
द्रुपदः सह पुत्रेण सिद्धार्थेन शिखण्डिना । | 5-192-59a 5-192-59b |
शिष्यार्थं प्रददौ चाथ द्रोणाय कुरुपुङ्गव । | 5-192-60a 5-192-60b |
प्रतिपेदे चतुष्पादं धनुर्वेदं नृपात्मजः। | 5-192-61a 5-192-61b |
मम त्वेतच्चरास्तात यथावत्प्रत्यवेदयन् । | 5-192-62a 5-192-62b |
एवमेष महाराज स्त्री पुमान्द्रुपदात्मजः । | 5-192-63a 5-192-63b |
ज्येष्ठा काशिपतेः कन्या अम्बा नामेति विश्रुता । | 5-192-64a 5-192-64b |
नाहमेनं धनुष्पाणिं युयुत्सुं समुपस्थितम् । | 5-192-65a 5-192-65b |
व्रतमेतन्मम सदा पृथिव्यामपि विश्रुतम् । | 5-192-66a 5-192-66b |
न मुञ्चेयमहं बाणमिति कौरवनन्दन । | 5-192-67a 5-192-67b |
एतत्तत्त्वमहं वेद जन्म तात शिखण्डिनः । | 5-192-68a 5-192-68b |
यदि भीष्मः स्त्रियं हन्यात्सन्तः कुर्युर्विगर्हणम् । | 5-192-69a 5-192-69b |
वैशंपायन उवाच। | 5-192-70x |
एतच्छ्रुत्वा तु करव्यो राजा दुर्योधनस्तदा। | 5-192-70a 5-192-70b |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
5-192-4 विहंगमः आकाशगामी ।। 5-192-8 अभिसंदेहे इति झo पाठः। संदेहे लिङ्गे सम्यग् दिह्यते उपचीयेते रतिकाले प्रथेते इति व्युत्पत्तेरिति तत्रार्धः ।। 5-192-24 उत्तरं उत्कृष्टतरम् ।। 5-192-27 आगमः परीक्षा ।। 5-192-61 चतुष्पादं ग्रहणधरणप्रयोगप्रातीकारैश्चतुर्भिः पादैर्युक्तम् ।। 5-192-
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