"पृष्ठम्:मृच्छकटिकम्.pdf/४१" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | ||
पङ्क्तिः २१: | पङ्क्तिः २१: | ||
{{gap}}'''रदनिका'''— णं तुम्हाणं जेव्व । [ ननु युष्माकमेव ।] |
{{gap}}'''रदनिका'''— णं तुम्हाणं जेव्व । [ ननु युष्माकमेव ।] |
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{{gap}}'''विदूषकः''' किं एसो बलकारो ? । [ किमेष बलात्कारः १ । |
{{gap}}'''विदूषकः'''— किं एसो बलकारो ? । [ किमेष बलात्कारः १ । |
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{{gap}}'''रदनिका''' |
{{gap}}'''रदनिका'''— अध इं । [ अथ किम् । |
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{{gap}}'''विदूषकः''' |
{{gap}}'''विदूषकः'''— सच्चं । [ सत्यम् ।] |
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{{gap}}'''रदनिका''' |
{{gap}}'''रदनिका'''— सच्चं । [ सत्यम् । |
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{{gap}}'''विदषकः''' |
{{gap}}'''विदषकः'''— ( सक्रोधं दण्डकाष्ठमुद्यम्य ) मा दाव । भो, सके गेहे |
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कुकुरो वि दाव चंडो भोदि, किं उण अहं बम्हणॊ । ता एदिणा |
कुकुरो वि दाव चंडो भोदि, किं उण अहं बम्हणॊ । ता एदिणा |
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