महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-193
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दुर्योधनेन भीष्मादीन्प्रति युष्माभिः कियता कालेन समग्रपरसेनाक्षपणं कर्तुं शक्यमिति प्रश्ने तैः पृथक्पृथक्तदुत्तरदानम् ।। 1 ।।
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संजय उवाच। | 5-193-1x |
प्रभातायां तु शर्वर्यां पुनरेव सुतस्तव। | 5-193-1a 5-193-1b |
दुर्योधन उवाच। | 5-193-2x |
पाण्डवेयस्य गाङ्गेय यदेतत्सैन्यमुद्यतम्। | 5-193-2a 5-193-2b |
भीमार्जुनप्रभृतिभिर्महेष्वासैर्महाबलैः । | 5-193-3a 5-193-3b |
अप्रधृष्यमनावार्यमुद्धूतमिव सागरम् । | 5-193-4a 5-193-4b |
केन कालेन गाङ्गेय क्षपयेथा महाद्युते । | 5-193-5a 5-193-5b |
कर्णो वा समरश्लाघी द्रौणिर्वा द्विजसत्तमः । | 5-193-6a 5-193-6b |
एतदिच्छाम्यहं ज्ञातुं परं कौतूहलं हि मे। | 5-193-7a 5-193-7b |
भीष्म उवाच। | 5-193-8x |
अनुरूपं कुरुश्रेष्ठ त्वय्येतत्पृथिवीपते। | 5-193-8a 5-193-8b |
श्रृणु राजन्मम रणे या शक्तिः परमा भवेत् । | 5-193-9a 5-193-9b |
आर्जवेनैव युद्धेन योद्धव्य इतरो जनः। | 5-193-10a 5-193-10b |
हन्यामहं महाभाग पाण्डवानामनीकिनीम् । | 5-193-11a 5-193-11b |
योधानां दशसाहस्रं कृत्वा भागं महाद्युते । | 5-193-12a 5-193-12b |
अनेनाहं विधानेन सन्नद्धः सततोत्थितः । | 5-193-13a 5-193-13b |
मुञ्चेयं यदि वास्त्राणि महान्ति समरे स्थितः । | 5-193-14a 5-193-14b |
संजय उवाच। | 5-193-15x |
श्रुत्वा भीष्मस्य तद्वाक्यं राजा दुर्योधनस्ततः । | 5-193-15a 5-193-15b |
आचार्य केन कालेन पाण्डुपुत्रस्य सैनिकान् । | 5-193-16a 5-193-16b |
स्थविरोऽस्मि महाबाहो मन्दप्राणविचेष्टितः । | 5-193-17a 5-193-17b |
यथा भीष्मः शान्तनवो मासेनेति मतिर्मम । | 5-193-18a 5-193-18b |
द्वाभ्यामेव तु मासाभ्यां कृपः शारद्वतोऽब्रवीत्। | 5-193-19a 5-193-19b 5-193-19c |
तच्छ्रुत्वा सूतपुत्रस्य वाक्यं सागरगासुतः। | 5-193-20a 5-193-20b |
न हि यावद्रणे पार्थं बाणशङ्खधनुर्धरम्। | 5-193-21a 5-193-21b |
समागच्छसि राधेय तेनैवमभिमन्यसे । | 5-193-22a 5-193-22b |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
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