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ल्लिकानयमल्लिकाकुरबकातिमुक्तकप्रभृतिकुसुमैः स्वयं निपतितैर्यत्सत्यं |
ल्लिकानयमल्लिकाकुरबकातिमुक्तकप्रभृतिकुसुमैः स्वयं निपतितैर्यत्सत्यं लघूकरो- |
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तीव नन्दनवनस्य सश्रीकताम् । |
तीव नन्दनवनस्य सश्रीकताम् । इतश्च उदयत्सूर्यसमप्रभैः कमलरक्तोत्पलैः |
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संध्यायते इव दीर्घिका । अपि च,- |
संध्यायते इव दीर्घिका । अपि च,- |
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सुभट इव समरमध्ये घनलोहितपङ्कचर्चिकः ।</poem>}}}} |
सुभट इव समरमध्ये घनलोहितपङ्कचर्चिकः ।</poem>}}}} |
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भवतु, तत्कुत्र |
भवतु, तत्कुत्र युष्माकमार्या? ।] |
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{{gap}}'''चेटी'''–अज्ज ! ओणामेहि |
{{gap}}'''चेटी'''–अज्ज ! ओणामेहि दिट्ठिं , पैक्ख अज्जअं । [ आर्य ! अव- |
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नमय दृष्टिम् , |
नमय दृष्टिम् , पश्यार्याम् ।] |
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{{gap}}'''विदूषकः'''-( दृष्ट्वा, उपसृत्य ) सोत्थि भोदीए । [स्वस्ति भवत्यै ।] |
{{gap}}'''विदूषकः'''-( दृष्ट्वा, उपसृत्य ) सोत्थि भोदीए । [स्वस्ति भवत्यै ।] |
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{{gap}}'''वसन्तसेना'''–आर्य मैत्रेय ! अपीदानीं |
{{gap}}'''वसन्तसेना'''–आर्य मैत्रेय ! अपीदानीं |
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{{block center|{{bold|<poem> |
{{block center|{{bold|<poem>गुणप्रवालं विनयप्रशाखं विष्रम्भमूलं महनीयपुष्पम् । |
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तं साधुवृक्षं |
तं साधुवृक्षं स्वगुणैः फलाढ्यं सुहृद्विहङ्गाः सुखमाश्रयन्ति ? ॥३२॥</poem>}}}} |
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{{gap}}'''विदूषकः'''— खगतम् ) |
{{gap}}'''विदूषकः'''— (खगतम् ) सुट्ठु उवलक्खिदं दुट्टविलासिणीए । |
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(प्रकाशम् ) अध |
(प्रकाशम् ) अध ईं । [ सुष्टूपलक्षितं दुष्टविलासिन्या । अथ किम् ।। |
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{{gap}}'''वसन्तसेना'''---अये ! किमागमनप्रयोजनम् १ ।। |
{{gap}}'''वसन्तसेना'''---अये ! किमागमनप्रयोजनम् १ ।। |
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वृक्षः। |
वृक्षः। घनरुधिरपङ्कचर्चिका यस्य सः ॥ ३१ ॥ ओणमेहि |
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अवनमय ॥ गुणेति ॥ ३२ ॥ से अस्याः । भावे क्त योगे षष्ठी (?)। |
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टिप्पः--1 अन्न चारुदत्तानुराग एव |
टिप्पः--1 अन्न चारुदत्तानुराग एव परमार्थ इति हेतुगर्भितमिदं पद्यम् । |