"पृष्ठम्:मृच्छकटिकम्.pdf/१८९" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | ||
पङ्क्तिः १६: | पङ्क्तिः १६: | ||
{{block center|{{bold|<poem>स तावदसायसनार्णवोत्थितं निरीक्ष्य साधुः समुपैति निर्वृतिम् । |
{{block center|{{bold|<poem>स तावदसायसनार्णवोत्थितं निरीक्ष्य साधुः समुपैति निर्वृतिम् । |
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शरीरमेतद्तमीदृशीं दशां धृतं मया तस्य महात्मनो गुणैः ॥ ४॥ |
शरीरमेतद्तमीदृशीं दशां धृतं मया तस्य महात्मनो गुणैः ॥ ४॥</poem>}}}} |
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{{gap}}'''चेटः'''–इमं तं उजाणं, जाच उवर्शप्पामि । ( उपसृत्य ) अज्ज- |
{{gap}}'''चेटः'''–इमं तं उजाणं, जाच उवर्शप्पामि । ( उपसृत्य ) अज्ज- |
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मित्तेअ ।। [इदं सदुद्यानम् , यावदुपसर्पमि । आर्य मैत्रेय ! ।] |
मित्तेअ ।। [इदं सदुद्यानम् , यावदुपसर्पमि । आर्य मैत्रेय ! ।] |
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{{gap}}'''विदूषकः'''--भो ! पिअं दे णिवेदेमि । वड्माणओ मंतेदि । |
{{gap}}'''विदूषकः'''--भो ! पिअं दे णिवेदेमि । वड्माणओ मंतेदि । |